12 May 2014

"मदर्स डे" पर एक साथ तीन साड़ियां पैक हुईं एक माँ , दूसरी सासू माँ , तीसरी खुद के लिये

"मदर्स डे" पर साड़ी की दुकानों में खूब भीड़ रही। रविवार होने के कारण गरीबी रेखा के कार्ड होल्डर कर्मचारी सन्डे मनाने के कारण दुकान नहीं आये।  मालिकों ने ही मोर्चा सम्हाला हुआ था। एक से एक किस्से देखने को मिले। एक पति अपनी पत्नी और बच्चों के साथ आया।  उसकी पत्नी ने भी तीन साड़ियां पसन्द की। पति ने कहा कि हम मम्मी के लिये एक साड़ी लेने आये थे।  तीन क्यों ? पत्नी का जवाब सुनकर दुकान का मालिक भी अपनी हंसी रोक नहीं पाया। पत्नी ने बड़े ही आत्मविश्वास के साथ कहा कि आपकी माँ क्या मेरी माँ नहीं हैं। एक आपकी मम्मी के लिये , एक मेरी मम्मी के लिये और तीसरी आपके बच्चों की मम्मी के लिये। पति ने आसपास ए. टी. एम. कहां है पूछा और पसीना पोछते हुए बाहर निकल गया।  
        मुझे लगा "आज की बात " के लिए यह अच्छा विषय है।  दुकानदार से दोस्ती बढ़ा ली और उसे कुरेदना शूरू किया। उसके बाद बाकी लोगों को साड़ी दिखाते दिखाते एक के बाद एक किस्सा बयान किया। दुकानदार का कहना था कि आज सुबह से ऐसा ही हो रहा है। जो भी आ रहा है तीन साड़ी ले जा रहा है। तुक्का वही -एक आपकी मम्मी के लिये , एक मेरी मम्मी के लिये और तीसरी आपके बच्चों की मम्मी के लिये। इसी बीच एक और जोड़ा आ गया।  दुकानदार ने रेंज पूछी तो पत्नी ने बोला - पांच से छह हज़ार तक की चलेगी।  मैं और दुकानदार उसके पति की तरफ़ देख रहे थे। पति ने भावुक होकर कहा कि माँ के लिये  पांच छह हज़ार हज़ार की कोई बात नहीं है।  पत्नी बोली - माँ के लिए खरीद रखी है।  मेरे लिए चाहिए।  हम दोनों पति को ही देख रहे थे। इतना असहाय पुरुष मुझसे देखा नहीं जा रहा था।  मैं बाहर आ गया। 
         तभी एक सास,  बहु और बेटा दुकान में दाखिल हुए। सास तो बहुत ही भली लग रहीं थीं। दुकानदार ने जो साड़ियां खुली रखीं थी, उसे फ़िर से उसकी ख़ासियत के साथ दिखाना शुरु किया।  बहु को कुछ समझ नहीं आ रहा था।  दुकानदार को जब वह भीड़ होने के बावजूद सताने लगी तो दुकानदार ने उसे खुद अपनी पसन्द की साड़ी निकाल लेने को कहा।  उसने भी पांच हज़ार की साड़ियां निकालना शुरु कर दिया। इसी बात पर पति पत्नी में  विवाद हुआ और वो जाने लगे।  दुकानदार ने कहा कि कुछ सस्ती दिखाऊं ? बहु तुनक गयी और सास का हाथ पकड़कर बाहर ले गयी। पीछे पीछे पति भी चला गया। 
        यह सब नसीब हुआ मेरी एक बहन रानू के कारण।  आज उसने मुझे घर बुलाया और मेरे हाथ में एक हज़ार का नोट पकड़ाकर मेरे कान में कुछ कहा।  रानू की मम्मी के लिए साड़ी लाना अब मेरी जिम्मेदारी थी।  शादीशुदा होने के कारण महिलाओं की आदतें जानता हूँ।  सो ……हमने तय किया कि दोनों भाई बहन जाकर साड़ी खरीदेंगे।  जिस दुकान में यह सब हो रहा था हम वहां से खिसक लिये।  मम्मी के लिए अच्छी सी साड़ी पसन्द की और उन्हें "surprize-gift" दे आये।  माँ तो माँ होती है।  साड़ी देखकर माँ के अन्दर जो खुशी देखी उसका बयान नहीं कर सकता। विश्व की हर माँ को मेरा वंदन। happy mothers day माँ।

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