26 November 2009

हाँ....मैं मुसलमान हूँ....

एक दो ग्रहों ने मुझ पर नज़रें क्या टेढ़ी की, पूरा ज़माना दुश्मन हो गया। सबसे पहला शिकार हुआ मकान मालिक का। मकान मालिक ने अचानक कह दिया- घर खाली कर दो। अपन भी ठसन बाज । निकल पड़े मकान ढूँढने । आज तक किसी की सुनी नहीं। किसी के लेन देन में नहीं पड़े , अपनी बीवी तक का तो ट्रान्सफर नहीं करा पाया, बस जीते रहे, मिशन की पत्रकारिता करते रहे, मेरे सामने आए पत्रकारों ने मकान क्या फ्लैट बुक करा लिए , शिफ्ट भी हो गए , उनका बैंक बैलेंस भी तगड़ा है। उन लोगों ने कार भी ले ली। श्रमजीवी पत्रकार संघ का महासचिव रहते हुए जिन जूनियरों के लिए अधिमान्यता की लड़ाई लड़ी, वो आज अधिमान्य पत्रकारों पर फैसला देते हैं। इसीलिये वहां भी आवेदन देने का मन् नहीं करता। सबको डांटते रहता हूँ ये वाली पत्रकारिता, ज़्यादा दिन नहीं चलेगी। कुछ सीख लो। पढो रे..अच्छा लिखो, कुछ नया करने की कोशिश तो करो। मालिकों के तलुए चाटता तो आज दैनिक भास्कर में संपादक नहीं तो स्थानीय सम्पादक तो रहता ही।
...शायद मैं मुद्दे से भटक गया। बात हो रही थी हाँ मैं मुसलमान हूँ की। ये मुद्दा खड़ा तब हुआ जब मैंने मकान देखना शुरू किया। चालीस प्रतिशत ब्रोकरों ने सीधे हाथ खड़े कर दिए कहा कि आप कहीं और कोशिश करो क्योंकि आप मुसलमान हो और लोग आप लोगों को मकान देने से मकान मालिक हिचकिचाते हैं। कुछ ने तो ये कहकर मेरी चिंता बढ़ा दी कि एक तो आप मुसलमान हो और ऊपर से पत्रकार। बहुत मुश्किल है। कुछ मुस्लिम मकान मालिकों से मिला तो कहने लगे आपकी बातचीत से लगता ही नहीं कि आप मुसलमान हो। खैर..... मुसलमान होने की पीड़ा अभी झेल ही रहा हूँ। लौटकर अपने मकान मालिक से कहा कि आपको मुझसे प्रोब्लम क्या है। उसने तत्काल कहा कि आप महीने में दस दिन लेट लेट आते हो। अब रात में वारदात हो तो क्या बाकी channel के पत्रकारों की तरह घर बैठे ही रिपोर्टिंग करूँ? खैर मैं समझ गया की अगर पत्रकारिता में समझौते किया रहता तो satta जुआ खिलने वाले भी महीने का पैसा पहुँचाने को तैयार थे। मैंने कहीं समझौता नहीं किया । जिस जगह सम्पादक की औकात सिर्फ़ विज्ञापन बटोरने वाले को ordinator की हो वहां काम मांगने भी नहीं गया। रोज़ नए channel के लोग पैसों के बल पर ब्यूरो बनने की बात करते हैं और गन्दी गन्दी गालियाँ मुझसे सुनते हैं। मैं उनसे कहता हूँ की पैसा ज़्यादा हो गया है तो चकलाखाना खोल लो, पत्रकारिता ने क्या बिगाड़ा है तुम्हारा? अब कई बातों ने मुझे सोचने पर मजबूर किया है। ब्लॉग इसीलिये लिख दिया की ये मुझे याद दिलाता रहे की मैं मुसलमान हूँ। मुसलमान होना कोई गुनाह होना थोड़े ही है। गुनाह है किसी धर्म को जाने बिना उसके मानने वालों को हिकारत भरी नज़रों से देखना। अब मेरे अन्दर जेहाद चल रही है कि करूँ तो करूँ क्या?
...अन्दर से ऐसा लग रहा है जैसे कोई फोड़ा पक गया है और अब वो मवाद भी छोड़ने लगा है। मुझे लगता है कि इंदिरा गाँधी जी की हत्या और बाबरी मस्जिद का ढांचा टूटने के बाद ये विवाद बढ़ा है। लोग अब हमको ज़ात से ही जानने और पहचानने लगे हैं। रायपुर में जब दो गुटों में विवाद हुआ था तब भी अमृत संदेश में मुझे रिपोर्टिंग से रोका गया था, लेकिन जब कई पत्रकार अपना हाथ पैर तुडवा कर वापस दफ्तर आ बाए और वापस शहर न जाने की बात की तब मुझे भेजा गया , एक बार अग्रवाल समाज की अन्ताक्षरी में योगेश अग्रवाल ने आयोजकों से कह दिया था की हमारे समाज में कोई मुसलमान क्यों संचालन करेगा। मुझसे अन्ताक्षरी का संचालन सीखने वाली वो अग्रवाल एंकर बहुत रोई थी उस दिन। दरअसल योगेश वहां हीरो बनना चाहता था और उसे अच्छे से पता था कि अगर मैंने संचालन किया तो उसकी कलई खुल जाएगी। वहां जितने भी मुसलमान संगतकार थे , वो भी इस बात से व्यथित हुए और अपना तबला , ओरगन और बाकी सामान उठाकर चलते बने। तब मैंने बड़प्पन दिखाया था और परदे के पीछे रहकर अन्ताक्षरी सफल कराई थी।
