21 October 2009

सपना पूरा हुआ.. जोसेफ भैय्या का..

जब मैं पैदा हुआ , तब जोसेफ भैय्या नवभारत में सिटी चीफ हुआ करते थे। मुझे पता है कि उम्र तजुर्बे के आड़े कभी नहीं आती। मेरा सौभाग्य रहा है कि मुझे गुरु हमेशा अच्छे मिले। नाटकों से जुडा तो स्वर्गीय हबीब तनवीर मेरे सामने थे। संगीत की शिक्षा पाने गया तो सरस्वती देवी जैसी माँ स्वर्गीय डॉक्टर अनीता सेन साक्षात थीं और यहीं आर्शीवाद मिला सोहन दुबे जी का। छायांकन और सम्पादन की बारी आयी तो जमाल रिज़वी और कन्हैया पंजवानी ने मुझे हाथों हाथ लिया। पत्रकारिता से जुडा तो एम् ए जोसेफ के दर्शन हुए। भगवान ऊपर से लाख कोशिश कर ले, नीचे के लोग एक अलग दुनिया जी रहे होते हैं। धर्म , कर्म , जात और संप्रदाय से कोसों दूर। मुझे ईश्वरीय आर्शीवाद ही था जो मुझे अच्छे गुरुओं का सानिध्य मिलता रहा । आज जो भी पढ़ लिख रहा हूँ वो जोसेफ भैय्या का ही आर्शीवाद है। अगर वो मेरी लिखी ख़बर को बार बार फाड़ कर कचरा दान में नहीं डालते या ज़मीन पर नहीं फेंकते तो आज मैं अच्छा पत्रकार नहीं होता, उस समय बुरा ज़रूर लगता था लेकिन आज बहुत अच्छा लगता है। मैं जब भी कोई ख़बर उनके सामने लिख कर रखता मेरी साँस अटकी रहती थी, पता नहीं क्या बोलेंगे। फेंक कर कहेंगे फ़िर से लिखो। उनके साथ कई अखबारों में काम करने का मौका मिला। वो हर जगह मेरी सिफारिश करते। जब प्रखर टी वी शुरू हुआ तो उन्होंने मुझसे साफ़ कहा था कि अब तेरा ऋण चुकाने का वक्त आ गया है, मैं फ़िल्म , वृत्त चित्र निर्माण और इलेक्ट्रोनिक मीडिया में बहुत आगे जा चुका था । उन्होंने मुझसे कहा था अब ये काम तू मुझे सिखा ।
....खैर ये तो हुई पुरानी बात। लेकिन सच ये है आज जिस ओवर ब्रिज का शिलान्यास मुख्यमंत्री ने किया उसका सपना जोसेफ भैय्या ने ही देखा था। नवभारत के बाद वो जहाँ भी गए। सब जगह उन्होंने इस बात के लिए आवाज़ बुलंद की कि टाटीबंध के पास एक ओवर ब्रिज का निर्माण होना ही चाहिए,.आज उनका सपना साकार हुआ है। मैं आज ख़ुद ओवर ब्रिज घूमकर आया हूँ । मेरी सदिच्छा थी कि मेरे गुरु का सपना पूरा हो , लेकिन दलाल पत्रकारों के बीच हम अपनी बात रख नहीं पाये।
हर इंसान का एक सपना होता है। आज उनका सपना पूरा हुआ। कुछ साल पहले भाभी जी की मौत के समय भी हम साथ थे। कई बार हमें लगता था कि जोसेफ भैय्या अपने स्वार्थ के लिए लिखते हैं , लेकिन आज जब वहां जाकर लोगों से बातचीत की तो लगा कि ये सपना सबका था, लेकिन आवाज़ बुलंद करने वाले जोसेफ भैय्या ही थे। उस समय पत्रकार की हैसियत कलेक्टर से कम नहीं थी। मोहल्ले में किसी पत्रकार का रहना पूरे मोहल्ले के लिए महफूज़ समझा जाता था। छोटी छोटी सी बात पर पूरा मोहल्ला पत्रकार के घर पहुँच जाता था। तनख्वाह भले कम थी पर जलवे में कोई कमी नहीं आती थी।
हम कई बार उनकी पीठ के पीछे उनकी बुराई किया करते थे कि जोसेफ भैय्या मूर्खता कर रहे हैं। ख़ुद अपने आने जाने के लिए ओवर ब्रिज कि मांग कर रहे हैं। उस समय वहां कि सूनसान पड़ी सड़कों पर विद्युत व्यवस्था पर भी खूब लिखते थे जोसेफ भैय्या।आज उनका सपना पूरा हुआ। इस सपने की एक हकदार भाभी जी हमारे बीच नहीं हैं फिर भी हम उन्हें नम आंखों से बिदाई देते हुए हौसला रखते हैं कि दृढ़ विश्वास के साथ सोचे हुए सपने आज नहीं तो कल साकार होकर ही रहेंगे।

