03 September 2012

                                                संगठन ने चेताया- 
अफसरों की मनमानी रोकें
मंत्रालय में तू-तड़ाक शुरूअब जूतम-पैजर की बारी
छत्तीसगढ़ में चल रही अफसरशाही को लेकर अब संगठन ने भी सरकार को चेता दिया है की अफसरों की मनमानी नहीं रुकी तो यही लोग सरकार को ले डूबेंगे. संगठन के वरिष्ठ पदाधिकारियों को यहाँ (छत्तीसगढ़) दौरे के दौरान अधिकांश कार्यकर्ताओं ने शिकायत की है की जब अफसर मंत्रियों और सांसदों की नहीं सुन रहे हैं तो कार्यकर्ताओं की कौन सुनेगा. इधर बाहर से शांत
दिखने वाले मंत्रालय के भीतर अब उबाल आने लगा है. दो दिन पहले ही मंत्रालय में पदस्थ दो वरिष्ठ सचिव आपस में भीड़ गए. बात इतनी बढ़ी की एक सचिव ने दुसरे सचिव को साफ़ कह दिया की अब तू सिखाएगा कामकाज. दूसरा भी क्यों शांत रहता उसने भी कहना शुरू कर दिया की तेरे जैसों के कारण ही बाहर से सचिव बुलाने पड़ते हैं. तू अपने काम से काम रख. तू-तू की नौबत काफी देर तक रही और बाकी अफसर एक दूसरे का मुंह ताकते रह गए. जिस तरह से मंत्रालय में आये दिन इस तरह की नौबत आ रही है उससे तो लगता है की आने वाले समय में यहाँ जूतम पैजर की नौबत भी ज़रूर आयेगी.
मंत्रालय के आधिकारिक सूत्र बताते हैं की मंत्रालय के भीतर सचिव स्तर पर ही लोग आपस में खुन्नस निकाल रहे हैं. बात बात पर इनके "अहम्" टकरा रहे हैं और लंबित हो रहे हैं सरकार के कामकाज. अब जब अफसर ही इस तरह की हरकत पर उतारू हों तो बाबुओं को कौन सम्हालेगा? रोज़ किसी न किसी बात पर मंत्रालय में   चिल्ला- चोट हो ही रही है. कोई भी विभाग शान्ति से अपना काम नहीं कर पा रहा. वरिष्ठ अफसर कहते हैं की काम का बोझ अधिक होने के कारण ऐसी हालत होना एक सामान्य प्रक्रिया है. शायद यही कारण हैं की सारे काम वहीँ अटक जा रहे हैं शिकायतें पहुँच रही हैं संगठन तक.
हाल ही में महासमुंद से संगठन ने अपने स्तर पर कार्यकर्ताओं की बैठक का आगाज़ किया. संगठन कुल मिलाकर कार्यकर्ताओं में जोश फूंकने और चुनाव के लिए अपनी तैयारियों को अंजाम देने गाँव -गाँव का दौरा कर रहा है. इस दौरे के बीच लगभग हर जगह संगठन मंत्री सौदान सिंह को सरकार के बारे में विपरीत कमेन्ट ही मिले. कार्यकर्ताओं ने एक सुर से एक ही बात आलापी की किसी भी
कार्यकर्ता की किसी सिफारिश पर कोई फाइल आगे नहीं बढ़ रही. कुछ कार्यकर्ता यह कहने से भी नहीं चुके की जब यहाँ के अफसर हमारे मंत्री और सांसदों की सिफारिश कचरे के डिब्बे में दाल देते हैं तो कार्यकर्ताओं की कौन सुनेगा. संगठन ने इन बातों को गंभीरता से लिया और संगठन मंत्री ने मुख्यमंत्री डॉक्टर रमन सिंह को भी इस बारे में आगाह कर दिया है. संगठन ने स्पष्ट रूप से कहा है की अफसरशाही पर लगाम ज़रूरी है.

10 March 2012

नरेन्द्र...... तुम्हे सलाम....... दुनिया जैसी चल रही है वैसे ही चलो या मरने को तैयार रहो...


