29 April 2014

बलात्कार……यह शब्द और कृत्य दहला देने वाला है। वैसे तो बलात् होने वाले कार्यों को ही बलात्कार की संज्ञा दी गयी है लेकिन यह कृत्य अमूमन महिलाओं के साथ ही होता आया है और लगातार हो भी रहा है।  इस पर रोक कैसे लगे, बलात्कारियों को कैसे पहचानें और उनकी सज़ा क्या हो ? इस पर कई बार बहस- मुबाहिसे हो चुकीं हैं। अब सवाल यह है कि देश को बलात्कार रहित कैसे बनाएँ ? मुझे व्यक्तिगत रूप से यह लगता है कि बलात्कार एक मानसिक बीमारी है जिसमें शरीर का  इस्तेमाल होता है। किसी महिला को चाहना और उसे न पाने की लालसा में भी आजकल यह कृत्य हो रहा है। महिलायें सुरक्षित कैसे रहें ? यह अब उन्हें सोचना होगा। अंग उघाड़ू कपड़े या अति रुप सज्जा से बचें या इतनी मजबूत रहें कि कोइ उनके साथ ऐसा - वैसा करने की सोच भी न सके। 
बलात्कार की खबर मिलते ही पहले तो मन पसीज जाया करता था। अब तो नक्सली घटना और बलात्कार एक जैसे हो गये हैं। न इसका हल कोई ढूंढना चाहता न इस बारे में कोइ बात करने को तैयार है। नक्सली अपनी मनमर्जी कर रहे हैं और बलात्कारी अपनी। अपना संयम क्यों खोता जा रहा है आदमी।  संतुष्ट क्यों नहीं है आदमी ? बलात्कार भले ही क्षणिक आवेश में हो जाने वाली प्रक्रिया है लेकिन समाज में दोनो की छिछालेदर तो होती ही है। पुरुष भले ही जल्दी सामान्य हो जाये लेकिन महिलाओं के लिये तो यह डूब मारने वाली बात होती है। उठते बैठते उसका दिमाग उलझा रहता है।  खासकर कुंवारी बच्चियां तो सीधे आत्मह्त्या जैसे कदम उठाने को आतुर रहती हैं। ऐसी बच्चियां एकांत ढूंढने लगती और मौन साध लेती हैं। पूरे परिवार में उथल पुथल मच जाती है। मामला छोटे इलाकों का हो तो और भी बात और भी गंभीर हो जाती है। 
बलात्कार के मामले में दोषी कोइ भी हो लेकिन यह एक घृणित कृत्य है और इसकी पाबन्दी पर बात और पहल होनी ही चाहिए। बलात्कार के कुछ मामलों पर युवतियां भी दोषी पायी गयी हैं। समाज उन्हें बख्श देता है। पत्रकार होने के नाते कई मामले मैने भी पढ़े सुने हैं।  एक बात आज तक समझ में नहीं आयी कि युवतियां ऐसा कर कैसे लेतीं हैं ? कुछ तो मजबूरियां रही होंगीं यूँ कोइ बेवफ़ा नहीं होता। पुलिस के पास मैंने कई प्रकरण ऐसे भी देखे हैं जिसमें बच्चा होने के बाद भी बलात्कार की एफ़ आई आर दर्ज हुईं हैं।  अब इसे क्या कहेंगे ? इतनी भोली क्यों होतीं हैं महिलायें कि कोइ भी उन्हें झांसा देकर उसके शरीर से खेल ले। कई मामलों में यह बात भी सामने आई कि युवती ने शादी से इंकार किया तो या तो घमंडी मर्द ने उसका गला घोंट दिया या उसकी आबरु लूट लीं।  किस युग में जी रहे हैं हम ? कुल मिलाकर महिलाओं को "भोग्या" समझना बन्द करना होगा। महिलाओं को भी अपनी हदें पहचाननी होंगी। बलात्कार जैसी घटनाओं से घर , समाज , राज्य और देश सब बदनाम हो रहे हैं।