News- 36 is a chhattisgarh's first video news agency. We have corrospondents in all 27 district in Chhattisgarh.We are having latest camera, edit set up with Trained Repoters and Camerapersons.
29 August 2009
नीली फ़िल्म दिखाकर/छुपाकर लाल हुए पत्रकार ......
छत्तीसगढ़ का पत्रकारिता जगत आज अपने आप में शर्मिंदा है। एक अफसर और उसकी पत्नी की नीली फ़िल्म दिखाने, छुपाने या अफसर से byte के बहाने मिलने वाले कई पत्रकारों के चेहरे की रौनक उडी हुई है। न्यूज़ २४ ने तो इसी मामले में अपने संवाददाता अर्धेन्दु मुख़र्जी को बाहर का रास्ता दिखा दिया है। वैसे मैं अर्धेन्दु मुख़र्जी को व्यक्तिगत रूप से जानता हूँ वो वसूली जैसे मामलों से हमेशा दूर रहा है। मैं शुरू से उन वसूलीबाज़ पत्रकारों को जानता हूँ जो पत्रकारिता करने नहीं सिर्फ़ वसूली करने के लिए पत्रकारिता में आए हैं। वही पत्रकार हैं जो इस मामले में ज़्यादा रूचि ले रहे हैं और अपनी वसूली स्पर्धा में आड़े आने वाले पत्रकारों को निपटाने में लगे हैं । वोही लोग हैं जो इस मामले में संलिप्त पत्रकारों की शिकायतें channel के दफ्तरों तक पहुँचा रहे हैं। वो बिल्कुल नहीं चाहते की उनकी वसूली प्रभावित हो या कोई और उनसे आगे निकले। विदेश दौरा करके आने के बाद कई दिनों तक अपने ब्रीफकेस पर टैग लटका कर घूमने वाले पत्रकार इस बार बिना टैग के एअरपोर्ट से वापस आए हैं।एक अफसर ने अपनी बीवी के साथ नीली फ़िल्म बनाकर ये तो साबित कर दिया है कि रमन सिंह के राज में सब सम्भव है। जिसकी मर्जी में जो आ रहा है कर रहे हैं। अफसरों की इतनी औकात हो गयी है कि इस मामले में साधना न्यूज़ का प्रसारण तक प्रभावित किया गया। इस मामले भी सीख यही मिलती है कि शासन से जुड़े किसी भी आदमी से उलझना ठीक नहीं है। पत्रकारों को भी सोचना चाहिए कि जब सारे अधिकारी सीधे मुख्यमंत्री के संपर्क में हैं तो उनसे उलझना कहाँ कि समझदारी है। इस मामले में भी तो ऐसा ही संदेह है। एक अफसर अपनी ख़ुद की निजी बीवी के साथ नीली फ़िल्म बनाता है । उसे होश नहीं है कि ये फ़िल्म उसके कैमरे से बाहर कैसे चली गयी है। अगर कोई ठेकेदार इस मामले में शामिल था तो भी कैमरे से टेप बाहर कैसे आ गया। अब अफसर कहते हैं कि ऐसी कोई सी डी उन्होंने नहीं बनाई । उनकी पत्नी का कहना है कि अगर बीवी के साथ पति ही है तो क्या दिक्कत है। अपरोक्ष रूप से दोनों ने ये बात स्वीकार की कि गलती हुई है लेकिन चेहरे पर हवाइयां लगातार उड़ रही थी। दोनों बार बार ये बात कहते रहे कि वे किसी षडयंत्र का शिकार हुए हैं। ये बात अब तक मेरी समझ से बाहर है कि अफसर के हाथ में कैमरा था , पत्नी सामने थी तो फिर कैमरे का टेप बाहर आकर सी डी के रूप में तब्दील कैसे हो गया। सारे मामले अभी पुलिस कि जांच में हैं । कल ये मामला न्यायालय में चला जाएगा। गिरोहबाज पत्रकारों को इस मामले से सीख लेनी चाहिए। खासकर ऐसे पत्रकार जो एक मामले का पता चलने पर दो तीन पत्रकारों को साथ लेकर जाते हैं। वसूली हो गयी तो उसे आपस में बाँट लेते हैं। प्रेस क्लब ने तो साफ़ साफ़ कह दिया है कि वो इस मामले में आरोपी पत्रकारों के साथ नहीं हैं। ऐसे में सहारा समय पर चलने वाली एक ख़बर चौंकाने वाली रही। अचानक सहारा चौथे स्तम्भ कि दुहाई देने लग गया। साफ़ सुथरी छवि और न जाने क्या क्या कहने लग गया। प्रेस क्लब से छुपकर मार्केटिंग वाले बंदों का पेट काटकर सरकारी विज्ञापन में ख़ुद कमीशन खाने वाले लोगों का बदला हुआ रूप देखकर पत्रकार जगत हतप्रभ है। आपस की गला काट स्पर्धा में ख़ुद को सर्वश्रेष्ठ बताना अच्छी बात है लेकिन दुःख के समय साथ खड़े होने की बजाय किसी को अकेले छोड़ देना कहाँ की समझदारी है?मुझे कभी कभी साधना के ब्यूरो चीफ पर तरस आता है। संजय जब etv में था । तब उसके पास एक पूरानी दोपहिया थी । आज उसके पास दो - दो मकान है। कार की भी ख़बर है मुझे। खैर,,,, अचानक चौथे स्तम्भ की दुहाई देने वाले सहारा के लोग क्या भूल गए की मार्केटिंग के बन्दों का पेट काटकर ख़ुद आर ओ लेने कौन पत्रकार अफसरों के चक्कर काटते हैं । मैं पूरी शिद्दत से जानता और मानता हूँ की पैसे से बहुत कुछ तो हो सकता है लेकिन सब कुछ नहीं .........
