30 June 2010

well done नक्सलियों...good job?

           ( लहू- लुहान घटना स्थल पर जवानों के रक्त और जूते..)              
    ( घटना -स्थल से ट्रैक्टर और बाद में सेना के विमान से भेजे गये शव)
    ( इसी रास्ते के उपयोग से जवानों को मदद  मिली)
                                                                          क्या बात है..... कल फिर २7 सी आर पी ऍफ़ के जवानों को तुम लोगों ने शहीद कर दिया. छत्तीसगढ़ की जनता भी तो सीधी सादी है ना. और सबसे सीधे हैं हमारे मुख्यमंत्री. और उनसे भी  लाख गुना सीधे हैं हमारे गृह मंत्री. पूरी दुनिया में आग लग जाए इन लोगों को कोई फर्क ही नहीं पड़ता. फिर पहुँच जायेंगे दिल्ली १३ करोड़ मांगने. इतना करोड़ तो आ गया. कहाँ गया?
    मुझे एक बात नक्सलियों से सीधे सीधे पूछनी है की क्या पुलिस के जवानों को मारने से आ जायेगा उनका राज्य? अरे हमला उन पर करो जो तुम्हारे कथित राज के आड़े आते हैं. ये जवान तो अपने बीवी बच्चों को छोड़कर नौकरी के लिए आते हैं. कई नक्सली भी तो इस हमले में मारे गये हैं. उनकी लाशें देखकर तरस नहीं आता. जवानों के बीवी बच्चों पर भी तरस नहीं आता तुम लोगों को. कौन सा इन्कलाब ला दोगे. अपने उद्देश्यों से भटक गये हो तुम लोग. काहे का माओवाद? घंटे का? मुझे पता है तुम लोगों का शहरी नेटवर्क भी बहुत तगड़ा है. हमारे कुछ दलाल साथी भी तुम लोगों से मिले हुए हैं. उनके भी बीवी बच्चे हैं याद रखना. पत्रकारिता का चोला ओढ़ लेने से आत्मा नहीं मर जाती. मर भी गयी होगी तो एक दिन जागना होगा उसे. 
    wel done की heading इसीलिये लगाया ताकि तुम में से कोई इसे  पढ़े और एक बार चिंतन करे. देखो अपना कुछ नहीं जायेगा. अपन तो बिंदास लिखते हैं और ऐसे ही मर जाना  चाहते हैं. मुझे पता है की  तुम लोग बहुत  अच्छा काम कर रहे हो. तुम लोगों के ही कारण नेशनल चैनलों में छत्तीसगढ़ को जगह मिल पाती है , नहीं तो कौन पूछता है छत्तीसगढ़ को. तुम लोगों के कारण ही राज्य सरकार को केंद्र सरकार से  करोड़ों रुपये मिल रहे हैं. तुम लोगों  की भी तो जमकर वसूली की शिकायतें हैं. कुल मिलाकर सब का धंधा बढ़िया चल रहा है. तुम लोगों के कारण छत्तीसगढ़ में कांग्रेस का साथ बी जे पी को मिला हुआ है.  अच्छा है सब खाओ खुजाओ, बत्ती बुझाओ. तुम लोग तो भगवान् को भी नहीं मानते ना? मैं मानता हूँ और भगवान् की शक्ति भी साक्षात देखी है मैंने. एक बात का आश्वासन मैं तुम लोगों को ज़रूर दे सकता हूँ की ये सरकार तुम लोगों के खिलाफ कोई बड़ा कदम उठाकर अपना धंधा बंद नहीं करेगी. जो सरकार अपने व्यापारी भाइयों से उनके मजदूरों को मुफ्त चावल देकर उनका धंधा चौपट कर सकती है. वो सरकार कुछ भी कर सकती है, पर तुम लोगों के आड़े कभी नहीं आयेगी सरकार .तुम लोगों के कारण ही तो कई होटलें इंडिया के बाहर खड़ी हो गयी हैं.  