24 July 2010

"छत्तीसगढ़ की बेटी " भी अब जायेगी defence corrospondentce course में



रायपुर की कुमारी संगीता गुप्ता ने साबित कर दिया है देश में चाहे जो भी स्थिति हो, लेकिन छत्तीसगढ़ में महिलाएं पीछे नहीं हैं. अपनी काबिलियत के आधार उसने आवेदन भरा और देश के ३४प्रतिष्ठित चैनल और उसके पत्रकारों के बीच उसे भी जगह मिल गयी. छत्तीसगढ़ के लिए ये गौरव की बात है की संगीता ऐसी पहली प्रतिभागी है जिसे यहाँ से डिफेन्स corrospondents course में शामिल होने का मौका मिल गया.मीडिया हाउस और मेरा सौभाग्य बस इतना है की संगीता की दौड़भाग में उसके घर वालों के साथ सहभागी रहे.
मूलतः रायपुर निवासी संगीता की पढाई- लिखाई यूँ तो दिल्ली में हुई, लेकिन आज भी वो अपने आपको छत्तीसगढ़ की बेटी ही मानती है. उसके पिता आज भी दिल्ली में हैं लेकिन उसके संघर्ष में माता जी साथ में हैं. दिल्ली में आई. बी. एन. से internship करने के बाद  रीजनल न्यूज़ चैनल वाच न्यूज़ से रायपुर में पत्रकारिता की शुरुआत करने वाली संगीता के मन् में कुछ नया करने की चाह थी, जब वोईस ऑफ़ इंडिया में मेरी उससे मुलाक़ात हुई तभी उसके इरादे भांप गया था मैं. आम तौर पर लड़कियों को कई मामलों में मैंने भागते देखा है. संगीता के मन् में कुछ सीखने की लगन थी, वो साबित कर देना चाहती थी, की वो आज नहीं तो कल कुछ ना कुछ कर दिखायेगी. आज भी वो यही कहती है की अभी तो सिर्फ शुरुआत है. मंजिल दूर है. वाच टी. वी. बंद होने के बाद से बेरोजगार बैठे कुछ ख़ाली दिमाग पत्रकारों ने उसे मेरे विरुद्ध बरगलाया भी और कई रास्ते भी दिखलाये. उसने किसी की एक ना सुनी और मुझसे मेरे अनुभवों का लाभ लेते हुए छायांकन, विडियो सम्पादन, फिल्म का प्रारंभिक ढांचा बनाना, और अच्छी स्क्रिप्ट लिखना सीख ही गयी.बहरहाल १६ अगस्त २०१० से १७ सितम्बर २०१० तक ये corrospondents course सेना की विभिन्न इकाइयों में शुरू हो जायेगा. अपनी इस सफलता का श्रेय वो अपने पिता श्री अरविन्द गुप्ता और माता श्रीमती कमला देवी को देती है. वर्तमान में कुमारी संगीता गुप्ता , मीडिया हाउस की managing director है. दिल्ली, मुंबई, उत्तरप्रदेश और छत्तीसगढ़ में मीडिया हाउस की कई शाखाएं निरंतर कार्यरत हैं. आप भी इस नवोदित प्रतिभा का उत्साह वर्धन करें.

16 July 2010

पुलिस वाला चोरहा अउ चोर हा पुलिस बने हे..