...मेरे अन्दर ये बात आज तक घुस ही नहीं पाई की की मैं किसी ऐसी कौम को बिलोंग करता हूँ जिसके लिए लोगों के मन् में इतना गुस्सा या ज़हर भरा हुआ है। मैंने अपने हिंदू दोस्तों के साथ भी कल जब इस बात को लेकर बहस की तो मेरे एक ब्राम्हण दोस्त ने मेरा हाथ पकड़ कर उठाया और बोला कि आज से भाई मेरे घर में ही रहेगा। माँ ने एक शर्त और जोड़ दी कि खाना भी तुम हमारे साथ ही खाओगे। हिंदू मुसलमान की इसी जद्दोजेहद से बचने मैंने अंतरजातीय विवाह भी किया। उसे भी कभी बंधन में नहीं बाँधा मैंने। मेरा बेटा सलाम भी करता है और नमस्ते भी। मैं उसे भी इस चुतियापे से दूर रखना चाहता हूँ। पत्नी बच्चे राजनांदगांव में ही रहते हैं और मैं हफ्ते के पाँच दिन बैचलर रहता हूँ। पर मोबाइल में दोनों को पल पल की जानकारी देनी होती है.
...दुनिया कहाँ जा रही है और हम आज भी वहीँ अटके पड़े हैं । मुझे रायपुर में मकान नहीं मिल रहा है। दिल्ली - मुंबई में मुस्लिम आतंकियों को मकान मिल जाते हैं अपनी घटनाओं को अंजाम देने के लिए। क्या चल रहा है ये सब? प्राइमरी स्कूल से सरस्वती पूजा का जिम्मा मेरा था। हाई स्कूल से रामायण करना और उसकी रिहर्सल करना मेरा दायित्व था। कॉलेज में सरस्वती वंदना मैंने शुरू करवाई। संगीत महाविद्यालय में सरस्वती की प्रतिमा बड़ी करने और रोज़ प्रार्थना करने की निरंतरता भी मैंने करवाई। डोंगरगढ़ में विराजी माँ बमलेश्वरी की आरती का नवरात्री में जीवंत प्रसारण भी मैंने शुरू किया है। उसी के कारण कई बार जब नवरात्री और रमजान साथ पड़े तो मैंने मैनेज किया। मेरे एक ब्राम्हण दोस्त मधु सुदन शर्मा ने जब छत्तीसगढ़ की पहली आध्यात्मिक पत्रिका भाग्योदय की शुरुआत की तो हमने प्रण किया था की मैं उसमे हर महीने देवी देवताओं के बारे में लिखूंगा। पिछले अंक में मैंने भैरव बाबा के बारे में लिखा तो मेरे हिंदू दोस्तों ने पहली बर भैरव बाबा के बारे में पहली बार इतने विस्तार से पढ़ा और मुझे बधाइयाँ भी मिलीं ...हिंदू- मुसलमान जैसे मुद्दों ने मेरे मन् में आज तक कोई जगह नहीं बनाई , आज जब फ़िर ये सवाल मेरे सामने मुंह बाये खड़ा है तो मुझे फ़िर ये सोचना पड़ रहा है की भारत और उसकी विशेषता भाड़ में जाए। मैंने मुस्लिम घर में जन्म लिया है तो मुझे मानना ही पड़ेगा कि हाँ मैं मुसलमान हूँ। लेकिन एक शब्द यहाँ और जोड़ना चाहूँगा कि मैं भारतीय मुसलमान हूँ जो राष्ट्र के लिए समर्पित है, मुझे पता है कि इस बार ग्रह मुझे समझा कर ही जायेंगे कि तू आदमी अच्छा है लेकिन तेरा समय ख़राब है। ab
एक बात पत्रकारिता वाली। क्या शासन या नगर निगम के पास ऐसे मकान मालिकों के details हैं जो निगम के रेंट कंट्रोल का पालन और अनुपालन करते हैं । किरायेदारों की सूचना कितने मकान मालिक पुलिस को देते हैं? जो सूचना नहीं देते उनके ख़िलाफ़ कोई बड़ी कार्यवाही आज तक हुई है अब इसी मुद्दे को लेकर कोई गरम दल खड़ा हो गया तो उसकी तो चाँदी हो जाएगी . मैं जब तक अपना मकान नहीं ले लेता तब तक इस प्रकरण में मैं तो नेतागिरी नहीं कर सकता । पर एक बात दिमाग में लगातार कौंध रही है..किरायेदार कैदी तो नहीं नहीं होता न?