तुम लोगों का ही आशीर्वाद पाकर कई छगन  और राजीव अग्रवाल पैदा हुए और जी रहे हैं.  बाबूलाल जैसे लोगों को भी गले से लगाकर रखती है हमारी सरकार. अभी  कुछ दिनों तक छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री के बेटे अमित जोगी ने भी तो तुम लोगों के इलाकों में जाकर सत्याग्रह किया. तब कहाँ थे तुम लोग. खैर अन्दर की बात मुझे पता है.  हमारी सरकार को नपुंसक मत समझना. ऐसा नहीं है  की हमारी सरकार के पास कोई दमदार गृहमंत्री नहीं है. पर बाकी लोग थोड़ा होशियार हैं इसीलिये काम चला रही है सरकार. हमारे गृह मंत्री को हमेशा जवानों की गलती ही नज़र आती है. शकल से ही ऐसे दिखते हैं की  सबको दया आ जाती है. नैतिकता के नाम पर भी वो कभी इस्तीफे की पहल नहीं करेंगे. कभी कभी लगता है की उनको इस्तीफे की भी मनाही है और खुद गृह मंत्री बंदियों जैसा जीवन जी रहे हैं.अब कांग्रेस अपनी   परंपरा निभाएगी. पुतला वुतला जला देंगे. बस हो गया विरोध. सब गुड गाड चल रहा है. पर मेरी एक विनती सुनोगे? बंद कर दो ये नरसंहार...मानव जीवन पाए हो तो किसी का उद्धार करो. अगले जनम में पता नहीं बस्तर हो ना हो. वहां नक्सलवाद हो ना हो....? 

27 June 2010

हैदराबाद में होगा फैसला - ब्यूरो चीफ की दादागिरी ,शराब ने कराई किरकिरी

भगवान ने जब हवा बनाई होगी तब सोचा होगा की इस हवा का इस्तेमाल लोग सही दिशा में करेंगे. पर आजकल हवा का इस्तेमाल कुछ और हो रहा है. अब मुफ्त की शराबखोरी ने हैदराबाद से जुड़े एक रीजनल चैनल के ब्यूरो को मुश्किल में डाल दिया है. एक नेशनल चैनल ने तो बाकायदा ये खबर भी दिखाई. तेलीबांधा रायपुर के नशेमन बार में चार दिन पहले ये सब हुआ. गृह मंत्री के निर्देश पर आबकारी विभाग का एक दस्ता बार की जांच के लिए पहुंचा तो ब्यूरो वहां बैठकर पी रहा था. जैसे ही दस्ता हरकत में आया,  ब्यूरो को गुस्सा आ गया. नशे में उसने खुद को इस बार का पार्टनर बताया और कवरेज करने गयी एक टीम को चमकाने लगा. थोड़ी देर में उसके चैनल का रिपोर्टर भी वहां कवरेज के लिए पहुंचा. बस ब्यूरो ने उससे आई डी चीनी और बरस पड़ा आबकारी अमले पर.. एक महिला अफसर को खरीदने की कोशिश भी बार के मालिक ने की. अब गृह विभाग इस पूरे मामले की सी डी देख रहा है, कुछ लोग दबी जुबां से यह भी कह रहे हैं की मुख्यमंत्री के खिलाफ लगातार खबर दिखाने के कारण इस ब्यूरो को फंसाया जा सकता है. अभी ये तय नहीं हो पाया है की उस ब्यूरो  के खिलाफ क्या कार्यवाही की जाये. अभी अभी खबर  मिली है की ब्यूरो को हैदराबाद बुला लिया गया है. बताते हैं की कुछ अन्य शिकायतें भी ब्यूरो के खिलाफ मिली हैं. ऐसा होता है समय का फेर जो नहीं समझता है उसे हैदराबाद मुख्यालय में बुलाकर सब समझा दिया जाता है.ये तो नियती का खेल है.  इस मामले में ब्यूरो को समझाया भी जा सकता है. हे भगवान हवा का दुरूपयोग होने से रोको.

18 June 2010

लो अब हम भगवान् हो गये...
