news one channel के नाम से कई महीने तक अपने ही स्टाफ को झांसा देने वाला ब्यूरो चीफ आख़िर पुलिस के हत्थे चढ़ ही गया। शहर की कई युवतियों और युवकों को नौकरी पर रखकर तीन महीने तक उन्हें तनख्वाह के लिए घुमाने वाला news one channel का ब्यूरो चीफ कमलेश बहुखंडी अब पुलिस की हिरासत में है। एक ४२० के मामले में मौदहापारा पुलिस ने परसों उसे गिरफ्तार किया था। कमलेश ने अपना मुचलका करवा लिया और घर लौटने की तैय्यारी में था तभी वायरलेस सेट पर चली एक सूचना ने उसे फिर मुश्किल में डाल दिया। एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी की चौकसी के कारण सिविल लाइंस पुलिस ने उसे फिर हिरासत में ले लिया।
गश्त पर निकले पुलिस दल ने उसे उठा लिया। कई दिनों से वारंट लेकर घूम रही पुलिस को आख़िर कमलेश मिल ही गया। सिविल लाइंस पुलिस के इलाके में ही कमलेश ने एक ऑफिस ले रखा था। पुलिस जब भी दफ्तर जाती। कमलेश का गार्ड पुलिस को बैरंग लौटा देता। पुलिस पहले इस बात को लेकर परेशान थी की कमलेश एक पत्रकार है और पत्रकार की गिरफ्तारी से बवाल खड़ा न हो जाए।
news one के कर्मचारी भी प्रेस क्लब के चक्कर काटने लगे थे। प्रेस क्लब के अध्यक्ष श्री अनिल पुसदकर को मैंने पूरे मामले की जानकारी दी तब कहीं जाकर सभी कर्मियों ने थानों में रिपोर्ट लिखवाने का फैसला लिया। मैंने भी दो तीन बार कमलेश से मोबाइल पर बात करके मामले को आपस में बैठकर सुलझाने की सलाह दी थी। इसी बीच पता चला की कमलेश जिस किराए की कार में चलता है, उसका भी कोई फड्डा है। कार का मालिक तो सीधा था लेकिन जिन लोगों के सामने उसने अपना दुखडा रोया वो लोग प्रभावशाली निकल गए। इसी दौरान एक और ४२० के मामले में उसकी गिरफ्तारी हो गयी और पुलिस को थाने में ही बैठकर उसके वारंट की तामीली का इंतज़ार नहीं करना पड़ा। अलग अलग थानों में हुई रिपोर्ट के कारण चौथे स्तंभ का मज़ाक उडाने उत्तराखंड से छत्तीसगढ़ आए कमलेश को हथकडी पहननी पड़ गयी। रात को उसने थाने में कई बहाने बनाये ताकि उसे अस्पताल में दाखिल कर दिया जाए। कमलेश भूल गया था की बाहर हम लोग उसकी खातिरदारी के लिए खड़े हैं और लूटपाट के बाद सबको ये दिन देखना ही पड़ता है। मुझे लगता है की चौथे स्तम्भ का मखौल उडाने वालों के लिए अब सज़ा का वक्त आ गया है। हितवाद में कुछ समय काम करके दुकानदारी नहीं चलायी जा सकती। पत्रकारिता एक मिशन है और इसका दोहन करने वाले शनैः शनैः निपटेंगे ही। आप भी अगर ऐसे लोगों को जानते हैं तो मुझे सूचित करें । सब मिलकर गन्दगी मिटायेंगे। ऐसी मछलियों को अब बाहर का रास्ता दिखाना ही पड़ेगा, जो तालाब पर बुरी नज़र बनाये हुए है।
News- 36 is a chhattisgarh's first video news agency. We have corrospondents in all 27 district in Chhattisgarh.We are having latest camera, edit set up with Trained Repoters and Camerapersons.
