06 March 2010

नक्सली- पुलिस-पत्रकार भाई भाई?....

आखिरकार वो आदमी जेल चला गया, जो नक्सली हमलों में मारे गये बच्चों का सहारा था , मददगार था उनका। ५९ बच्चों का गुरु पापा था , लेकिन सहारा ने ही उसे बेसहारा कर दिया। बहुत अच्छा काम किया सहारा समय ने, ऐसे लोगों को निपटाना ही चाहिए जो नक्सलवाद के आड़े आयें। समाजसेवी बनता था साला। बच्चे बेचेगा। मज़ा आ गया, पुलिस ने भी क्या तत्परता दिखाई। इस घटना से ऐसा भी लगने लगा है कि नक्सली- पुलिस - और पत्रकार भाई भाई तो नहीं होते जा रहे।
राजीव ब्रिगेड के लोग भी बधाई के पात्र हैं। नाम राजीव ब्रिगेड और काम ? सूचना जानने का अधिकार? क्या करते हैं रोज़ ये लोग? सहारा के दफ्तर में रोज़ की उठक बैठक क्या साबित करती है? पत्रकारिता की आड़ में क्या हो रहा है ये सब? छोटे छोटे मामलों में वरिष्ठ पत्रकारों की दखल , क्या चल रहा है। अगर बड़ा मामला था तो लोकल चैनल और अखबार वाले क्यों बंटने लग गये। मुझे याद नहीं कि कभी सहारा ने वहां की ये खबर दिखाई हो की एक ऐसा इंसान भी शहर में है जो नक्सलियों से नहीं डरता और उनकी करतूतों से अनाथ हुए बच्चों को पालने का दंभ रखता है। हाँ ई टीवी ने कई बार फोकस किया है। times now की टीम तो दंतेवाडा तक जाकर ऐसे बच्चों का साक्षात्कार कर आयी है । खबर तो खबर होती है, बस नजरिया चाहिए। पर जब नज़रों में अर्थ का चश्मा चढ़ जाये तो कुछ नहीं दिखता।
टी आर पी भी बढ़ गयी होगी सहारा समय की। अच्छा मसाला था। खबर होती तो खबर लिखता पर वो तो मसाला था, sponserd मसाला। अब पुलिस करे तो क्या करे, बड़े बड़े मामले सुलझा नहीं पा रही है, इस मामले में सी डी तैयार मिल गयी। अनियमितताएं भी रेडीमेड मिल गयीं। बस हो गया काम , जय श्री राम। खबर बनाने के लिए ड्रामेबाजी की ज़रुरत नहीं होती, जज्बा चाहिए होता है, पर जब सब बिकाऊ हो तो उस पर कमेन्ट करना भी शायद मूर्खता होती है, पर सच कहूँ , मुझसे रहा नहीं गया। ख़बरों से दूर ज़रूर हूँ, पर खबरदार हूँ मैं। मेरी थोड़ी सी तैयारियां बच गयी हैं पर बहुत जल्द मैं इन्कलाब लाने की कोशिश फिर करूँगा। ज़िन्दगी और मौत का वो सोचें जिन्होंने अंड बंड कमाई की है और उसे खर्चा करने या बचा कर रखने, या और कमाने की जुगत में जी रहे हैं। नक्सलवाद से बड़ा मिशन है पत्रकारिता। पर जूनून नहीं है, सब दलाल होते जा रहे हैं, हे भगवान् , या मेरे परवर दिगार आप लोग कुछ करोगे या नहीं? चलो मेरे अन्दर ही एक अलख जगाकर उसकी रक्षा करो। जब बुलाना हो बुला लो, पर जीते जी ऐसी दुर्दशा मत करो। आज़ादी अब ज़रूरी हो गयी है।

5 comments:

  1. ...प्रभावशाली व प्रसंशनीय अभिव्यक्ति!!!

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  2. बहुत अच्छा लगा पढकर....कम से कम कोईतो है जो हिम्मत से इन देशद्रोहियों के बारे मैं लिख सके....वैसे बंधु आजकल के मीडिया हाऊस किसी चकला घर से कम नहीं है...दोनों ही जगह अपना जमीर बेचकर पैसे कमाये जाते हैं..

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  3. aap jaise log hain tabhi ham sab hai...himmat na haariye .....koi targ ho koi kar lagaye..ham to hona hai nidar..lena hai ghar ghar gaon gaon ki khabar!!!

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  4. vidambana to ye hai ki media ki takat ke naam par kuch log shareef ko bhi badmash bana dete hai.......aaj saikdo bachhe fir se is kartut ke karan anath ho gaye unki sudh lene wala koi nahi........aakhir un anath bachho ka kya kusur tha

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  5. नक्सलवाद से बड़ा मिशन है पत्रकारिता। पर जूनून नहीं है, सब दलाल होते जा रहे हैं, हे भगवान् , या मेरे परवर दिगार आप लोग कुछ करोगे या नहीं? चलो मेरे अन्दर ही एक अलख जगाकर उसकी रक्षा करो। जब बुलाना हो बुला लो, पर जीते जी ऐसी दुर्दशा मत करो। आज़ादी अब ज़रूरी हो गयी है।
    । ओह बहुत भयानक सच, पर मिडिया को आज सनसनी चाहिए उसके लिए सकारात्मक खबर को भी यदि नकारात्मक बनानी पड़ी तो कोई बात नहीं, पर साबस आज इंकलाब लाने का जज्बा रखते है तो इंकलाब एक दिन जरूर आऐगा।

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