27 August 2009
सच का सामना - साधना
आप लोगों को ये तो मालूम होगा कि मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ का एक रीजनल channel साधना की चर्चा आजकल छत्तीसगढ़ में कुछ ज़्यादा ही है। कारण भी पता होगा । लेकिन ये पता नहीं होगा कि ब्लू फ़िल्म की आड़ में कई हरे नोट स्वाहा हुए हैं। मैं अकेला ये मान लेता हूँ कि साधना ने अकेले पत्रकारिता का धर्म निभाया। बाकी channel और कुछ अख़बारों में तो दस दिन पहले ही सी डी पहुँचा दी गयी थी। फ़िर बाकी लोगों ने ये ख़बर क्यों नहीं उठाई। अपने ख़ास पत्रकारों की सुनें तो ये बात भी पता चली है की कुछ पत्रकार हाल ही में मलेशिया भी घूमकर आए हैं। जासूस पत्रकार बताते हैं कि पत्रकारों को ये ट्रिप उन लोगों ने करवाई जो ख़ुद इस काण्ड के हीरो हैं।
अन्दर कि बात ये भी है कि इस ख़बर के दोनों तरफ़ पैसा था। एक तरफ़ ठेकेदार थे जो सी डी चलवाने के लिए मुंहमांगी कीमत देने को तैयार थे। दूसरी तरफ़ वो आदमी है जो अगर ख़ुद सामने नहीं आता तो लोग आज भी बात करते कि यार वो कौन सा अधिकारी था पता ही नहीं चल रहा है। एक धड़ ख़बर चलवाना चाहता तो दूसरा धड रुकवाना।
अन्दर कि बात ये भी है कि इस ख़बर के दोनों तरफ़ पैसा था। एक तरफ़ ठेकेदार थे जो सी डी चलवाने के लिए मुंहमांगी कीमत देने को तैयार थे। दूसरी तरफ़ वो आदमी है जो अगर ख़ुद सामने नहीं आता तो लोग आज भी बात करते कि यार वो कौन सा अधिकारी था पता ही नहीं चल रहा है। एक धड़ ख़बर चलवाना चाहता तो दूसरा धड रुकवाना।
22 August 2009
वाइस ऑफ़ इंडिया में ताला.. सच फ़िर जीता..
छत्तीसगढ़ में जब वाइस ऑफ़ इंडिया की हलचल तेज़ हुई, तो पता चला की वरिष्ठ भाजपा नेता कैलाश मुरारका ने यहाँ की frenchisee ली है। ये भी पता चला कि दिल्ली का गाना गाने वाले एक फर्जी पत्रकार ने ये डील करवाई है। मैं जब कैलाश भइया से मिला तो सारी बातें साफ़ साफ़ की। मैंने उन्हें भी वाइस ऑफ़ इंडिया की अंदरूनी बातें बताईं। कैलाश भइया ने स्पष्ट किया कि सब ठीक हो जाएगा। इस बीच यहाँ ब्यूरो का विवाद छिड़ने लगा था। मैंने साफ़ साफ़ कह दिया कि काम में ध्यान लगाओ। मुझे पता था कि आज नहीं तो कल ये फर्जीवाडा फ़िर सामने आएगा ही। आड़ा टेढा और फर्जी पत्रकार समझ गया था कि अगर कैलाश भैय्या और मैं मिलते रहे तो कभी भी उसकी दुकान बंद हो सकती है। उसने दांव खेलने शुरू कर दिए थे। उस फर्जी पत्रकार को लगा कि दिल्ली सिर्फ़ उसीने देखा है। हम लोग २२ साल से यहाँ ऐसे फर्जीवाडे कई देखे हैं । ऐसे कई लोगों को बुलकाकर छोड़ा है हम लोगों ने। मैंने चार दिन पहले ही कैलाश भैय्या से कह दिया था कि ये फर्जी channel है और आप यहाँ फंस गए हो। कुछ और चैनलों की बात भी हमने की थी। उसी दिन मैंने उनसे कह दिया था की मैं व्यक्तिगत संबंधों में ज़्यादा विश्वास रखता हूँ। फर्जी पत्रकार के सामने ही मैंने widraw किया था। बड़ी बातों से channel नहीं चलता।
आज सच फ़िर जीत गया है, वाइस ऑफ़ इंडिया में दिल्ली में ताला लग गया है। मुझे ऐसे पत्रकारों से कोफ्त होने लगी है जो तनख्वाह की आस में महीनों पड़े रहते हैं। वाइस ऑफ़ इंडिया के पूरे भारत में ऐसे कई पत्रकार साथी हैं जो
20 August 2009
वाइस ऑफ़ इंडिया या वाइस ऑफ़ मनी....