मैं बार बार कहता और लिखता रहा हूँ की छत्तीसगढ़ी दर्शकों को मूर्ख मत समझो. लेकिन लोग हैं की मेरी बात मानते ही नहीं. आज अपना भाग्य आजमाने एक और छत्तीसगढ़ी फिल्म " मया दे दे मयारू" रिलीज़ हो रही है. सबको इस फिल्म से उम्मीदें हैं. सतीश जैन की एक और फिल्म " टूरा रिक्शावाला "  ने सफलता के नए झंडे गाड़ दिए हैं. अब प्रेम चंद्राकर की फिल्म  "मया दे दे मयारू" को भी इससे ही कुछ उम्मीद है. इस फिल्म की कई खासियतें हैं. पहली ख़ास बात ये है की इस फिल्म में एक रियल पुलिस अधिकारी रील लाइफ में नज़र आएगा. अधिकारी भी कोई चना मुर्रा नहीं एक धाकड़ पुलिस वाला है. रायपुर शहर में गुंडे इस अधिकारी का नाम सुनते ही दुबक जाते थे. शशिमोहन नाम है इस अधिकारी का. ३० मार्च २०१० तक इस अधिकारी ने बीमारी के नाम से छुट्टी ली और कई नाटक और एक फिल्म में काम किया है. रायपुर से मुंबई जाकर रह रहे एक हिट कलाकार संजय बत्रा भी इस फिल्म में एक सटीक किरदार निभा रहे हैं. इस फिल्म के प्रचार के लिए सभी हथकंडे अपनाए गये हैं. अब देखना है की दर्शकों का कितना प्यार इस फिल्म को मिलेगा. इस फिल्म को हिट करने के लिए दिल्ली-६ में इस्तेमाल हो चुका एक " गाना सास गारी देवे " को ममता चंद्राकर ने आवाज़ दी है. ये दुर्भाग्य है की जब कोई हमारी संस्कृति को मुंबई में बैठकर झाँक लेता है तब हमें समझ आता है की अरे.. ये तो हमारा कल्चर था. छत्तीसगढ़ी मर्म को समझने वाले प्रेम चंद्राकर ने निःसंदेह अपनी खासियत इस फिल्म में भी बनाये रखी है. एक -दो नंबर के लिए संघर्ष कर रहे अनुज भी इस फिल्म में हीरो हैं. अपने हर किरदार में जान डालने की क्षमता रखने वाले पुष्पेन्द्र सिंह भी एक विलेन  के रूप में इस फिल्म में अपनी छाप छोड़ेंगे. वाहन और ज़मीन से जुड़े अलक राय ने ये फिल्म produce की है. इस फिल्म को अभी देखा नहीं गया है लेकिन पुलिस  के एक जवान को एक बात बिलकुल नागवार गुजरी है की उनके साहब ( कंठी ठेठवार )  फिल्म में न्याय मांगने के लिए डायलोग बाजी कर रहे हैं और एक मंत्री का भाई उसमें इंस्पेक्टर बना है. उसने पोस्टर देखा और समीक्षा कर दी की " पुलिस वाला चोरहा अउ चोर हा पुलिस बने हे. नई चलही पिक्चर ......" ऐसे सीधे और बेबाक हैं छत्तीसगढ़ के लोग. मुझे तो बैठे बैठाये heading मिल गयी.  खैर ...फिल्म तो आज लग गयी है. सोमवार तक बॉक्स ऑफिस अपना पिटारा खोल देगा. लेकिन ये फिल्म चलनी चाहिए. एक पुलिस वाला जब रोल कर सकता है तो क्या एक मंत्री के भाई को अभिनय करने का अधिकार नहीं है. वो भी तो कलाकार है, अब निजी ज़िंदगी को रुपहले परदे पर तुलना करना गलत है. एक हफ्ते बाद पता चलेगा फिल्म चली या नहीं चली . चली तो किन विशेषताओं के कारण , और नहीं चली तो कौन से ऐसे कारण थे जिसे प्रेम चंद्राकर के सहायक निर्देशक समझ नहीं पाए. मेरी व्यक्तिगत शुभकामनाएं " मया दे दे मयारू" की पूरी टीम के साथ है.

14 July 2010

छत्तीसगढ़ी फिल्मों की शुरुआत करने वाले कन्हैया पंजवानी नहीं रहे..