12 September 2009
05 September 2009
दिल्ली के दलाल, छत्तीसगढ़ के अलाल
इंडिया न्यूज़ के नाम पर वसूली के मामले ने एक बात तो साफ़ कर दी है कि अब दिल्ली के कुछ दलाल और छत्तीसगढ़ के अलाल अब एक हो गए हैं। दिल्ली के पत्रकार जहाँ दिन रात एक करके अपने channel की टी आर पी बढाने और अपने आपको साबित करने की होड़ में लगे हैं वहीँ छत्तीसगढ़ के पत्रकार भी राष्ट्रीय चैनलों में अपनी पैठ बढाने में जुटे हैं। खासकर छत्तीसगढ़ के ग्रामीण पत्रकार , कई महीनों से तनख्वाह की आस लगाये ये पत्रकार आज भी समस्याओं से जूझ रहे हैं। स्पर्धा के इस दौर में संवाददाताओं में भी ज़बरदस्त स्पर्धा है।
दिल्ली के दलाल और छत्तीसगढ़ के अलाल पत्रकार आखिरकार सक्रिय हो ही गए। ये पूरा एक गिरोह है। ये लोग सिर्फ़ पैसे वाले लोगों को पत्रकार बनाना चाहते हैं। आज पत्रकारिता और आर टी ओ की नौकरी एक बराबर हो गयी है। आर टी ओ में जाने के लिए एक अघोषित नियम है, उसकी प्रक्रिया पूरी करने के बाद ही सिपाही से लेकर अफ़सर तक की पोस्टिंग की जाती है। इस पूरे खेल में शामिल होते हैं कई दलाल और वो शख्स किसे आर टी ओ में जाना होता है। यही खेल अब पत्रकारिता में भी शुरू हो गया है। अब ये बात अलग है की आर टी ओ से लौटने के बाद उन्हें naxali इलाकों में जाना एक अनिवार्य नियम है। ये जानते हुए भी दिल्ली के कुछ दलाल और छत्तीसगढ़ के कुछ अलालों ने भी हाथ मिला लिया है। कुछ इन दलालों और अलालों की चपेट में भी आकर लुट भी चुके हैं । कुछ अपनी कुर्बानी का इंतज़ार कर रहे हैं । अब चिंतामणि का ही किस्सा ले लें। पिछले कुछ सालों से वो अखबारों से जुड़ा तो था। क्या ज़रूरत थी इलेक्ट्रोनिक मीडिया में चुपचाप आने , लेकिन पता नहीं दलालों और अलालों ने उसे क्या घुट्टी पिलाई, वो कुछ भी मानने को तैयार ही नहीं था। उसे अलाल ने कहा कि channel में काम मिलना आसान नहीं है। पी एस सी से भी ज़्यादा कठिन साक्षात्कार होता है दिल्ली में। पैसा दे दोगे तो कोई साक्षात्कार नहीं होगा, और channel प्रमुख सीधे आपको सारे doccument ख़ुद अपने हाथ से सौंपेंगे। कई दलाल और अलालों कि मिलीभगत का नतीजा ये हुआ कि पत्रकारों के मामले थानों तक पहुँचने लगे हैं। दूसरो को न्याय का भरोसा दिलाने वाले पत्रकार अब ख़ुद न्याय की आस में पुलिस के चक्कर काट रहे हैं।