दो साल पहले जिस ताम झाम के साथ वाइस ऑफ़ इंडिया ने भारत में दस्तक दी थी , उससे लग रहा था कि यही channel सच में भारत की आवाज़ बनेगा। इस channel ने नेशनल और रीजनल चैनलों में जमकर अपना कमाल दिखाया। अच्छी ख़बरों का न तो बलात्कार होने दिया और न ही उसे लावारिस छोड़ा, लेकिन अब तो आर्थिक मंदी ने भारत की इस आवाज़ का गला घोंट दिया , न सिर्फ़ गला घोंटा बल्कि उसे बाजारू लोगों के हाथों में सौंप दिया। ऐसी बोली लगी कि भारत की ये आवाज़ एक वेश्या कि तरह बाज़ार में खड़ी कर दी गयी। जिसके पास पैसा हो वो सौदा कर ले और ले जाए। भारत की इस आवाज़ से वेश्यावृत्ति कराने के लिए शक्ल से ही दलाल दिखने वाले लोगों को बाज़ार में छोड़ दिया गया। इन दलालों कि औकात उन रिक्शे वालों से ज़्यादा की नहीं होती जो स्टेशन या बस स्टैंड से ग्राहकों को होटल पहुंचाते हैं और होटल के मेनेजर से २० रूपया ले लेते हैं।
मैं chhattisgarh और madhyapradesh में वाइस ऑफ़ इंडिया के haalaton को देखने के बाद ही ब्लॉग लिखने baitha हूँ। chhattisgarh में जिस दलाल ने frenchizee dilwayee , वो swayambhu ख़ुद को bureau भी बताता है। दो साल की prashikshu patrakarita के बाद कोई bureau bana है क्या। मैं २२ साल तक patrakarita करने के बाद इतना तो समझता हूँ की electronic मीडिया के पत्रकारों की आवाज़ , shailee और शब्द कोष achchha होना चाहिए। यहाँ तो had हो गयी है। खैर , channel उनका है। chhattisgarh के कई पत्रकारों को वाइस ऑफ़ इंडिया ने sellery नहीं दी है, वैसे तो और भी कई channel का यही हाल है। पर बात अभी हम वाइस ऑफ़ इंडिया की ही कर रहे हैं baaki channel पर फिर कभी बात करेंगे।
मैं chhattisgarh और madhyapradesh में वाइस ऑफ़ इंडिया के haalaton को देखने के बाद ही ब्लॉग लिखने baitha हूँ। chhattisgarh में जिस दलाल ने frenchizee dilwayee , वो swayambhu ख़ुद को bureau भी बताता है। दो साल की prashikshu patrakarita के बाद कोई bureau bana है क्या। मैं २२ साल तक patrakarita करने के बाद इतना तो समझता हूँ की electronic मीडिया के पत्रकारों की आवाज़ , shailee और शब्द कोष achchha होना चाहिए। यहाँ तो had हो गयी है। खैर , channel उनका है। chhattisgarh के कई पत्रकारों को वाइस ऑफ़ इंडिया ने sellery नहीं दी है, वैसे तो और भी कई channel का यही हाल है। पर बात अभी हम वाइस ऑफ़ इंडिया की ही कर रहे हैं baaki channel पर फिर कभी बात करेंगे।
18 August 2009
चना, मुर्रा और चैनल....