अनिल पुसदकर और मुझे लोग भगवान् मानने लग गये. ऐसा क्यों ? अरे भाई , आदमी भगवान को ही तो कोसता है. विवादित पत्रकार ज़रीन सिद्दीकी की धर्मपत्नी हम दोनों को कोसती फिर रही है. देख लेने तक की बात कह रही है. हमारे खिलाफ प्रेस कांफ्रेंस लेने तक की धमकी भी दे रही है. उसका गुस्सा जायज़ है. वो एक ऐसे पति की पत्नी है, जिसने एक घर भी नहीं छोड़ा. जबकि डायन भी कई घर छोडती है,  बुरे वक्त में इंसान पूजा पाठ में समय बिताता है, उधारी करते नहीं फिरता. आज हर आदमी उसे ढूंढ रहा है. सबको पैसे लेने हैं उससे. अब साढ़े तीन लाख रुपये चिंटू से लेते वक्त उसे हम लोगों की याद नहीं आयी?  हम सिर्फ चिंटू का पैसा वापस दिलाने और अन्दर की बात सार्वजनिक ना होने देने लिए संघर्ष कर रहे थे. पर आज तो लग रहा है जैसे हमने हवन करके हाथ जला लिए. ये दुर्भाग्य है पत्रकारिता का की ऐसे लोग भी फील्ड में आ गये हैं जो अब बीबी के कन्धों का भी सहारा लेने लगे.
ज़रीन की बीवी का आरोप है की हमारे कारण उसे रायपुर में उसे कोई चैनल वाला नहीं रख रहा है. हम दोनों नोटरी वाले वकील तो नहीं हैं जो उसे एक एफिडेविद दे कर उसे पाक साफ़ कर दें. अपनी करनी खुद भुगत रहा है वो. जब ज़रीन सहारा के नाम से वसूली करने चिचोला गया था , तो क्या हमें बताकर गया था? आमानाका के थानेदार और दुनिया भर में जब वो लोगों से पैसे मांगता फिर रहा था, तब कहाँ थे हम लोग? से हिंदुस्तान में अनिल भैय्या ने उस पर दया की थी.  अजीब लोग हैं भाई. साले करें खुद और भुगतें हम . उसकी बीवी का एक आरोप गंभीर है की हमारे कारण उसे कहीं नौकरी नहीं मिल रही है इसीलिये वो घर छोड़कर कहीं चला गया है. कहाँ  जायेगा? कहीं ना कहीं से फिर वसूली की शिकायत आएगी तो फिर वापस आ जायेगा, अब कान पकड़ता हूँ . भाड़ में जाये सब. नेकी करके अब  और दरिया में नहीं डालना है.
आई. डी. नहीं तो काम नहीं
अच्छा खासा times  now के लिए काम कर रहा था , लेकिन नक्सलियों के शहरी नेटवर्क को ये बात बहुत दिन से खटक रही थी. अब उनकी आत्मा को ठंडक मिली होगी. times now के हेड ऑफिस मुंबई गया और साफ़ साफ़ कह आया- तीन साढ़े तीन साल हो गये. अब आई.डी. के बिना काम नहीं करूँगा. मेरे भोपाल के बॉस राहुल सिंह को इसी मौके की तलाश थी. बात बात पर आई मीन .. आई मीन ....कहकर अंग्रेज़ी बोलने वाले राहुल ने चौथी बार मेरी जगह किसी और को स्ट्रिंगर बनाने की कवायद तेज़ कर दी. अब मैं विरोध नहीं करने वाला . जो चाहे अब times  now  के लिए काम करे . अभी तक मेरे कारण कई लोगों ने यहाँ काम करने से इनकार किया . लेकिन अब मैं खुद राहुल सिंह को बाहर से सपोर्ट कर रहा हूँ की वो अब यहाँ किसी और को appoint कर ले. जब तक मैं रहा हर बड़ी खबर बराबरी से ब्रेक हुई. अब मेरा जी उचट गया. मुझे अच्छे माहौल में काम करने की आदत है. अंग्रेज़ी नहीं जानता ऐसा नहीं है. राहुल से ज्यादा अच्छी अंग्रेज़ी बोल लेता हूँ, पर राहुल को नहीं पता की मैं आखिर हूँ कौन? मैं अपने लिए अपनी ज़मीन खुद तैयार करने वाला विशुद्ध श्रमजीवी हूँ. बाप के नाम की ना खाया और ना अब सोच सकता. उनका ऋण ना चुका सकता ना ऐसा करने की सोचता . अपने बाप के नाम पर पत्रकारिता में टिके रहने वालों में से नहीं हूँ मैं.