छत्तीसगढ़ के लोगों को सीधा सादा और गरीब समझने वाले लोगों को कब अकल आएगी, पानी सर के ऊपर जाने के बाद chhattisgarhiya क्या करेगा इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है। दिल्ली की ये बीमारी chhattisgadhi पत्रकारों के लिए गले की हड्डी बनती जा रही है। पैसा लगाकर पत्रकार बनने वाले लोग न तो समाज का भला करेंगे न देश का। ये तो आर टी ओ में पोस्टिंग के बाद सिर्फ़ अपना पैसा निकालेंगे। इनके शिकार भी कई लोग होंगे। मिशन से कमीशन तक पहुँची पत्रकारिता को पता नहीं ये लोग कहाँ ले जाकर छोडेंगे? पत्रकारिता के इस अभियान को बाजारू बनाने के लिए पता नहीं क्यों लामबंद हो रहे हैं ये लोग? आज हर व्यवसायी या तो अखबार से जुड़ रहा है या पैसा देकर channel का ब्यूरो बनने की फिराक में लगा है, ये लोग एक नया उद्योग स्थापित करने में जुटे हैं, जो बेहद घातक है पत्रकारिता के लिए। पर फिक्र किसे है। जो पत्रकार पत्रकारिता में आने के लिए दिल्ली के संपर्क में हैं उसे अपना भविष्य अन्धकार में दिख रहा है।
आज पत्रकार ख़बरों की चर्चा करते नहीं दिखते, उमके लिए अब टार्गेट मायने रखता है। अब पत्रकारिता जब उद्योग की शक्ल अख्तियार कर रही है तो आओ हम भी पत्रकार लिखने की बजाय अपने आपको उद्योगपति लिखना शुरू करें । इन धन्ना सेठों की ख़बर आज नहीं तो कल ज़रूर बनेगी, मुझे पूरा विश्वास है।
छत्तीसगढ़ में जब से सरकार ने गरीबों को दो रुपये किलो चावल देना शुरू किया है, तब से अलालों का गढ़ होने लगा है छत्तीसगढ़ । काम क्यों करें भला ये लोग। गाँव में मजदूर नहीं मिल रहे हैं । शहरों का भी यही हाल है। लोग समझ गए हैं आराम और हराम का मतलब। इसी की हवा अलाल पत्रकारों को भी लग गयी है। कौन दिन रात मेहनत करे। किसी को टोपी पहनाओ और चलते बनो। अब इंडिया न्यूज़ के नाम से वसूली करने वाले उद्योगपति ज़रीन का ही मामला लें। छः महीने में उसने वो सब कुछ कर किया , जो कई पत्रकारों के लिए एक सपने जैसा ही है। घर ले लिया , ज़मीन ले ली। घर में नए फर्नीचर ला लिए। ब्लैक & व्हाइट और कलर टी वी हटाकर वहां plazma टी वी लगा लिया। कार खरीद ली। यानी छः महीने में दो तीन लोगों को चुना लगाकर वो बड़ा पत्रकार बन गया। अब तो उसकी दिनचर्या बदल गयी है। दिन भर लोगों से बचकर घूमना , किसी का मोबाइल नहीं उठाना- ये सब उसकी आदत में शुमार हो गया है। अब कैसा करेगा। पुलिस उसके पीछे लग गयी है। अब चाहे उसे ज़मीन बेचना पड़े या makaan , उसे इंडिया न्यूज़ वाला मामला clear करना ही पड़ेगा। जिसकी इज्जत होती है, वो उसे और badhaata है, अब जिसका इज्जत से कोई रिश्ता नाता ही नहीं है, वो यही सब कुछ तो करेगा। दिल्ली के दलालों और छत्तीसगढ़ के अलालों से मैं आखिरी निवेदन कर रहा हूँ । मत करो सरस्वती के साथ मजाक। मत करो के साथ खिलवाड़ । पत्रकारिता को बाजारू मत बनाओ। मत खेलो आग से। इस आगज़नी से ख़ुद तो jhulsoge , साथ में कई लोगों के दिल से निकली आग जलाकर राख कर देगी इस समाज को......
