12 March 2010

पहले अनाथ पत्रकारों को तो सम्हाल लो...

प्रेस क्लब का अध्यक्ष क्या राष्ट्रपति होता है ? वो भी अवैध ....चार साल तक बेशर्मी से... क्या हो गया है रायपुर प्रेस क्लब के अध्यक्ष अनिल पुसदकर को? आज कुछ अख़बारों में उनका बयान पढ़ा । अपने बयान में उन्होंने कहा है की प्रेस क्लब गुरुकुल आश्रम के बच्चों के साथ है। मैं तो पहले दिन से कह रहा था कि उन बच्चों को इस पचड़े से दूर रखो। प्रेस क्लब की अनाथाचारी तो ख़त्म कर नहीं पा रहे हैं , अब अनाथ बच्चों पर ध्यान देंगे। स्वर्गीय पत्रकार कुलदीप निगम आज जिंदा होते तो ये नौबत ही नहीं आती। तकनीकी कारणों का हवाला देकर पत्रकारों को कब तक दिलासा देते रहेंगे अनिल जी। अब वक्त आ गया है। बुरे वक्त काटकर मैं और भी ज्यादा उर्जावान हुआ हूँ।
बहुत दिन से सोच रहा था कि अनिल पुसदकर के बारे में भी लिखूं। फिर सोचा और भी तो ग़म हैं ज़माने में। राजधानी का प्रेस क्लब है। कौन गरिमा का ध्यान रखेगा। जब मैंने नक्सली - पत्रकार पुलिस भाई भाई लिखा तो अनिल भैय्या का कॉल आया था, बोल रहे थे कि राव तो चोर है। मैंने कहा - होगा, मेरा टार्गेट तो सहारा , रुचिर और राजीव ब्रिगेड हैं। मैं ज्यादा चोर उचक्कों के बीच रहा नहीं हूँ इसीलिये इस फील्ड के बारे में ज्यादा नॉलेज नहीं है। अनिल भैय्या को कोई स्टेप उठाना था तो वो ये कि सहारा के जिन पत्रकारों के कारण मासूमों को रोना बिलखना पड़ रहा है, उन्हें प्रेस क्लब से निष्कासित कर देते, पर वो नहीं करेंगे। कारण - गद्दी हिल जाएगी। मुझे तो लग रहा है कि राजधानी के पत्रकार अपना ध्यान राजनीति में ज्यादा और पत्रकारिता में कम लगा रहे हैं। हरिभूमि के पत्रकार राजकुमार सोनी को इस मामले में क्या रूचि थी? खैर उसने मानवीय धर्म निभाया है और अपने प्रतिस्पर्धियों को टक्कर भी दी है। भले ही उसके कारण रुचिर का ख़ास ब्रम्हवीर खून के घूँट पीकर हरिभूमि में समय काट रहा हो। सहारा के विवादास्पद पत्रकारों को निलंबित करने की बजाय प्रेस क्लब के अध्यक्ष ने निशाना बनाया पी सेवन के पत्रकार गिरीश केशरवानी को। वो गरीब हाथ में कुछ फार्म लेकर आया था, बस भड़क गये , भगा दिया उसे प्रेस क्लब से । बाद में पता चला कि पी सेवन के हेड अजय शर्मा फिर इलेक्ट्रोनिक मीडिया के पत्रकारों का कोई संगठन खड़ा कर रहे हैं। बस ये बात उन्हें नागवार गुजरी। अजय भैय्या की तो आदत है, ऐसे तमाशा करके गाली खाने की। अब उनका नया शगल है- इलेक्ट्रोनिक मीडिया एसोशियेशन ऑफ़ छत्तीसगढ़। सब जगह फार्म भेज रहे हैं वो। मेरे पास नहीं भेजे हैं अभी तक। जानते हैं मेरी आदत। काम क्यों नहीं करते ये लोग। संगठन बना लोगे तो क्या हो जायेगा। पी सेवन या १८ के नाम से वसूली अब नहीं हो पा रही है क्या? अपनी हैसियत तो बना लो कि मंत्री लोग आप लोगों को देखकर भागें मत।
मैं अनिल भैय्या को दो साल से बोल रहा हूँ कि प्रेस क्लब का चुनाव अगर किसी तकनीकी कारण से नहीं हो पा रहा है तो एक इलेक्ट्रोनिक मीडिया का सेल बना लो। पर वो ऐसा भी नहीं करेंगे। दो श्रमजीवी पत्रकार संघ एक दुसरे का कपडा फाड़ ही रहे हैं। ऐसे में महासंघ कि क्या ज़रुरत आन पड़ी? चलो संगठन बन भी गया तो उसे ढंग से चलाते ना? शशि कोन हेर ने इस संगठन को बिलासपुर में सीमित कर दिया ना?
रायपुर के वरिष्ठ पत्रकार तो अब किसी को श्रद्धान्जलि देने भी प्रेस क्लब आना पसंद नहीं करते। क्या से क्या हो गया है प्रेस क्लब। हम सब ज़िम्मेदार हैं इसके लिए। अख़बार बांटने वाले हाकर पदाधिकारी बने बैठे हैं । बेशर्मी से दांत निपोरते हुए। हम लोगों को क्या है, हम तो रात को जाते हैं । हम तो नाईट के मेम्बर हैं। अनिल पुसदकर के प्रोफाइल में पढ़ा की वो चार साल से लगातार प्रेस क्लब के अध्यक्ष निर्वाचित होते रहे हैं। कब और कहाँ हुआ ये निर्वाचन? चौबे कालोनी में? कोई डेट वेट याद है। कोई रजिस्टर है? कुछ भी चल रहा है। प्रेस क्लब तो चारागाह हो गया है। आधे से ज्यादा पत्रकार तो वहां बैठकर ज़मीन की दलाली से जुड़ गये हैं। दो महीने से मैंने भी वहां दिन में जाना बंद कर दिया है। मुझे कैसे भगाओगे ? हाँ इस ब्लॉग को पढने के बाद बैठक ज़रूर बुला सकते हो। कौन आएगा बैठक में? वही ब्राम्हण पारा के चुनिंदे नुमाइंदे? बंद कमरे में कर लोगे फैसला? चलो कर के दिखाओ। मैं तो खुद कोर्ट जाना चाह रहा हूँ। पर कुछ कागज़ हाथ में होना चाहिए ना? बहुत दिन बाद कल कुछ अखबार और चैनल के दफ्तर का मौका मिला। वहां पता चला कि हम लोगों का जनसंपर्क क्या टूटा अपने ही लोग पीठ पीछे बुराई करने में लगे हैं। आज से हम सारे प्रेस जायेंगे, अब अलख जागेगी चुनाव की। अपने मुंह मिया मिट्ठू बनने वालों की हम लेंगे खबर। इलेक्ट्रोनिक मीडिया का कीड़ा होने के बावजूद हम घर बैठे हैं और लोग ऐश कर रहें हैं। ये मेरी कुंठा नहीं, व्यथा है। कुंठित वो होते हैं जिन्हें कुछ आता जाता नहीं , जिन्हें हमेशा नौकरी जाने का खतरा बना रहता है। हम तो नवरात्री के एकम से मीडिया हाउस जोर शोर से शुरू करने कि तैय्यारी कर रहे हैं। न्यूज़ पोर्टल फाइनल हो चुका है। हम स्टोरी कि बैंकिंग भी कर चुके। अब हम बताएँगे खबर और खबर के पीछे की खबर। बस थोड़ा सा इंतज़ार ..........