बदलते वक्त के साथ जो नए चेहरे पत्रकारिता करने के लिए सामने आए हैं , उन्ही लोगों ने पत्रकारिता का न सिर्फ़ स्तर गिराया है बल्कि अपनी औकात भी दो कौडी की कर ली है। आज चना, मुर्रा और चैनल को इन्ही लोगों ने बराबरी का दर्जा भी दिलाया है। आज एक पत्रकार की हैसियत co-ordinator से ज्यादा की नहीं रह गयी है। अब ऐसे लोगों की भीड़ बढ़ गयी है जो सिर्फ़ पैसा कमाने के लिए ही मैदान में उतरे हैं। आज चैनल मालिकों को अच्छा लिखने वाला नहीं अच्छा विज्ञापन बटोरने वाला आदमी चाहिए। यही कारण है कि अच्छे पत्रकार न सिर्फ़ field से गायब हैं बल्कि पत्रकारिता से उनका मन उचट गया है। आज आप पंजाब के कुछ रिहायशी शहरों में जाकर देखिये। जो पहले ट्रक के मालिक थे अब वो चैनल चला रहे हैं। उन्हें दिमाग देने वाले भी सब पत्रकार ही हैं। शहर से निकलने वाले एक अखबार की भी कुछ ऐसी ही कहानी है। इस अखबार के मालिक ने एक दिन अपने संस्थान से पत्रकारों को उपहार में बांटने वाली राशि का हिसाब किया तो उनका दिमाग ख़राब हो गया। उन्होंने सोचा की जब वो ख़ुद पत्रकारों को इतना पैसा हर साल बांटते हैं तो क्यों न ख़ुद का अखबार शुरू कर दें। अखबारों की भीड़ में ये अखबार भी शामिल हो गया। अपनी काली कमाई को छुपाने और सफेदपोशों की भीड़ में शामिल होने के लिए भी कई लोग अखबार निकाल रहे हैं। छत्तीसगढ़ सरकार ने भी अपनी संवेदना ऐसे अखबारों से बांटी है।
प्रिंट हो या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया , सबका हाल बुरा है। खुश वही है जो मालिक का ख़ास बनने के लिए मंत्रियों की चरण वंदना कर रहा है। अफसरों के तलवे चाट रहा है। अपने अंतर्मन को अपने घर की संदूकों में रखकर निकले ये पत्रकार एक नया इतिहास बना रहे हैं। एक सही घटना इस बात को पूरी तरह से साबित करती है। शराब के नशे में धुत्त एक कथित पत्रकार ने रात को एक चलती ट्रक में चढ़कर स्टिंग करने की कोशिश की तो conductor ने उसे धकेल दिया। मामला अवैध लकड़ी तस्करी का था। कथित पत्रकार नीचे गिर गया और पैर टूट गया। राजिम में कुम्भ की उलटी ख़बर चलने वाले इस कथित पत्रकार की मदद भी ख़ुद इसी विभाग के मंत्री ने की। अब जब वो ठीक हुआ तो उसने फ़िर से अपनी टीम बनाने की कोशिशें तेज़ कर दी। एन चुनाव के समय विधायक का चुनाव लड़ रहे मंत्री जी का स्टिंग करने वाले एक कैमरामैन को उसने अपनी टीम में शामिल कर लिया है। अब लूटपाट फ़िर शुरू होने वाली है लेकिन इस बार खेल उल्टा भी हो सकता है।
प्रिंट हो या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया , सबका हाल बुरा है। खुश वही है जो मालिक का ख़ास बनने के लिए मंत्रियों की चरण वंदना कर रहा है। अफसरों के तलवे चाट रहा है। अपने अंतर्मन को अपने घर की संदूकों में रखकर निकले ये पत्रकार एक नया इतिहास बना रहे हैं। एक सही घटना इस बात को पूरी तरह से साबित करती है। शराब के नशे में धुत्त एक कथित पत्रकार ने रात को एक चलती ट्रक में चढ़कर स्टिंग करने की कोशिश की तो conductor ने उसे धकेल दिया। मामला अवैध लकड़ी तस्करी का था। कथित पत्रकार नीचे गिर गया और पैर टूट गया। राजिम में कुम्भ की उलटी ख़बर चलने वाले इस कथित पत्रकार की मदद भी ख़ुद इसी विभाग के मंत्री ने की। अब जब वो ठीक हुआ तो उसने फ़िर से अपनी टीम बनाने की कोशिशें तेज़ कर दी। एन चुनाव के समय विधायक का चुनाव लड़ रहे मंत्री जी का स्टिंग करने वाले एक कैमरामैन को उसने अपनी टीम में शामिल कर लिया है। अब लूटपाट फ़िर शुरू होने वाली है लेकिन इस बार खेल उल्टा भी हो सकता है।
Subscribe to:
Posts (Atom)