ज अल सुबह ६.३९ पर एक एस एम् एस मिला. श्याम चावला का एस एम् एस था. लिखा था कन्हैया पंजवानी की अंतिम यात्रा आज ११ बजे उनके निवास से राजेंद्र नगर श्मशान के लिए रवाना होगी. एस एम् एस पढ़ते ही मन् अजीब सी खामोशी  में डूब गया. मैं अकेले रोते रोते सोचने लगा की अब हमारे कामों की अच्छाइयां और बुराइयाँ कौन निकालेगा. समय के साथ अपनी पहचान खोते रायपुर या छत्तीसगढ़ के लोग जीते जी कन्हैया भैया  की विशेषताएं जान ही नहीं पाए. अब पता नहीं क्यूँ लगने लगा है की कुछ काम धाम करने की बजाय मौत का इंतज़ार करना बेहतर है. पहले कीर्ति आयंगार को कन्धा दे आये, हाल ही में प्रदीप पोद्दार को और अब कन्हैया भैया . ईश्वर के न्याय पर अब संदेह होने लगा है. कन्हैया भैया के पिता पूरी तरह से टूट गये हैं. मैं बाकी लोगों की नहीं जानता पर इतना ज़रूर जानता हूँ की मेरी हर गतिविधि पर उनकी नज़र रहती थी. मैं खुद ही उन्हें बुलाकर अपना नया क्रिएशन दिखा दिया करता था.
  आज मन् में बड़ी हलचल है. कल दिन भर भी अजीब सी बेचैनी में गुज़रा. संदेह था की कुछ गड़बड़ होने वाला है और हो ही गया. अब हमें छूट गलियां देकर हमारी तारीफ करने वाली आवाज़ आज खो गयी. संघर्ष करते करते शायद थक गये थे कन्हैया भैया. पैरालिसीस  का attack पड़ने के बाद मैं भी पहली बार उन्हें इस हालत में देखकर शायद इतना डर गया था की दोबारा उनकी तबियत तक पूछने नहीं गया. वो बोल नहीं पाते थे बहुत कुछ कह देना चाहते थे. उनको देखकर लौटा तो कई बार रोया. उनके स्वास्थ्य की  ख़बरें तो मिलती रहती पर मैं उन्हें दोबारा देखने का साहस नहीं जुटा पाया. आज तो जाना ही होगा. वो नहीं बोलेंगे ना? कोई बात नहीं . बुरा समय एक और नासूर देकर गया ना?
  हौसला ना तो किसी के बोलने से बढ़ता ना कम होता.उसे अन्दर से ही कहीं जगाना होता है. जगायेंगे.. और क्या करेंगे. काम के मामले में समझौता नहीं करने की हिदायत हमें उन्होंने ही दी थी. जो काम अच्छा है उसे अच्छा और जो बुरा है वो बुरा कहना भी उन्होंने ही हमें सिखाया और इस आदत का खामियाजा खुद भी भुगतते रहे और हमें भी ऐसा ही बना दिया. आज अपने या अपने काम के बारे में कौन बुरा सुनना चाहता है. लोग तो बस भाग रहे हैं. छत्तीसगढ़ की पहली वीडियो फिल्म " जय माँ बम्लेश्वरी" का छायांकन और सम्पादन कन्हैया भैया ने ही किया था. उस दौर में सिर्फ वी एच  एस था. और उस पैटर्न  में एडिट करना बड़ा कठिन काम था. उस समय की सुपर डुपर हिट फिल्म देने के बाद भी वो एकदम सामान्य  रहे.  फिर हमारे साथ उन्होंने मध्यप्रदेश की पहली वीडियो न्यूज़ मैगजीन " जनऊला " का सम्पादन किया. जब छत्तीसगढ़ी फिल्मों का दौर शुरू हुआ तो कन्हैया भैया ने भी बतौर producer " तुलसी - चौरा" का निर्माण किया. स्क्रिप्ट के समय कुछ सीन और कुछ मुद्दों को लेकर मेरा उनसे विवाद हो गया. मैंने उनसे बातचीत बंद कर दी. बाद  में एक दिन वो घर आये और मुझे समझाकर तुलसी - चौरा के पोस्ट production के लिए राजी किया. जब फिल्म नहीं  चली  तो  फिर एक दिन घर आये और कहा की जिस सीन और मुद्दों पर तुने आपत्ति जताई थी , वो वाजीब थी.  
  ऐसे थे कन्हैया भैया. इस बीच कुछ लोग उनके सफ़ेद बाल का इस्तेमाल करने लगे थे . कुछ भी अंड बंड करने की बजाय वो ख़ाली रहना पसंद करते थे. हमें भी यही सीख दी. मै उम्र में उनसे कम से कम २० साल छोटा हूँ पर किसी भी फिल्म, सीन या एल्बम पर वो मुझे खुलकर सुनते थे. उन्हें मेरे साथ और मुझे उनके साथ काम करने में खूब मज़ा आता था.ढेर सारे कीससे हैं जो अब कसक बनकर चुभते रहेंगे. आज से सब मज़ा ख़त्म. अब खुद बनाओ ,खुद समीक्षा करो, खुद देखो. हमारी इसीलिये भी पटती थी , क्योंकि जो उन्हें अच्छा नहीं लगता था वो मुझे भी कभी  अच्छा नहीं लगा.  और जो मुझे अच्छा लगा वो भी उसकी तारीफ़ करते नहीं थकते थे. विचारों में समानता हमारी खासियत थी. आज सब ख़त्म हो गया. ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे और हमारी भी आर ए सी क्लीयर करे. आमीन . 

11 July 2010

ऐसा नहीं था मैं..- दुर्योधन

ईरा फिल्म के साथ मिलकर एक नयी हिंदी फिल्म "सुयोधन" की शुरुआत हमने की है. महाभारत अपने कई चरित्रों के कारण चर्चित रहा है. महाभारत में  दुर्योधन के द्वंद्व को हम एक हिंदी फिल्म की शक्ल  में उतार रहे हैं. हो सकता है विवाद की स्थिति बने या हो सकता है हमें समर्थन भी मिले. इसी उहापोह के बीच पूरी शिद्दत से मैंने और अमित जैन ने इस फिल्म पर गंभीरता से काम करना शुरू कर दिया है. आप  क्या सोचते हैं , कृपया सुझाव ज़रूर दें. इसकी स्क्रिप्ट हम तैयार कर रहे  हैं लेकिन डायलोग का ज़िम्मा होगा आप सभी पर.. बस.. थोड़ा सा इंतज़ार..प्रोमो आपके सामने है..... क्या आप भी दुर्योधन के इस द्वंद्व में उनके साथ हैं?  