बात सिर्फ मध्यप्रदेश की नहीं पूरे देश की है. हर जगह भ्रष्ट लोग अपना कब्ज़ा जमाकर बैठ गए हैं . हर जगह भ्रष्टाचार. बात बात पर पैसा. जिसके पास पैसा ही उसे छूट है हर अपराध करने की. एक तो पैसे की गर्मी ऊपर से नेताओं का संरक्षण. मध्य प्रदेश के जांबाज़ अफसर नरेंद्र ने जो कुछ किया वह एक इतिहास तो बना गए पर उस बच्चे का क्या कसूर जो उनकी आई. ए. एस. पत्नी की कोख में पल रहा है. अभी तो वह इस दुनिया में आया ही नहीं है. इसी भ्रष्ट समाज में वह अपनी आँखें खोलेगा और जब वह दुनिया के बारे में जानना शुरू करेगा तो कौन बताएगा इस कड़वे सत्य के बारे में. कैसे जियेगा वह अपनी माँ के साथ. बड़ा होकर क्या करेगा.? सरकार कल इसे एक दुर्घटना साबित तो कर लेगी लेकिन क्या अंतरात्मा से यह बात कोई स्वीकार पायेगा की चूक कहीं न कहीं व्यवस्था में है. ऐसे ही मामलों से "वाद" सर उठाता है, जिसके आगे आज भी नतमस्तक है सरकार. फिर घुमते रहो यह बोलते हुए की मुख्यधारा से जुड़ जाओ. नरेंद्र कुमार तो मुख्य धारा से जुडा था, फिर कैसे जान गंवानी पडी उसे.? कुल मिलाकर दुनिया जैसी चल रही है वैसे ही चलो या मरने को तैयार रहो, या फिर एक नया "वाद" तैयार करो और इसके पहले की कोई आपको निपटाने की सोचे खुद निपटा दो उसे.
सवाल सिर्फ एक जान का नहीं है कौड़ी के मोल होती जा रही जान की कीमत का है. सरकार में बैठे लोग अमृत पीकर तो नहीं आये हैं न? किसी की जान का सौदा करने के पहले उन्हें अपने परिवार पर भी एक नज़र डाल लेनी चाहिए. नक्सली वारदातों में सैकड़ों पुलिस अधिकारी मारे गए. आज उनकी खैरियत पूछने वाला कोई नहीं है. केंद्र और राज्य सरकार के प्रतिनिधि आते हैं और मगरमच्छ के आंसूं बहाकर चले जाते हैं. पुलिस की नौकरी करना क्या अपराध है? वर्दी पहनाकर नंगा करना कहाँ का नियम है.? जितनी पढाई वह वर्दी पहनने के लिए करते हैं उतना कुछ राजनीति में आने के लिए नहीं करना पड़ता. सारी इंटेलीजेंसी घुस जाती है जब राजनीतिज्ञों के इशारों पर कुचल दिए जाते हैं पुलिस के जवान या अधिकारी. आज नरेंद्र चला गया कल कोई और सूली चढ़ जायेगा. सरकार का कुछ नहीं जाता . जाता है सिर्फ परिवार का.
मन सिहर जाता जाता है यह सोचकर की नरेन्द्र की धर्मपत्नी ने ही उन्हें मुखाग्नि दी. उनके पेट में पल रहे नन्हे मेहमान ने क्या अपनी माँ के पेट में लात नहीं चलाई चलाई होगी? क्या गुजर रही होगी उस महान औरत पर जो सारी बातें जानती थी, खुद हौसला अफजाई करती रही अपने आई पी एस पति की. अंजाम इतना गंदा होगा शायद इस दंपत्ति ने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा. अवैध खनन हर प्रदेश में हो रहा है, कारवाई न होना खुद साबित कर देता है की मामला मिली जुली सरकार का है. आज चिंतन की सख्त ज़रुरत है. अगर आज भी हम सचेत नहीं हुए तो देश में बढ़ रहा गुस्सा पता नहीं किस मुकाम पर जाकर ख़त्म होगा. नेताओं को सरे आम पीटने लगेगी जनता.. ..इनको बचाने जो आएगा वह भी शिकार होगा जनता के इस महा अभियान का. एक "वाद" से तो सरकार निपट नहीं पा रही है अगर कोई दूसरा वाद अस्तित्व में आ गया तो क्या होगा नेतागिरी की आड़ में भ्रष्ट होती जा रही व्यवस्था का. चिंतन मनन आवश्यक है. आइये सब मिलकर सोचें और हल निकालें एक सद चरित्र समाज का.