7 comments:

  1. ंसभी जगह यही हाल है संगठन मुखौटा भर रह गया है और इसके मठाधिश प्रशासन और सरकार पर धौंस जमा कर अपनी रोटी सेंकते है।

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  2. agar ye sab sach hai to yaqinan post ne hila kar rakh diya.sangathan ko loktantrik to hona hi chahiye.

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  3. अब लिख लेना समय आ गया है
    खर पतवार जला देना
    अब और न सहना
    समय आ गया है

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  4. अहफाज जी जो पहले से नंगा है { बिना पंजीयन के फर्जी संघ } उसकी कपड़ा उतारने की क्या जरुरत है
    आपको पूरी जानकारी नहीं है ,आप पत्रकार है पंजीयक श्रम विभाग से पता करे ,CHHATTISGAR में केवल एक ही श्रम जीवी पत्रकार संघ है जो

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  5. ...विस्फ़ोटक लेख!!!!

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  6. alam yah hai ki mujh jaise kai logo ko itne saal baad bhi sadasyata nahi di jaa rahi hai, koi yah bhi batane ko taiyar nahi ki kyon...............

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  7. अच्छा प्रयास है मेरे दोस्त । तुम्हारी नीयत साफ़ रहती है ,बेबाकी ही तो खूबी है मेरे यार की । अच्छा लगा तुम्हें पढ़ कर । तुम सच्चे हो ,इसीलिए अच्छे भी हो । बधाई ।

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