दिल्ली के दलाल और छत्तीसगढ़ के अलाल पत्रकार आखिरकार सक्रिय हो ही गए। ये पूरा एक गिरोह है। ये लोग सिर्फ़ पैसे वाले लोगों को पत्रकार बनाना चाहते हैं। आज पत्रकारिता और आर टी ओ की नौकरी एक बराबर हो गयी है। आर टी ओ में जाने के लिए एक अघोषित नियम है, उसकी प्रक्रिया पूरी करने के बाद ही सिपाही से लेकर अफ़सर तक की पोस्टिंग की जाती है। इस पूरे खेल में शामिल होते हैं कई दलाल और वो शख्स किसे आर टी ओ में जाना होता है। यही खेल अब पत्रकारिता में भी शुरू हो गया है। अब ये बात अलग है की आर टी ओ से लौटने के बाद उन्हें naxali इलाकों में जाना एक अनिवार्य नियम है। ये जानते हुए भी दिल्ली के कुछ दलाल और छत्तीसगढ़ के कुछ अलालों ने भी हाथ मिला लिया है। कुछ इन दलालों और अलालों की चपेट में भी आकर लुट भी चुके हैं । कुछ अपनी कुर्बानी का इंतज़ार कर रहे हैं । अब चिंतामणि का ही किस्सा ले लें। पिछले कुछ सालों से वो अखबारों से जुड़ा तो था। क्या ज़रूरत थी इलेक्ट्रोनिक मीडिया में चुपचाप आने , लेकिन पता नहीं दलालों और अलालों ने उसे क्या घुट्टी पिलाई, वो कुछ भी मानने को तैयार ही नहीं था। उसे अलाल ने कहा कि channel में काम मिलना आसान नहीं है। पी एस सी से भी ज़्यादा कठिन साक्षात्कार होता है दिल्ली में। पैसा दे दोगे तो कोई साक्षात्कार नहीं होगा, और channel प्रमुख सीधे आपको सारे doccument ख़ुद अपने हाथ से सौंपेंगे। कई दलाल और अलालों कि मिलीभगत का नतीजा ये हुआ कि पत्रकारों के मामले थानों तक पहुँचने लगे हैं। दूसरो को न्याय का भरोसा दिलाने वाले पत्रकार अब ख़ुद न्याय की आस में पुलिस के चक्कर काट रहे हैं।
छत्तीसगढ़ के लोगों को सीधा सादा और गरीब समझने वाले लोगों को कब अकल आएगी, पानी सर के ऊपर जाने के बाद chhattisgarhiya क्या करेगा इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है। दिल्ली की ये बीमारी chhattisgadhi पत्रकारों के लिए गले की हड्डी बनती जा रही है। पैसा लगाकर पत्रकार बनने वाले लोग न तो समाज का भला करेंगे न देश का। ये तो आर टी ओ में पोस्टिंग के बाद सिर्फ़ अपना पैसा निकालेंगे। इनके शिकार भी कई लोग होंगे। मिशन से कमीशन तक पहुँची पत्रकारिता को पता नहीं ये लोग कहाँ ले जाकर छोडेंगे? पत्रकारिता के इस अभियान को बाजारू बनाने के लिए पता नहीं क्यों लामबंद हो रहे हैं ये लोग? आज हर व्यवसायी या तो अखबार से जुड़ रहा है या पैसा देकर channel का ब्यूरो बनने की फिराक में लगा है, ये लोग एक नया उद्योग स्थापित करने में जुटे हैं, जो बेहद घातक है पत्रकारिता के लिए। पर फिक्र किसे है। जो पत्रकार पत्रकारिता में आने के लिए दिल्ली के संपर्क में हैं उसे अपना भविष्य अन्धकार में दिख रहा है।
आज पत्रकार ख़बरों की चर्चा करते नहीं दिखते, उमके लिए अब टार्गेट मायने रखता है। अब पत्रकारिता जब उद्योग की शक्ल अख्तियार कर रही है तो आओ हम भी पत्रकार लिखने की बजाय अपने आपको उद्योगपति लिखना शुरू करें । इन धन्ना सेठों की ख़बर आज नहीं तो कल ज़रूर बनेगी, मुझे पूरा विश्वास है।
