09 May 2014

लूटो-खसूटो अभियान का एक हिस्सा "मीडिया" भी

आजकल का सीधा सा फंडा है। कुछ भी गलत करना हो तो या तो एक अखबार शुरु कर दो या एक चैनल शुरु कर लो। अगर यह भी नहीं कर सकते तो किसी भी एक चैनल की माईक आई डी खरीद कर ले आओ ......या किसी मासिक , पाक्षिक , साप्ताहिक या दैनिक अख़बार का आई कार्ड बनवा लो।   पुलिस दस्तक दे तो धौंस पत्रकारिता की। हाल ही में जितने भी चैनल या अख़बार अस्तित्व में आये हैं सबका एक बत्ती कनेक्शन है। पैसा, पैसा और सिर्फ पैसा। यह लोग पत्रकारिता को तो कलुषित कर ही रहे हैं साथ ही आने वाली पीढ़ी को एक गलत रास्ता भी दिखा रहे हैं। एक खबर चौंका देने वाली है। हर चिट फण्ड कम्पनी ने एक- एक पत्रकार को अपने साथ जोड़ लिया है। चिट फण्ड कम्पनी में विवाद होने पर यही पत्रकार बीच बचाव के लिये बुलाये जाते हैं। ऐसे पत्रकारों का ख़बरों से कोई वास्ता है ही नहीं। यह लोग सिर्फ़ "लायज़निंग" के लिए दिन भर घूमते हैं। हाल ही में राजधानी रायपुर से आम जनता के करोड़ों रूपए लेकर भागने वाली कंपनी भी एक न्यूज़ चैनल द्वारा ही संचालित की जा रही थी | क्या आप जानते है छत्तीसगढ़ में  चिट फण्ड कम्पनियों  का जनक भी राजधानी से निकलने वाला एक प्रतिष्ठित अखबार ही है

यही वजह है कि चिट फण्ड कम्पनियां लगातार अपना जाल तेज़ी से फैला रही हैं। पुलिस को भी सारे ठिकानों का पता है लेकिन कार्यवाही कुछ नहीं। आम आदमी चिट फण्ड कम्पनियों के मकड़जाल में फंसकर अपने पसीने की जमा पूंजी को इनके प्रलोभन में आ कर लुटा रहा है। अकेले रायपुर में ही पचास से ज़्यादा चिट फण्ड कम्पनी है।  बीच बीच में युवक कांग्रेस और कुछ युवा नेता इस मामले को मीडिया में उठाते हैं और फ़िर गायब हो जाते हैं। एक नहीं कई बार ऐसा हुआ है। मीडिया वाले भी जाते हैं।  कुछ कवरेज करके आ जाते हैं तो कुछ सलटारे के लिये रुक जाते हैं। नए नवाड़े पत्रकारों को एक बार पैसे की लत लग गयी तो बस गयी पत्रकारिता चूल्हे में। रोज़ का बस एक ही काम। ऐसी ख़बरें ढूंढो जहाँ से पैसा आये। आम आदमी के लिए कभी नहीं लड़ेंगे ये पत्रकार।  कुछ पत्रकारों ने तो चिट फण्ड कम्पनियों को इतना डराया कि कम्पनियों ने उन्हें पार्टनरशिप का ही न्योता दे डाला। मतलब अब पार्टनरशिप में फलने फूलने लगा चिट फ़ण्ड का धँधा। 

आम लोग आखिर क्यों फंसते हैं इन चिट फण्ड कम्पनियों के जंजाल में ? दुनिया भर के राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय बैंक हैं जहां वे पैसा जमा करके अच्छा ख़ासा ब्याज भी पा सकते हैं। अब कौन समझाये इनको कि आज तक किसी की नहीं हुईं चिट फण्ड कम्पनियाँ। यह लोग केवल लूटपाट करने ही आते हैं और अपना काम करके निकल भी लेते हैं। पुलिस के पास कई चिट फण्ड कम्पनियों के खिलाफ़ लिखित शिकायतें हैं लेकिन पुलिस के पास वी आई पी ड्यूटी के कारण जांच का समय नहीं हैं।  सब लगे हैं अपनी अपनी रोटियां सेकने में और लोग लुट रहे हैं। राजनीतिक , प्रशासनिक और पत्रकारिता के दबाव मे कौन आगे आये और निजात दिलाये इन चिट फण्ड कम्पनियों से …?

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