21 February 2011

छत्तीसगढ़ी फ़िल्में बनाम वेश्यावृत्ति का रास्ता

इस हेडिंग पर फिल्म बनाने वालों को आपत्ति हो सकती है , लेकिन अब ईमानदारी से उन्हें ये बात स्वीकार कर लेनी चाहिए की हाँ कुछ लोग ऐसा कर तो रहे रहे हैं . मैं उन्ही से सीधे पूछता हूँ की दो निर्माताओ को छोड़कर कितनों का पैसा वसूल हुआ है. फिर भी क्यों बन रही है फ़िल्में? किसका पैसा लग रहा है? हाँ वेश्यावृत्ति भी बुरी बात नहीं है. वही करो न . फिल्मों में काम करके अपना रेट बढाकर भी करो. इसमें भी बुराई नहीं है, लेकिन एक बार उन लोगों के बारे में भी सोच लो जिनका घर सिर्फ फिल्मों और एल्बम  से चल रहा है. एक पुलिस अधिकारी तो अपनी नौकरी दांव पर लगाकर यही से अपना घर चला रहा है. मुझे उन औरतों और लड़कियों से शिकायत नहीं है जो वेश्यावृत्ति भी कर रही हैं और फ़िल्में भी. मुझे आपत्ति है तो उन निर्माताओं से लड़कियों को सिर्फ इसी शर्त पर काम दे रहे हैं की ये भी करना पड़ेगा. कितना पैसा दे रहे हैं फिल्म के  निर्माता अपने कलाकारों को?  पैसा कम मिलता है इसीलिये तो करा रहे हैं वेश्यावृत्ति. उनका कोइ दोष थोड़े ही है. कौन बताएगा लोगों को की दो निर्माता सिर्फ कुछ वन विभाग और कुछ ऐय्याश दोस्तों से पैसा लेकर वेश्यावृत्ति पहले कराते हैं और फिल्मों में काम बाद में देते हैं. बाद में पैसा ख़त्म होने के बाद वो वेश्यावृत्ति में फिर से उतर जाती हैं तो उनकी क्या गलती है. गिरफ्त में आये फिल्म अभिनेत्रियों से कडाई से पूछताछ करनी चाहिए की वो सिर्फ अपना घर चलाने के लिए ऐसा कर रहीं थीं या किसी ने उन्हें प्रेरित किया था? वेश्याएं पकड़ी गयीं हैं तो दलालों का भी तो खुलासा होना चाहिए. मैं आज इसे तथ्य को लेकर सचित्र आलेख आप लोगों के सम्मुख प्रस्तुत करने वाला हूँ.  कल जो वेश्या पकड़ी गयी है उसने प्रेम चंद्राकर की फिल्म "मया दे दे मयारू" में छत्तीसगढ़ के सुपर स्टार कहे जाने वाले अनुज शर्मा की माँ का किरदार निभाया था. उसे अपनी नहीं तो अपने बेटे की लाज तो रखनी चाहिए थी. ले दे कर कुछ गंभीर लोग फिल्म बनाते हैं, इंडस्ट्री थोडा सांस लेने लगती है और जमीन दलाल, वाहन खरीद -बिक्री और विशुद्ध रूप से मुंबई से रायपुर तक लड़कियां सप्लाई करने वाले अपनी दूकान सजा लेते हैं .  ऐसे लोगों के साथ गला मिलाने को तैयार रहते हैं एक अखबार और स्कूल के मालिक भी. नहीं तो ये क्या बात हुई की फिल्म की हीरोइन के भाई को ही उन्हें निर्देशक चुनना पड़  गया. करनी इनकी होती है और सजा भुगतते हैं वो लोग जो खून पसीना एक करके या हिन्दी फिल्मों की कॉपी करके ही फिल्म बनाने वाले. ऐसे में फिर ताला लगेगा फिल्म उद्योग में. जब से छत्तीसगढ़ में "मोर छईहां भुइयां" रिलीज हुई है तब से आज तक कई हीरोइनें ऐसे ही आरोपों से घिरती रही हैं. ऐसा ही चलता रहा तो भगवान ही मालिक है छोलिवूड का. 

4 comments:

  1. chhattisgarhi film udyog ko bchane ke liye kuchh to karna hi hoga

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  2. nahi to filme to band ho jayegi aur dhandha chalta rahega.....

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  3. बहुत कडवी बात कह दी आपने अहफाज भाई। पर दुख की बात यह है कि आपकी यह कडवी बात झूठ नहीं है।

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  4. @गिरफ्त में आये फिल्म अभिनेत्रियों से कडाई से पूछताछ करनी चाहिए की वो सिर्फ अपना घर चलाने के लिए ऐसा कर रहीं थीं या किसी ने उन्हें प्रेरित किया था? वेश्याएं पकड़ी गयीं हैं तो दलालों का भी तो खुलासा होना चाहिए.

    कब होगा?

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