7 comments:

  1. भाई इन सब से आप के मुसलमान होने का क्या लेना देना ,ये तो आम हिन्दुस्तानी की व्यथा है !

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  2. Ehfaaz tumhara gussa svaabhavik hai lekin ye baat bhi tay hai ki hazaaro pakhandi hinduon se achchhe aur sachche bharatiy ho.tum asali musalman ho aur tumhaare achche hone ke liye kisi kathmulle yaa pongaa pandit ke certificate ki zarurat bhi nahi hai.ha ye saval kachotane vala hai ki mumbai dilli me aatankvaadiyon ko makan mil jaa rahe hai aur yanha tumhe nahi mil pa rahaa hai.tumne bahut si baton ka ullekh kiyaa magar ek baat kaa zikr mai bhi kar doon,press club ki Holi tumhaare bina puri nahi hoti,aaj bhi holi par chapane vaalaa Nonsense Times ho ya sabake Title sab kam tumhaare zimme chhoda jaata hai,maine to tum par jitna bharosa kiya hai utna apne bhai aur doston par bhi nahi kiya.ek samay tunmne mere saath bhi kam kiya hai maine kabhi tumse kisi khabar ke bare me nah puchha.tumne jo mlikha use chapane diya.har vivd maine jhela kyon kyaa isliye ki tum musalaman the.nahi isliye ki tum ek nek insaan ho.muh se to main bhi kadua hun aur tumase kai sau kai hazaar guna kadua hun.isase kya farq padta hai.tumhaare saval jayaj hai aur mai tumase sahamat bhi hun.is desh me jo kuchh ho raha hai vo chintaajanak hai.tum nishint raho tumhe makan ki chinta nahi rahegi,tumhare chahne vale saikdo hain.tum jaise taqatvar aur zimmedar log agar aise baaton se vichalit hone lage to ho gaya.aur han sarasvati ki tumne sachche man se pooja ki thi jabhi tumhe sarasvati maiya kaa aashirvaad mila hai,apne saath ke sangeet mahavidyalaya ke kitne logo ko shahar janta hai tumhe to puuraa pradsh jan rahaa hai.gussa chhodo aur lag jaao kam par samajhe.varna haramkhoro ki nikal padegi.