दरअसल हो ये रहा था की मैं यहाँ से कोई खबर मुंबई बताता तो राहुल के पेट में ऐंठन हो जाती थी. कई बार भोपाल में कोई खबर  बताई तो एक घंटे बाद मुझे गाली सुननी पडी.  मुंबई वाले कहते रहे की इतनी बड़ी खबर सीधे बता देनी चाहिए थी. राहुल को seriousaly news sense नहीं है. उसका सारा ध्यान दौरे और बिल में रहता है. और मुझे देखिये- तीन साल से अपना बिल नहीं भेजा और लाखों रुपये laps हो गये.  मार्च एंडिंग में बिल नहीं भेजा.  अब भुगत रहा हूँ. इस साल  का अब तक का बिल तो भेजूंगा और भुगतान ना हुआ तो देखेंगे ईश्वर की मर्जी क्या है. दिल्ली मुंबई और भोपाल में बैठकर पत्रकारिता करने वाले लोग पता नहीं अपने आपको समझते क्या हैं. अरे हम छोटे राज्य में हैं तो क्या हुआ. हमारी भी तो भावनाएं हैं. राहुल को अब खुला challenge है. मैं तो पत्रकारिता करूँगा और मुंबई में ही रहकर करूँगा. तब क्या करेगा राहुल?. दरअसल आम आदमी छोटी छोटी सी होशियारी में अपने अन्दर ही अन्दर निपटता रहता है. मैंने तो बुरे दिन काट कर अपना ट्रैक ही बदल दिया. लोग बोलते रहें की दिखता नहीं , जब दिखता था तो क्या भला कर दिए मेरा.  एक तो छोटा सा राज्य ऊपर से मालिकों का दबाव. हम सिर्फ गाली खाने के लिए पैदा थोड़ी हुए हैं.
पूरे छत्तीसगढ़ की हर बड़ी खबर की फीड के लिए तत्पर रहता था मैं, पर रायपुर के गिरोहबाज पत्रकारों को यह सब अच्छा नहीं लग रहा था. उन्हें शायद पता नहीं या बोडीबाजी के चक्कर में वो भूल गये की साधू और शेर अकेले ही चलते हैं.
 अभी तक पूरे छत्तीसगढ़ में times now ने संवाददाता नहीं बनाये हैं. मैं  अपने दम पर सब जगह से फीड पहुंचवा दिया करता था. अब देखते हैं की नक्सलियों से जुड़े विवादास्पद पत्रकार राहुल  को कितनी मदद करते हैं. वैसे बड़ा चैनल है रीजनल के भी बहुत सारे पत्रकार इच्छुक हो सकते हैं. मुझे बुरा इस बात का लगा की आज तक जो राहुल और मुंबई का स्टाफ मेरी तारीफ़ के पुल बांधते नहीं थकता था, वही लोग राहुल के कहने पर टेढ़े कैसे हो गये  है?.  राहुल अब बोलने लगा है की मैं ठीक आदमी नहीं हूँ. उसके कहने - बकने से मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता. मैं इसीलिये पत्रकारिता में नहीं हूँ की आज  पत्रकारिता छोडूंगा तो कल पुलिस मुझे उठा  ले जायेगी या लोग मुझे नमस्ते करना बंद कर देंगे या मंथली लिफ़ाफ़े मिलने बंद हो जायेंगे. . रायपुर के लोग और मेरे ब्लोगर मित्र जानते हैं की मैं क्या हूँ और कैसा हूँ. मुझे जो अच्छा  लगता है मैं करता हूँ. छोटा सा पेट है, भर जाता है. रायपुर के पत्रकार साथियों को मेरी एक बात नहीं पचती की ये साला फिल्म भी बना लेता है .  