28 February 2012

अखबारों के लिए आबंटित ज़मीन का उपयोग सिर्फ प्रकाशन के लिए

रायपुर. सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों को धता बताने वाले अखबार मालिक अब खुद एक ऐसे नियम में फंस गए हैं जिससे अब उन्हें कोई बचा ही नहीं सकता. नियम यह है की अखबारों के लिए आबंटित ज़मीन का दूसरा उपयोग किया ही नहीं जा सकता. २००७ में यह नियम खुद कलेक्टर ने बनाया था. इस निर्देश में एक बात और साफ़ तौर पर कही गयी है की शर्तों का अनुपालन नहीं होने पर ज़िलाधीश भी अचानक निरीक्षण कर कार्यवाही कर सकते हैं.शासन के प्रतिनिधि, अधिकृत व्यक्ति तथा अधिकृत प्रतिनिधि शर्तों के पालन के लिए अधिकृत किये गए हैं. नियम- कायदों की खुले आम धज्जियाँ उड़ाने वाले अखबार मालिकों पर आखिर कब और कौन करेगा अधिकृत कार्यवाही? एक अखबार को हाल ही में तगड़ा जुर्माना पटाना पड़ा है. इस चर्चित अखबार द्वारा जुर्माना तो पटा दिया गया है, लेकिन आजू बाजू के अखबार मालिक इस कार्रवाई से अनभिज्ञ और अनजान हैं.
सूत्रों की मानें तो सरकारी कागज़ात में एकदम साफ़ तौर पर कहा गया है की "भूमि का उपयोग अन्य उपयोग के लिए नहीं होगा " . अगर इस नियम का उल्लंघन हुआ तो उस परिसर को अनाधिकृत कब्जेदार मानकर वह भूमि शासन में निहित कर ली जायेगी. इस भूमि का पूर्ण बाज़ार मूल्य पेनाल्टी के साथ भी लिया जायेगा. सूत्र बताते हैं की एक अखबार को अधिग्रहित करने की योजना बन चुकी है. इस पर अमलीजामा कभी भी पहनाया जा सकता है. सरकार और जिला प्रशासन की इस संयुक्त कार्यवाही से फर्जीवाड़ा करने वाले अख़बार मालिकों की नींद हराम हो गयी है. एक अखबार को तगड़ा जुर्माना और दूसरे को राजसात करने की तैय्यारी काबिल- ए- तारीफ़ है. इस तरह की कार्यवाही से चौथे स्तम्भ के हित चिंतकों का मनोबल बढ़ेगा.
चौथे स्तम्भ की वकालत करने वाले पत्रकारों का समूह अब इस मुहिम से जुड़ने लगा है. मुख्यमंत्री के आसपास झूमे रहने वाले पत्रकारों की संख्या भी अब कम होने लगी है. इस मुहिम ने सबको चेता दिया है की असली कौन है और नकली कौन है. अब इस बात का भेद भी खुलने लगा है की पत्रकारों के संगठन को कमज़ोर कर उसे नेस्तनाबूत करने वालों का गिरोह भी अखबार मालिकों की चौकड़ी में शामिल था. पत्रकारों को संघ से दूर रखकर और संगठन के चुनाव न करवाना भी इसी महा घोटाले का एक अभिन्न अंग था. बहरहाल समय हमेशा एक सा नहीं रहता . देर से ही सही लेकिन अगर हमारी इस मुहिम का असर हुआ तो कई सफेदपोश लोग बेनकाब होंगे जो आज पानी के मोल मिली ज़मीन का करोड़ों में दोहन कर रहे हैं. एक अखबार समूह तो "समर्पण" के मूड में आ गया है.