13 July 2009

तुम याद बहुत आओगे..

......उन्हें देखकर अंदाजा लगाना मुश्किल था कि वो कोई पुलिस वाला है या कोई सीधा सादा आदमी। उनकी आंखों में इतनी सज्जनता और ईमानदारी दिखती थी सहज उन पर विश्वास किया जा सकता था। मामला कितना भी जटिल और उलझा हुआ हो, वो हमेशा शांत रहकर उसे सुलझाने में यकीन रखते थे। रायपुर में तो उनसे मुलाकात आम तौर पर होती ही रहती थी। राजनांदगांव में भी उनसे मुलाकात ज़्यादा इसीलिये होती रही क्योंकि ससुराल होने के कारण अक्सर मेरा आना जाना लगा रहता था। ... सचमुच अपना कोई दुनिया छोड़ता है तो कितना दुःख होता है। इसकी अनुभूति एक बार फ़िर हो रही है मुझे। ... कल हम भानुप्रतापपुर में एक राज्य स्तरीय पत्रकार सम्मलेन में थे। मोबाइल पर ग्यारह बजे से खबरें आने लगीं थीं । तीन बजे जैसे ही चौबे जी की शहादत कि सूचना मिली उन्हें जानने वाले पत्रकार साथी अपने आपको रोक नहीं पाये । मैंने वहीँ एक शोक सभा की और सम्मलेन की समाप्ति की घोषणा भी।
भानुप्रतापुर से घटनास्थल सिर्फ़ चालीस किलोमीटर था। हम वहां जाना चाहते थे , लेकिन शाम हो जाने के कारण हमें वहां से आगे नहीं जाने दिया गया,। अब खीज बढ़ने लगी थी। केन्द्र सरकार से पैसे की लालच में क्या मदनवाडा में थाना खोलना ज़रूरी था? एक ठाणे में ९ जवानों की पोस्टिंग करके सरकार क्या निपट लेती नक्सालियों से? रायपुर में बैठकर बयानबाजी करने वाले लोगों को पता नहीं कब शर्म आएगी? दो साल में नक्सालियों को छत्तीसगढ़ से खदेड़ने वालों को पहले ये बयान देना चाहिए की वो अपने थानों की सुरक्षा कितने सालों में पुख्ता करेंगे। इस घटना ने मुझे भी उद्वेलित कर दिया है। कहाँ है हमारी खुफिया एजेंसियां ? करोड़ों रुपये का गुप्त खाता किन लोगों पर खर्च किया जा रहा है? पुलिस महानिदेशक को नक्सालियों से निपटने की बजाय साहित्य में रूचि है तो उन्हें छत्तीसगढ़ साहित्य अकादमी का अध्यक्ष क्यों नहीं बना दिया जाता। रोज़ रोज़ जवानों की शहादत की ख़बरों ने अब हमारा जीना भी मुश्किल करके रख दिया है। आज पहली बार नक्सालियों ने पुलिस अधीक्षक को शहीद किया है। कल बड़े अफसर भी उनके निशाने पर होंगे, रायपुर में नक्सालियों का शहरी नेटवर्क फेल करने और दो बार हमला झेल चुके चौबे जी नक्सालियों के टारगेट में थे क्या ये बात शासन या पुलिस के आला अधिकारियों को पता नहीं थी? क्या हमारा सूचना तंत्र इतना कमज़ोर है? नियम बना था की कोई भी पुलिस अधिकारी नक्सालियों के टारगेट में होगा तो उन्हें शहरी इलाकों में रखा जाएगा । फिर चौबे जी के साथ अन्याय क्यों किया गया। खूब सारे सवाल हैं , पर नेताओं को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। आज पूरा छत्तीसगढ़ रो रहा है। आम लोगों की मदद के लिए गुहार क्यों नहीं करती सरकार ? नक्सालियों की दुश्मनी क्या सिर्फ़ पुलिस वालों से है? जिससे नफरत है उन्हें टारगेट क्यों नही बनाते ? खैर....आज चौबे जी हमारे बीच नहीं हैं। पर दिल से कहता हूँ .... तुम याद बहुत आओगे.

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