18 August 2009

चना, मुर्रा और चैनल....

बदलते वक्त के साथ जो नए चेहरे पत्रकारिता करने के लिए सामने आए हैं , उन्ही लोगों ने पत्रकारिता का न सिर्फ़ स्तर गिराया है बल्कि अपनी औकात भी दो कौडी की कर ली है। आज चना, मुर्रा और चैनल को इन्ही लोगों ने बराबरी का दर्जा भी दिलाया है। आज एक पत्रकार की हैसियत co-ordinator से ज्यादा की नहीं रह गयी है। अब ऐसे लोगों की भीड़ बढ़ गयी है जो सिर्फ़ पैसा कमाने के लिए ही मैदान में उतरे हैं। आज चैनल मालिकों को अच्छा लिखने वाला नहीं अच्छा विज्ञापन बटोरने वाला आदमी चाहिए। यही कारण है कि अच्छे पत्रकार न सिर्फ़ field से गायब हैं बल्कि पत्रकारिता से उनका मन उचट गया है। आज आप पंजाब के कुछ रिहायशी शहरों में जाकर देखिये। जो पहले ट्रक के मालिक थे अब वो चैनल चला रहे हैं। उन्हें दिमाग देने वाले भी सब पत्रकार ही हैं। शहर से निकलने वाले एक अखबार की भी कुछ ऐसी ही कहानी है। इस अखबार के मालिक ने एक दिन अपने संस्थान से पत्रकारों को उपहार में बांटने वाली राशि का हिसाब किया तो उनका दिमाग ख़राब हो गया। उन्होंने सोचा की जब वो ख़ुद पत्रकारों को इतना पैसा हर साल बांटते हैं तो क्यों न ख़ुद का अखबार शुरू कर दें। अखबारों की भीड़ में ये अखबार भी शामिल हो गया। अपनी काली कमाई को छुपाने और सफेदपोशों की भीड़ में शामिल होने के लिए भी कई लोग अखबार निकाल रहे हैं। छत्तीसगढ़ सरकार ने भी अपनी संवेदना ऐसे अखबारों से बांटी है।
प्रिंट हो या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया , सबका हाल बुरा है। खुश वही है जो मालिक का ख़ास बनने के लिए मंत्रियों की चरण वंदना कर रहा है। अफसरों के तलवे चाट रहा है। अपने अंतर्मन को अपने घर की संदूकों में रखकर निकले ये पत्रकार एक नया इतिहास बना रहे हैं। एक सही घटना इस बात को पूरी तरह से साबित करती है। शराब के नशे में धुत्त एक कथित पत्रकार ने रात को एक चलती ट्रक में चढ़कर स्टिंग करने की कोशिश की तो conductor ने उसे धकेल दिया। मामला अवैध लकड़ी तस्करी का था। कथित पत्रकार नीचे गिर गया और पैर टूट गया। राजिम में कुम्भ की उलटी ख़बर चलने वाले इस कथित पत्रकार की मदद भी ख़ुद इसी विभाग के मंत्री ने की। अब जब वो ठीक हुआ तो उसने फ़िर से अपनी टीम बनाने की कोशिशें तेज़ कर दी। एन चुनाव के समय विधायक का चुनाव लड़ रहे मंत्री जी का स्टिंग करने वाले एक कैमरामैन को उसने अपनी टीम में शामिल कर लिया है। अब लूटपाट फ़िर शुरू होने वाली है लेकिन इस बार खेल उल्टा भी हो सकता है।

1 comment:

  1. छत्तीसगढ़ में सार्थक पत्रकारिता, सामाजिक पत्रकारिता और मिट्टी से जुड़े मूल्यों पर करने को इतना कुछ है कि बिना किसी नौटंकी या सांप लीला के कोई भी चैनल पढ़े लिखे और ढंग के लोगों के बीच जगह बना सकता है। छत्तीसगढ़ सरकार चाहे तो खुद अपने प्रदेश को प्रमोट करने के लिए एक छोटा सेट अप लगाकर इन चीज़ों को पूरी दुनिया के सामने ला सकती है। लेकिन, इस प्रदेश में मीडिया हो या सरकार किसी को ना जनता की फिक्र है और ना सूबे की। जय जोहार...

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