19 January 2010

छत्तीसगढ़ की पुलिस या राजनीतिक सलाहकार...?

राजनीति में जब कोई बड़ा घोटाला होता है सत्ता पक्ष के लोग विपक्ष का कोई पुराना या घिसा पिटा घोटाला उजागर करके अपना घोटाला छिपाने की कोशिश करते हैं। यही करती है छत्तीसगढ़ की पुलिस भी। बड़े बड़े हत्या और डकैती के मामले जब सुलझा नहीं पायी तो फरमान जारी कर दिया कि अब यहाँ स्कार्फ प्रतिबंधित होगा। राजधानी रायपुर में इसकी शुरुआत भी कर दी गयी। मैं स्कार्फ पहनने वालों का ना तो विरोधी हूँ ना हिमायती। विरोध इस बात का है कि पुलिस लोगों का ध्यान क्यों बंटा रही है। अब पुलिस आरोपियों कि पड़ताल करने की बजाय स्कार्फ पर केन्द्रित है। धमकी मिली है कि आगे कड़ाई भी करेगी पुलिस।
हमारे शहर के लोग भी बड़े अजीब हैं धूल से डरते भी हैं और रायपुर में रहते भी हैं। स्कार्फ का फैशन तो शुरू ही नहीं होने देना था। इसकी आड़ में आरोपी पुलिस की नज़र से और जवान लड़कियां अपने घर वालों और अपने पुराने बॉय फ्रेंड की नज़र से बच जा रही हैं। पुलिस को ऐसे लोगों को टारगेट करना चाहिए। स्कार्फ के कारण कई सारी तकलीफें एक साथ बढ़ी हैं। पुलिस को सहयोग की ज़रुरत है। अगर स्कार्फ के अन्दर छिपे आरोपियों को पकड़ना ही है तो ऐसे पुराने सिपाहियों की पोस्टिंग चौक चौराहों पर करनी होगी जो शातिर अपराधियों को पहचानते हैं, कल के रंगरूट सिपाही तो अपने अफसरों तक को नहीं पहचानते। आम लोगों से भी मदद की गुहार लगा रही है पुलिस । पुलिस को अपनी शैली बदलनी होगी, तभी उसे सहयोग मिल पायेगा। जब तक आम आदमी पुलिस को अपना दोस्त नहीं समझेगा तब तक अपराधों को रोकना किसी के बस में नहीं है। अपराधों से बेख़ौफ़ हो गयी राजधानी में मुझे तो व्यक्तिगत रूप से लगने लगा है की पुलिस को कुछ एनकाउन्टर भी करना पड़े तो सरकार को सहयोग देना चाहिए। अब कोई अपराधी गिरफ्तार होता है तो उसका ना तो जुलूस निकला जा सकता ना सरे आम पुलिस गुंडों को मारकर उनकी गुंडागर्दी ख़त्म करने की कोशिश कर सकती। मानवाधिकार के डर ने दब्बू बना दिया है पुलिस को। ऊपर ने नेताओं का दबाव। घर से गुंडे के थाने पहुँचने के पहले कोई ना कोई मंत्री थाने फोन करके कह चुका होता है की अपना आदमी है, चुनाव में मदद करता है, छोड़ देना। ऐसी हालत में अपराधों को रोकने की पहल कैसे होगी। या तो सबको मिलकर कोई सार्थक पहल करनी होगी या छत्तीसगढ़ को भी भगवान् भरोसे छोड़ना पड़ेगा.....