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  3. धर्म का ज़िन्दगी में यही रोल है जब हम इंसानियत को धर्म से ऊपर समझेंगे तब ही यह भेद मिटेगा .. और यह शुरुआत हमे उन बच्चों से करनी होगी जो अभी इस भेद को नही जानते हैं । जो बड़े हो क्घुके है उनके अवचेतन मे तो यह डाल दिया गया है कि यह हिन्दू है यह मुसलमान है यह सिख है यह इसाई है अब चाहे लाख उसे धर्मनिरपेक्षता का पाठ पढ़ा लो वह और उसके संस्कार वही रहेंगे । दो दिन कोई दोस्त आपको अपने घर अ मे रख लेगा , खाना खिला देगा लेकिन उसके बाद ? ? ? बहुत सारे सवाल है .. यह भावनाओं का खेल नही है .. हिम्मत होना चाहिये धर्मनिरपेक्ष होने के लिये ।

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  4. आपकी पोस्ट वाक़ई गहराई से सोचने लायक़ है। पर एक बात कहुं आपसे जिन जिन लोगों का पाला पडा है उन्हें मैं भारतीय नहिं कहुंगी उन्हें तो भारत का दुश्मन कहुंगी क्योंकि उनकी फ़ितरत ही देश को तोडना सीख़ाती है। हम पहले से ही भारतीय मुसलमान हैं और हम गर्व के साथ ये कहते हैं कोई एरेगेरे से हमें क्या? आपके साथ अंताक्षरी में जो भी हुआ वो एक जलस थी कि कहीं आप आगे ना बढ जाएं। देख़ो जलसी आदमी ख़ुद अपने संस्कारों से बना होता है । आप अगर उन लोगों के लिये सर भी कटवादोगे तो वे लोग कहेंगे कि रशीद साहब को अपने सर का वज़न लग रहा था ईसी लिये कटवा दिया। मेरा कहना यही है कि आप एक सच्चे ईंसान हैं तो सच्चे ही रहेंगे। ऐसे आली-मवालीयों से हमें क्या? हम एक सच्चे भारतीय मुसलमान हैं यही फ़क्र ज़िन्दा रहे। आमिन....बधाई आपकी बढिया पोस्ट के लिये।

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  5. dear ahfaz..
    aapka post pada..
    ye sach hai ki ak muslim hone k nate aapko taklife hui hogi. par mere khyal se aisa har badi machchli chhoti machchli se karati aai hai..mujhe isme jativad ki gandh kam r jalsi jyada lagti hai...
    hathi ko sadak par chalta dekh kutte bhonkte hai...kutte sochte hai ki ye b char pair wala hum b char pair wale, fir ye uncha kyo chal raha hai.isse hathi ki chal r mastani ho jati hai kyoki wo janta hai ye kutte hai inka kam hai bhonkana..isliye kahawat bani hai...KUTTE RAHE BHONKTE HATHI CHALE MASTANI CHAL.
    aapki sitution aisi hi hai...aap bade r unche ho..ab kutte dekhenge to bhow bhow to karenge hi..aap apni chal r mastani kar de....
    AAJKAL HINDU-MUSLIM-ISAI-SIKH WALI BAT SIRF KITABO ME RAH GAYEE HAI.SACH MANO AAJ KI GANERATION IN SANKIRN SOCH SE KOSO DOOR HAI..

    mai garv se kahta hoo ahfaz mere path-pradhshak hai...

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  6. aapka lekh vakai aaina hai ,bahot sare logo me is tarah ke khayalat hai aur bahot sare log aise bhi hai jo in sab baato ko dhayan nahi dete ,ye mamla bilkul vaisa hi hai jaise koi sugar ka marij mithi chay se parhej karta hai lekin mithai hajam kar jata hai ,kabja karne wale jat pat nahi dekhte ,par makan malik bechara apni taslli ke liye yah man leta hai ki muslim ko nahi dunga to makan surkshit rahega

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  7. hhhmmmmm nothing much to say here for me bhaijaan .... but still i wanna say a single line for u .... "Fight for ur right"

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