07 July 2010

एड्स का खतरा छत्तीसगढ़ी फिल्मों में भी...

 खिर वही हुआ, जिसका डर था. छत्तीसगढ़ी फिल्मों से जुड़े एक निर्माता को एड्स हो ही गया. इस निर्माता के घर वालों ने अपनी संतुष्टि के लिए कई और पैथोलोजी लैब में परीक्षण करवाया. अफ़सोस की बात ये रही की सभी जगह उनका एच . आई. वी. पाजीटिव ही निकला .अब इस निर्माता से जुड़े लोग इस बात का पता लगाने जुटे हैं की ये बीमारी आखिर यहाँ आयी कैसे? इसी डर से उस निर्माता को अब तक इसकी जानकारी भी नहीं दी गयी है.


अब सवाल ये खड़े हो रहे हैं की मुंबई से आने के एक हफ्ते बाद अचानक इस निर्माता की तबियत क्यों खराब हुई. एक समारोह के बाद जब उनकी तबियत कुछ ज्यादा बिगड़ी तो घर वालों ने चिकित्सकीय सलाह ली और तुरंत उनकी रक्त जांच करवाई गयी. जब एक प्रतिष्ठित लैब ने उन्हें एच आई. वी. की पुष्टि की तो घर वाले दहल गये. आनन् फानन में कई और लैब में उनका रक्त जंचवाया गया. सभी ने एक सुर में इस निर्माता को एड्स रोगी करार दिया. घर वाले समझ नहीं पा रहे हैं की इस बीमारी ने उनके शरीर में जगह कहाँ बनाई. मुंबई में या रायपुर में? इस चक्कर में निर्माता के आसपास रहने वाले उन नायिकाओं पर संदेह कर रहे हैं, जिनके संपर्क में ये निर्माता रायपुर और मुंबई में संपर्क में रहा. घर वाले चाहते हैं की यदि इस बात की पुष्टि जल्द से जल्द हो जाये तो उन नायिकाओं को छोलिवूड से दूर रखा जाये. जब मुझे इस बात की जानकारी लगी तो मैंने खुद इस निर्माता से जुड़े लोगों से बात की. 


घर वालों के साथ सबसे बड़ी दिक्कत ये है की ना तो ये बात वो लोग हजम कर पा रहे हैं ना उलटी कर पा रहे हैं. शैलेन्द्र नगर के आसपास भी फिल्मों के निर्माण को लेकर काफी नायिकाओं का आना जाना लगा रहता है. आसपास के कई फार्म हाउस और कुछ प्रतिष्ठित होटल में भी नायिकाओं को ठहराया जाता है. अब निर्माता के घर वालों को हर नायिका पर संदेह हो रहा है. इसमें ज्यादा संदेह उन नायिकाओं पर किया जा रहा है, जो स्ट्रगल करने मुंबई गयीं और वापस रायपुर में आकर काम कर रही हैं. काम की तलाश और आस में निर्माताओं के चक्कर लगाने कुछ संदिग्ध छत्तीसगढ़ी  नायिकाएँ भी संदेह के दायरे में हैं.  अब घर वालों की चिंता ये है की इतनी बड़ी बात छुपायें तो छुपायें कैसे? 


जो होना था वो हो चुका है. अब घर वाले गुपचुप तरीके से इस निर्माता के उपचार की विधियाँ ढूंढ रहे हैं. ईश्वर उनका साथ दे बाकी लोग जो असुरक्षित यौन सम्बन्ध बनाने में जुटे हैं उन्हें अब अपनी ये आदत बदलनी ही होगी. दूसरी पारी में जब छत्तीसगढ़ी फ़िल्में एक नया आयाम छूने की कोशिश कर रहीं हैं, ऐसे में एक गंभीर और ला इलाज बीमारी का पदार्पण एक दुःख भरी खबर है. एक तरह से छत्तीसगढ़ी फिल्म से जुड़े लोग सकते में हैं. संदेह का ठीकरा उन हीरोइनों पर भी फूट सकता है, जिन्हें या तो लगातार काम मिल रहा है या जो काम के सिलसिले में कहीं भी जाने को तैयार रहती हैं. समय आने दीजिये आप को भी पता चल जायेगा की ये निर्माता आखिर है कौन? अपनी तो ना किसी से दोस्ती ना किसी से बैर वाला रोल है. खबर थी, सो आप लोगों के साथ शेयर कर लिया. और हाँ ये खबर १०० प्रतिशत सच है ना. पैथोलाजी  लैब का प्रमाण-पत्र देख आया हूँ मैं. हे ईश्वर अब तू ही बचा हमारे लोगों को. ताकि वो तेरी आराधना में कमी ना करें.