छत्तीसगढ़ी एल्बम भी कर लेता है. फिल्मों में डबिंग भी कर आता है. गाना भी गा आता है. ( नक्सलियों पर केन्द्रित और सुनील शेट्टी अभिनीत रेड एलर्ट में कुनाल गांजावाला ने जो शीर्षक गीत हिंदी में गाया है, उसका छत्तीसगढ़ी  वर्जन मैं गा आया हूँ. ये फिल्म जल्द ही छत्तीसगढ़ में  रिलीज होने वाली है और अंतर्राष्ट्रीय स्टार पर नाम कमा चुकी है ) खैर.. अब लगने लगा है की मुंबई मुझे फिर बुला रहा है. मुझे शायद आदेश हो गया है की अब बड़ा सोचो और बड़ा करो. ये लोग पत्रकारिता से नाम और पैसा काम चुके , अब इनका पेट भर गया है इसीलिये राजनीति कर रहे हैं..... करो .. यही करो. पर सच कहूँ तो times now  छोड़ने का अब रत्ती भर दर्द नहीं है. जिस गली जाना नहीं उसका पता क्या पूछना. अपना बिल क्लीयर कर लूँ, फिर मैं चला मुंबई.
जीवन जो थोड़ा बहुत बचा है उसे भी सार्थक  कामों में लगाना है. मुझे पता है जो लीक से हटकर काम करना, भूखे प्यासे रहना जान जाता है और सबके हित की सोचता है उसे कलयुग में दुःख तो झेलना ही पड़ेगा, राहुल के माध्यम से ईश्वर ने मुझे एक नयी राह दिखाई है. रायपुर  में अगर रहना भी पड़ा तो एक बार फिर ये बात साबित कर दूंगा की मेरे अन्दर का पत्रकार कितना तगड़ा है. मुबई गया तो वहां भी मेरी पूरानी टीम बाहें फैलाकर मेरा स्वागत करने को तैयार बैठी है. बुरा वक्त सबका आता है, अच्छा  वक्त आने में भी समय नहीं लगता. बाय बाय times now ..........

16 June 2010

न टाइम , न टुडे , सब हैं बुझे बुझे
अभी कुछ दिन पहले ही मुझे टाइम टुडे के मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के सम्पादक ने आग्रह किया था की आप कुछ समय हमारे लिए भी निकालें, मैंने साफ़ कहा था की यार तुम्हारे चैनल में वज़न नहीं दिखता. सम्पादक रिजवान ने कहा था की नया चैनल है,  धीरे धीरे सब ठीक हो जायेगा. कुछ संयुक्त कोशिशें हमने की भी.  मैंने साफ़ कहा था की मैं आपके संबंधों के आधार पर ख़बरें ऍफ़ टी पी से भेज दिया करूँगा. क्योंकि मुझे पता था की आर्थिक तंगी से जूझ रहा है चैनल.  चार दिन बाद पता चला की पूरे स्टाफ ने हड़ताल कर दी और श्रम विभाग में शिकायत भी दर्ज करा दी. एक आदमी रायपुर में बच गया. उसे एक महीने की सेलरी देकर ब्यूरो चीफ बना दिया गया.  बिना कैमरा मेन के क्या करेगा ब्यूरो? ले दे के काम बढ़ने लगा. मुझसे पूछा गया की आप अब किस तरह की मदद करेंगे? मैंने कहा की जैसा रिजवान बोलें, क्योंकि आप लोगों को मैं जानता नहीं.  बाद में विवाद बढ़ा और चैनल ने यहाँ के कर्मचारियों के खिलाफ स्क्रोल चला दिया की इन लोगों को चैनल से निकाल दिया गया है. अब मेरा दिमाग ठनका, पर चूँकि मेरा कोई लेना देना था नहीं, इसीलिये चुप हो गया.