बाबूजी की मौत.. और मज़ाक ...हद्द है...

....और बाबूजी नहीं रहे। एक ढाबा संचालक की हत्या से इस बार कोई सनसनी नहीं मची। इस हत्या ने लोगों को सोचने पर मजबूर कर दिया की कलयुग है । अब कुछ भी हो सकता है। बाबूजी यानी ढाबे के मालिक। टाटीबंध रोड का ये ढाबा कई मायनों में अनूठा था। यहाँ शुरू से शराब प्रतिबंधित थी। अपने परिवार को लेकर आप वहां बेफिक्र होकर आ जा सकते थे। जब छत्तीसगढ़ नहीं बना था तब से एम् पी ढाबा यहाँ चल रहा था। दुर्ग में अमर किरण से नौकरी करके लौटते वक्त हम लोगों ने कई बार यहाँ भोजन किया। राज्य बनने के बाद भी कई बार परिवार के साथ या कभी दोस्तों के साथ यहाँ खाने का मौका मिला। मैं जब भी वहां जाता उनके मालिक को हर बार इस बात के लिए साधुवाद देता की आपने ढाबा तो नाम रखा है लेकिन ढाबे की खासियत से इसे दूर रखा है। कई बार गुस्सा भी आता था जब कुछ दोस्तों की जिद पर उनके साथ शराब खरीदने भिलाई या दुर्ग तक जाना पड़ा। ऐसा लगता था की यही शराब मिल जाती तो उतने दूर क्यों जाना पड़ता।
......बाबूजी के एक बाजू में डंडा हमेशा तैयार रहता था। कारण पूछने पर वो हंस दिया करते। कल जब इस बाबूजी की असलियत पता चली तो अवाक रह गया । साला ऐसा था बाबूजी। वहीँ के एक नौकर ने बाबूजी की हत्या कर दी। बाबूजी शब्द भी उसी नौकर का दिया हुआ है। हमारा कोई सम्बन्ध नहीं था उनसे। नौकर की मानें तो बाबूजी उसके साथ अनाचार किया करते थे। रोज़ रोज़ की हरकतों से तंग आकर उसने निबटा दिया अपने बाबूजी को। अब बाबूजी हंसी का पात्र बन गए हैं । लोग अब इसी नाम से ताने भी मारने लगे हैं..कल के कल कुछ नयी गालियाँ भी बन गयी। दिन भर जहाँ भी गया सब बाबूजी की मौत पर अपने नए dialogue सुनाने लगे। इस हत्या ने एक बात की तो सीख दी की हर इंसान जैसा दिखता है ज़रूरी नहीं है की वह वैसा ही हो जैसा आप उसके बारे में सोचते हैं. कुछ बुजुर्ग जो बाबूजी को जानते थे वो इस बात पर अफ़सोस करते ज़रूर दिखे की अचानक बुड्ढा ठरक कैसे गया। मरने वाली जान की आत्माएं सम्माननीय हो जाती हैं पर बाबूजी के साथ ऐसा नहीं हुआ। खैर जो जैसा करेगा वैसा भरेगा । लेकिन बाबूजी की ऐसी मौत ने उनके पुराने एल्बम की सारी फोटो को झुठला दिया है।

20 October 2009

अब लाइन मिली जी २४ घंटे छत्तीसगढ़ को.. आख़िर सवाल सरकारी विज्ञापन का है.

