07 September 2010

पाकिस्तान से आकर सबको खरीदने चला था कब होगा देश निकाला भावनदास का

पाकिस्तान से आकर वैसे तो 720 लोग छत्तीसगढ़ में बस गए हैं। नियम विपरित सबने अपने मकान भी खरीद लिए और कईयों ने तो एक मंत्री की शह पर अपना भारतीय मतदाता परिचय पत्र भी बनवा लिया है। पाकिस्तान से आने वालों में शामिल भावनदास सचेदवा ने भी न सिर्फ एक भारतीय परिवार को सडक़ पर ला दिया बल्कि उल्टी-सीधी और नियम विपरीत हरकतों के कारण एक साल बाद ये मामला पुलिस ने दर्ज किया है। भावनदास पैसों के बल पर सबको खरीद लेना चाहता था, लेकिन कागजातों के खेल ने उसे उलझा दिया और अब वह अपनी गिरफ्तारी से बचने भागता फिर रहा है। 13 जुलाई 2010 को भावनदास का वीजा खत्म हो गया था, इसके बाद भी पुलिस के कुछ अफसरों के कारण उसका देशनिकला नहीं किया जा सका। पुलिस यह दलील देकर मामले को टरकाती रही कि उसने वीजा की मियाद बढ़ाने की दरख्वास्त जमा करा दी है। भावनदास सचदेव ने जब एक भारतीय परिवार को एक व्यवसाय में तंग करना शुरु किया तब इस पूरे मामले का भंडाफोड़ हुआ।
अमलीडीह निवासी चंद्रप्रकाश मंधनानी अपने परिवार के साथ एक कुटीर उद्योग का संचालन कर रहे थे। फेयर एण्ड फेयर एवर क्रीम का उत्पादन वे जड़ी बूटियों को कूट पीस कर करते थे। जब चंद्रप्रकाश का व्यवसाय चलने लगा तो भावनदास की नजर इस व्यवसाय पर पड़ गई। भावनदास ने इससे मिलते-जुलते नाम का एक नया उत्पाद सिलकिन फेयर एन फेयर एवर क्रीम का उत्पादन करना शुरु कर दिया। बात यहीं खत्म नहीं हुई। खाद्य एवं औषधि विभाग से भावनदास ने चंद्रप्रकाश के उत्पाद में अपना पंजीयन भी करवा लिया। चंद्रप्रकाश का यह छोटा सा कुटीर उद्योग जब बैठने लगा और उनकी आर्थिक स्थिति खराब होने लगी तब शुरु हुआ शिकायतों का दौर। चंद्रप्रकाश का परिवार दर-दर भटकता रहा लेकिन भावनदास पैसों के प्रभाव के कारण सब जगह हावी होने लगा था। जब उन्हें कहीं न्याय नहीं मिला तो वे मीडिया से भी कई बार रु-ब-रू हुए कहीं उन्हें जगह मिली तो कहीं भावनदास ने वहां भी खबरें रुकवाई।
इसी बीच चंद्रप्रकाश ने करो या मरो की कसम खाई और भिड़ गए भावनदास के पीछे। एक तो धंधा चौपट, आर्थिक तंगी और ऊपर से भावनदास का जलवा। समय पलटा और भावनदास के खिलाफ राजेन्द्र नगर पुलिस ने एक मामला दर्ज कर लिया। भारतीय रिजर्व बैंक का स्पष्ट निर्देश है कि कोई भी पाकिस्तानी नागरिक बिना रिजर्व बैंक की अनुमति के बिना भारत में अंचल संपत्ति का हस्तांतरण अथवा अधिग्रहण नहीं कर सकेगा। इसके बावजूद भावनदास ने विधानसभा मार्ग में एक जमीन खरीदा, वहीं मकान बनवाया और अमलीडीह में भी एक मकान खरीदा। इन जगहों पर बाकायदा अपने नाम से विद्युत कनेक्शन भी लिया। अपनी इस कारगुजारी को छिपाने के लिए उसने अपने बेटे महेन्द्र कुमार सचदेव को इस मकान का स्वामी बताकर अपने आपको किरायेदार बताते हुए एक शपथ पत्र भी तैयार करवा लिया। अपने कुल बच्चों को लेकर भी उसने कई बार भारतीय नोटरियों को झूठी जानकारी दी। राजेन्द्र नगर पुलिस ने भावनदास के विरुद्ध मामला दर्ज कर उसकी गिरफ्तारी की कवायद तेज कर दी है। खाद्य एवं अैाषधि विभाग भी इसी आधार पर भावनदास के उत्पाद का पंजीयन निरस्त करने की राह देख रहा है। जिला पुलिस अधीक्षक दीपांशु काबरा ने इस मामले में सख्ती बरती है। अब देखना है भारतीय नियमावली के तहत भावनदास का देशनिकाला कब तक हो पाता है।

शकुनी मामा और महतारी

आम तौर पर मुंबई के लोग बाहर काम करने तब निकलते हैं जब मुंबई में उन्हें कोई पूछता नहीं है. शकुनी मामा भी कई दिन से ख़ाली थे, रायपुर का एक धूर उनके सम्पर्क में आया तो शकुनी मामा ने तत्काल बिसात बिछा दी. हिंदी फिल्म "मैं तुलसी तेरे आँगन की" और "उपकार" देखकर उसे मिलाकर एक छत्तीसगढ़ी फिल्म " महतारी" की योजना बनाई और पहुँच गये कवर्धा. छत्तीसगढ़ी लोग उनकी भाषा सुनकर बेहोश हो रहे हैं. शकुनी मामा ना तो हिंदी बोल रहे हैं ना छत्तीसगढ़ी, और ना ही भोजपुरी. अब जब फिल्म रिलीज़ होगी तब पता चलेगा की फिल्म बनाने का मकसद आखिर क्या था? तीन-तीन हीरोइन  भी आयीं  हैं मुंबई से. खैर... छत्तीसगढ़ के फ़िल्मकार भी भेडचाल के शिकार हैं. अभी तक तो सब ठीक ठाक चल रहा है. आगे पता नहीं क्या होने वाला है.