पर कितने दिन चुप बैठता ? टाइम टुडे की खुदाई की तो पता चला की ये चैनल भी अवैध है. इसका पंजीयन तो पवित्र टी वी के नाम से है. पवित्र टी वी अचानक टाइम टुडे कैसे हो गया? . इनके एंकर भी एक से एक नमूने हैं. बीच में मेरा फोन हुआ तो एक एंकर मुझसे पूछ बैठी की नक्सलवाद  से निपटने के पी एस गिल को क्या बुलाएगी छत्तीसगढ़ सरकार? मैं लाइव में तो शांत रहा पर बाद में अपने ऊपर खूब हंसी आयी. तीन साल पहले के पी एस गिल यहाँ से लौट चुके हैं और ये पूछ रही है की कब आयेंगे के पी एस गिल? गलती नयी लड़कियों की कतई नहीं है. उन्हें थोड़ा बहुत तो बता देते. कुछ तो सिखा समझा देते.  दरअसल मूर्खों की कमी नहीं है. एक एंकर तो अमीन सयानी की विडियो में कॉपी कर रहा है. बाकी दो भी सीखने की कोशिश कर रहे हैं. एक एंकर तो न्यूज़ पढ़ती है तो लगता है जैसे बच्चों का कोई नया चैनल शुरू हुआ है. एक तो इतना हंसती है की लगता है उसे रोज़ सेलरी मिल रही है. खैर.. सीखना सबको चाहिए., पर ये सारे प्रयोग चैनल शुरू होने के पहले हो जाने चाहिए. भोपाल का पहला satelite चैनल है. शुरू में गर्व हुआ, पर धीरे धीरे हवा निकलनी शुरू हो गयी,  आपसी खींचतान में ये चैनल भी बैठता दिखाई दे रहा है.
अब खबर आ रही है की चैनल की आई डी बेचीं जा रही है. ठीक तो है. कहीं से  तो पैसा आना  चाहिए.सब तो यही कर रहे हैं. दिल्ली और भोपाल में बैठे लोगों को शायद इस बात की जानकारी नहीं है की वे खुद भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रहे हैं.  आज की पत्रकारिता को ऐसे ही लोगों ने आर टी ओ की नौकरी जैसा बना दिया है, अब आदमी आई डी खरीदेगा तो पहले उसका खर्चा निकलेगा. पत्रकारिता कब करेगा वो. खैर..धीमे स्क्रोल वाली पट्टी और धीमी गति से शुरू हुआ ये चैनल पता नहीं स्पीड कब पकड़ेगा. आसार तो कहीं से भी नज़र नहीं आ रहे हैं. अभी तक लीज लाइन बिछ जानी चाहिए थी. मोबाईल पर कब तक टिके रहेगा चैनल? redymade chroma का background और जुगाड़ के एक दो background म्यूजिक से चैनल की असलियत साफ़ साफ़ दिखने लगती है. शकल  सूरत तो भगवान् की देंन होती हैं पर उसे और बिगाड़ कर या उसमें घटिया या खुद make -up कर उसे वीभत्स करने से तो रोका ही जा सकता है. जेब में तनख्वाह के पैसे नहीं होते तो एंकर और कैमरा मेन का काम पूरी चुगली अकेले ही करने के लिए पर्याप्त है. तनख्वाह की हालत सिर्फ छत्तीसगढ़ में ही  नहीं  सभी जगह से शिकायतें हैं. ऐसे लोग  पत्रकारिता को समझते क्या हैं.आपसी खुन्नस छोड़कर अगर सब इस चैनल को नहीं संभालेंगे तो ढाक के तीन पात वाली कहावत चरितार्थ होकर रहेगी. मैं मदद करने आगे आया था लेकिन आप स्टाफ को सेलरी नहीं दोगे तो हम तो लड़ने वालों का ही साथ देंगे ना?
आज़ादी  से पहले लगेगा हिन्दुस्तान में ताला......