छत्तीसगढ़ में जब से सरकार ने गरीबों को दो रुपये किलो चावल देना शुरू किया है, तब से अलालों का गढ़ होने लगा है छत्तीसगढ़ । काम क्यों करें भला ये लोग। गाँव में मजदूर नहीं मिल रहे हैं । शहरों का भी यही हाल है। लोग समझ गए हैं आराम और हराम का मतलब। इसी की हवा अलाल पत्रकारों को भी लग गयी है। कौन दिन रात मेहनत करे। किसी को टोपी पहनाओ और चलते बनो। अब इंडिया न्यूज़ के नाम से वसूली करने वाले उद्योगपति ज़रीन का ही मामला लें। छः महीने में उसने वो सब कुछ कर किया , जो कई पत्रकारों के लिए एक सपने जैसा ही है। घर ले लिया , ज़मीन ले ली। घर में नए फर्नीचर ला लिए। ब्लैक & व्हाइट और कलर टी वी हटाकर वहां plazma टी वी लगा लिया। कार खरीद ली। यानी छः महीने में दो तीन लोगों को चुना लगाकर वो बड़ा पत्रकार बन गया। अब तो उसकी दिनचर्या बदल गयी है। दिन भर लोगों से बचकर घूमना , किसी का मोबाइल नहीं उठाना- ये सब उसकी आदत में शुमार हो गया है। अब कैसा करेगा। पुलिस उसके पीछे लग गयी है। अब चाहे उसे ज़मीन बेचना पड़े या makaan , उसे इंडिया न्यूज़ वाला मामला clear करना ही पड़ेगा। जिसकी इज्जत होती है, वो उसे और badhaata है, अब जिसका इज्जत से कोई रिश्ता नाता ही नहीं है, वो यही सब कुछ तो करेगा। दिल्ली के दलालों और छत्तीसगढ़ के अलालों से मैं आखिरी निवेदन कर रहा हूँ । मत करो सरस्वती के साथ मजाक। मत करो के साथ खिलवाड़ । पत्रकारिता को बाजारू मत बनाओ। मत खेलो आग से। इस आगज़नी से ख़ुद तो jhulsoge , साथ में कई लोगों के दिल से निकली आग जलाकर राख कर देगी इस समाज को......
04 September 2009
इंडिया न्यूज़ के नाम पर झांसा, एक पत्रकार के नाम पर रिपोर्ट
छः महीने से चल रही उठापटक आखिरकार थाने जाकर ही समाप्त हुई। रायपुर के एक पत्रकार चिंतामणि गढ़वाल ने सहारा समय के पूर्व संवाददाता ज़रीन सिद्दीकी के ख़िलाफ़ गंज थाने के अलावा पुलिस के वरिष्ठ आधिकारियों को एक पत्र सौंप दिया है। चिंतामणि के आवेदन के अनुसार इंडिया न्यूज़ के नाम पर दिल्ली के कोई फारूक और रायपुर के ज़रीन सिद्दीकी ने उससे तीन लाख बीस हज़ार रुपये यह कहकर लिए कि वो उन्हें इंडिया न्यूज़ में छत्तीसगढ़ का ब्यूरो चीफ बना देंगे। आठ मार्च २००९ से चल रहा यह खेल आखिरकार आज ख़त्म हो ही गया। चिंतामणि ने एक आवेदन के साथ आधिकारियों को वो सी डी भी सौंपी है जिसमें फारूक और ज़रीन ने पैसों के लेनदेन कि बात स्वीकारी है और जल्दी से जल्दी उनका काम करवाने की बात कही है। चिंता के पत्र में इंडिया न्यूज़ दिल्ली के senior principal corrospondent मुकुंद शाही का भी उल्लेख है। चिंतामणि के इस आवेदन ने फ़िर से पुलिस और पत्रकारों को चिंता में डाल दिया है।
चिंता के पत्र पर गौर करें तो आठ मार्च २००९ को उसने ये राशि अपने साथी रवि अग्रवाल और अतुल्य चौबे के सामने महाराजा होटल फाफाडीह में ज़रीन को सौंपी थी। इसके अलावा ज़रीन के flight की ticket aur hotel ka bill bhi chinta ne polis ko saumpa hai..
चिंता के पत्र पर गौर करें तो आठ मार्च २००९ को उसने ये राशि अपने साथी रवि अग्रवाल और अतुल्य चौबे के सामने महाराजा होटल फाफाडीह में ज़रीन को सौंपी थी। इसके अलावा ज़रीन के flight की ticket aur hotel ka bill bhi chinta ne polis ko saumpa hai..
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