मध्यप्रदेश के दौर में छत्तीसगढ़ में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की पहल करते वक्त ही मुझे पता था कि ये लाइन आगे बढेगी और आने वाले समय में अच्छे पत्रकारों का टोटा होगा। ऐसा हुआ भी। बाहर के लोग भले ही छत्तीसगढ़ के लोगों को नॉन टेक्नीकल बोल - बताकर उन्हें मूर्खों की श्रेणी में रखें लेकिन मुझे पता है की एक न एक दिन ये बात भी लोगों को समझ में आएगी की अपने आपको श्रेष्ठ बताने के लिए दूसरों को मूर्ख साबित करना कितनी बड़ी मूर्खता है। १९८६ से जनऊला की शुरुआत करते समय लोगों ने हमें पागल घोषित किया था। आज उसी मीडिया के पीछे लोग पागल हैं। कई चैनलों को शुरू और बन्द होते देख एक बात तो बहुत अच्छी तरह से साफ़ हो गयी की ये पूरा खेल पैसों का है।
छत्तीसगढ़ में जब १३ माह पहले जी २४ छत्तीसगढ़ ने दस्तक दी तभी समझ में गया था कि आगे जाकर इसका होना क्या है। बाहरी लोगों के मन् में जो आया वो किया और अब सबको अपनी औकात पता चल गयी है। यही लोग हैं जिनके कारण मीडिया में इस channel का नाम जी २४ घंटे अफवाह रखा गया। सात नक्सली मरते हैं तो यहाँ चालीस कि ख़बर चलती है। अधिकृत तौर पर पुष्टि हो जाने बाद भी एंकर को बताने में शर्म नहीं आती कि दरअसल मरे सात ही हैं कोई बच्ची रिंग रोड में घायल होती है तो उसे यहाँ मृत बताकर स्क्रॉल चला दिया जाता है। लोकल लोग field में शर्मिंदा होते फिरते हैं। करें तो करें क्या? इसी channel में दिन पहले भिलाई को जिला बताया गया था। एक ख़बर में एंकर ने कहा था कि भिलाई के जिला पुलिस अधीक्षक ने इस मामले की जानकारी दी। फिर ख़बर में aston में जिला पुलिस अधीक्षक दुर्ग लिखा हुआ आया। नवरात्री के बाद जंवारा विसर्जन में झूपना और बाना धरना इस channel को अन्धविश्वास लगता है। अरे भाई आप लोग यहाँ रोजी रोटी के लिए आए हो। नए पत्रकार हो तो यहाँ के वरिष्ठजनों से सीखो। पूछो उनसे कि दरअसल है क्या छत्तीसगढ़? धान घोटाले की ख़बर तो जबरदस्त थी। channel की टी आर पी तो बढ़ी लेकिन इनके उद्योगों की विद्युत व्यस्था ठप्प हो गयी। अलबर्ट पिंटो की तरह मुख्यमंत्री डॉक्टर रमन सिंह को पहली बार लोगों ने गुस्से में देखा। सरकार सरकार होती है। उद्योग इसके अभिन्न अंग होते हैं फिर बदमाशी किसने की? खैर रोजाना छोटी बड़ी गलतियों के साथ अब channel को line मिल गयी है। आख़िर क्यों करें अब सरकार का गुणगान सवाल सरकारी विज्ञापन का है। १३ महीने के अनुभव ने आख़िर सब कुछ सीखा दिया। छत्तीसगढ़ के लोग सीधे सादे हैं मूर्ख नहीं हैं आप नहीं बताओगे कि घोटाला नहीं हुआ है तो भी घोटाले तो होंगे सरकार अपना काम कर रही है आप भी अपना काम करें तो बेहतर है। डॉक्टर रमन सिंह ने तो कहा भी है कि आप लोग हरिश्चंद्र की औलाद तो नहीं हैं। अब बाबा रामदेव का आर्शीवाद है इसका मतलब ये तो नहीं है कि आप बोल देंगे तो १०० प्रतिशत मतदान हो ही जाएगा। एक बात और साफ़ कर दूँ कि ये ब्लॉग लिखने का उद्देश्य सिर्फ़ छत्तीसगढ़ के लोगों कि भावनाओं को आहत करने वाले बाहरी पत्रकारों को समझाना मात्र हैकोई ग़लत समझ ले।
अन्यथा लें..