....बड़ा अजीब लग रहा होगा ना ये हेडिंग पढ़कर..?  लेकिन मैं साफ़ कर दूँ की ताला हमारे भारत में नहीं., हिंदुस्तान न्यूज़ में लग रहा है.  हिंदुस्तान न्यूज़ के मालिक यानि राजेश शर्मा जिसे कुछ लोगों ने धृतराष्ट्र बनाकर रखा था, उनकी आँख खुल गयी है.  उन्होंने सार्वजनिक रूप से हिन्दुस्तान की एक बैठक में इस बात की घोषणा कर दी है. आठ  जुलाई २०१०  से यानि आज़ादी की ६३वी सालगिरह के दिन से   हिंदुस्तान  न्यूज़ में ताला लगा दिया जायेगा. सौभाग्य इस बात का भी है की मुझे भी उनकी आँख खोलने का श्रेय है. एक दिन मेरे एक अभिन्न मित्र नितिन चौबे का मोबाइल पर कॉल आया, उसने कहा की राजेश शर्मा तुझसे  मिलना चाहते हैं. मैंने पूछा क्यों? जवाब नहीं आया लेकिन उसने कहा की मेरी बात तुझे माननी ही होगी. इसके पहले भी कई लोगों ने मुझे सलाह दी थी की एक बार राजेश शर्मा से मिल लो. मैं क्यों मिलूं किसी से ? मैं अपनी अकड़ पर कायम था.
हम चार लोग सवा दो घंटे उनके साथ बैठे. दो घंटे तो मैं ही बोलता रहा. बोलता क्या रहा, पूछता रहा हिन्दुस्तान  न्यूज़ के आवक जावक के बारे में. सारे जवाब शून्य रहे. उस दिन मैंने क्लीयर भी कर किया की क्या मैं आपको या आप मुझे जानते हैं? जवाब आया नहीं. मैंने उनसे चैनल से जुड़े कई ऐसे सवाल पूछे जिसके जवाब ना तो उनके पास थे ना ही उनके चंगु मंगुओं के पास. उस दिन मैं भी समझ गया और राजेश शर्मा भी समझ गये की पत्रकारों के एक गिरोह ने उन्हें घेर रखा है,  ये गिरोह ज़मीन दलाली भी करता है, बस भी चलाता है, और हाँ गिरोह के कुछ सदस्य मुख्यमंत्री या अन्य मंत्रियों के यहाँ का काम कमीशन पर करते हैं. पत्रकारिता से इनका अब कोई लेना - देना नहीं है. राजेश शर्मा को को देर से ही सही लेकिन ये माजरा  समझते देर ना लगी. वो जिस स्टाफ के लिए अपनी बीमारियाँ बढ़ा रहे थे,  उन लोगों को इस सबसे कोई मतलब ही नहीं था. वो सब मिलकर अपना अपना उल्लू सीधा कर रहे थे.
...जैसे ही ही ये खबर लीक हुई की मैं नितिन और राजेश शर्मा के कुछ घरेलु सदस्य आपस में बात कर रहे हैं. नेशनल लुक के संपादक यानि स्वम्भू चाणक्य प्रशांत शर्मा और प्रबंधक नवीन जैन तत्काल वहां पहुँच गये पर इसके पहले सारी बात मैंने प्याज के छिलकों की तरह खोल कर रख दी थी. राजेश शर्मा ने उन्हें कल्टी कर मुझे लगातार बोलने का मौका दिया. दुसरे दिन जब ये खबर जब चंगु मंगू को लगी तो उन्हें अपनी कमजोरी छुपाने का मौका मिल गया. चंगु -मंगू इस बात पर राजेशा शर्मा से नाराज़ हो गये की जब वे उनकी मदद  कर रहे थे तो फिर अह्फाज़ को क्यों बुलाया सेठ ने. बस इसी बहाने ने राजेश शर्मा के कान खड़े कर दिए. दरअसल चंगु- मंगुओं ने धृतराष्ट्र बना दिया था राजेश शर्मा को. खुद संजय बनकर आधी अधूरी और अपनी कहानी बताने आ जाते और चले जाते.  दरअसल चैनल के नाम पर राजेश शर्मा से ख़ाली पैसा ले रहे थे चंगु मंगू. काम कुछ नहीं अब जो काम आता नहीं उसे कैसे भी कैसे बेचारे.. खैर.. हिंदुस्तान न्यूज़ के लोग अब अपनी रोजी रोटी के किये नए सिरे से प्रयास कर रहे हैं.