21 November 2009

कहाँ हैं कलाकार और उनके संगठन.. ?

एक फ़िल्म की शूटिंग के दौरान आग लग गयी, कई कलाकार जल गए। कई अभी भी ठीक से चल नहीं पा रहे हैं। शर्मनाक बात ये की फ़िल्म निर्माता ने इलाज के लिए न खर्चा दिया न हाल चाल पूछा। एक कलाकार कल ही कालड़ा अस्पताल से घर लौटा। मेरी तो जान जल गयी। ठीक है फ़िल्म निर्माता से मेरे भी सम्बन्ध घर जैसे हैं पर फ़ोन कर के मैंने तो उन्हें झाड़ दिया। उन्होंने मुझसे ये भी कहा कि इस मामले में नेतागिरी मत करो। किसी अखबार ने कुछ नहीं छापा। एक बात जो मुझे चुभी वो ये कि तथाकथित दोनों कलाकार संघों को इस बात की जानकारी तक नहीं है। क्या सिर्फ़ लड़कियों को हीरोइन बनाने और फ़िर उनके साथ गुपचुप कर्म करने या उन्हें साथ लेकर घूमने तक ही सीमित है कलाकार संघ।
जैसे ही छत्तीसगढ़ राज्य अस्तित्व में आया, अजीत जोगी की कृपा से छत्तीसगढ़ फ़िल्म विकास निगम अस्तित्व में आया। उस समय बागबहरा के विधायक परेश अग्रवाल को इसका अध्यक्ष बनाया गया था। फ़िल्म विकास निगम ने छत्तीसगढ़ फ़िल्म फेस्टीवल जैसा एक बड़ा आयोजन भी किया था। उस समय की सबसे थकी हुई फ़िल्म भोला छत्तीसगढ़िया को सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म घोषित किया गया था। भोला.......न चली न लोगों ने पसंद किया, लेकिन पुरस्कार उसे इसीलिये मिला क्योंकि उसके निर्माता परेश अग्रवाल थे। उनका भतीजा अंकित इस फ़िल्म का हीरो था। यानि छत्तीसगढ़ बना और कलाकारों में नेतागिरी शुरू हो गयी थी। कांग्रेस की सरकार जैसे भी गयी। भाजपा की सरकार बनी तो बृजमोहन अग्रवाल के छोटे भाई योगेश अग्रवाल ने अपने चंगु मंगू लोगों के साथ मिलकर छत्तीसगढ़ आर्टिस्ट एसोसिएशन बना डाला। फ़िर शुरू हुआ संस्कृति विभाग से लेन देन का सिलसिला । लाखों रुपये कलाकारों के नाम पर कमाए गए। कुछ काम हुए तो कुछ अभी भी पेंडिंग हैं। एडवांस तो निकल गया है। अब सरकार के पास और भी तो काम है। कौन पूछेगा पैसे का क्या हुआ।
इसी बीच मैंने पहल की और कलाकारों को एकजुट कर उन्हें समझाया कि खाली मंच और एल्बम पर एक्टिंग या नाच गाने से कुछ नही होगा। सरकार , संस्कृति विभाग और कलाकारों के संबंधों को मैंने कई बैठकों में समझाया। उन्हें संस्कृति मंत्री का घर और संस्कृति विभाग का दरवाज़ा भी दिखाया । एक और कलाकार संघ (आलाप) अस्तित्व में आ गया। मुझे संगठन चलाने का अच्छा खासा तजुर्बा था। हमने bhi prakashit किया। rajyapal से विमोचन भी करवाया। कलाकारों के हाथ में पेन भी पकड़वाया। सब कुछ ठीक चल रहा था, इसी बीच मुझसे कई बातें छुपाई जाने लगीं । मैंने हाथ खड़े कर दिए, हमेशा की तरह ... मेरे कारण अध्यक्ष लक्ष्मण चौहान ने इस्तीफे की पेशकश भी की, मैं सबको समझाता रहा। सचिव अनुमोद को भी मैंने कई बार समझाया की संगठन चलाना मज़ाक नहीं है। उसके आसपास भी खाली कलाकार बढ़ने लगे और उसको लगने लगा कि अब वह कलाकारों का नेता बन गया है।
हमने संस्कृति विभाग को साफ़ कर दिया कि अब योगेश की संस्था को कोई कार्यक्रम मिलेगा तो हमें भी कार्यक्रम देना पड़ेगा । सब कुछ ठीक ठाक था, अचानक एक प्रोग्राम के दौरान अनुमोद और लक्ष्मण में विवाद हुआ। लक्ष्मण ने इस्तीफ़ा दे दिया और मेरे परम मित्र प्रदीप ठाकुर को अध्यक्ष बना दिया गया। खैर, मुझे अकेले चलना और अपनी पहचान बरकरार रखना आता है। लेकिन मूल मुद्दे से जब कथित कलाकार संघ भटकते हाँ तब खीज होती है। दस दिन पहले जब फ़िल्म के सेट पर आगज़नी हुई, और कलाकार जल भुन गए तब कोई कलाकार संघ आगे क्यों नहीं आया? कहाँ हैं कलाकार और उनका संगठन?

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