29 November 2010

.....और फिर ढिशुम.. ढिशुम...

पुलिस चाहे लाख अपनी पीठ थपथपा ले लेकिन  उसे एक बात तो माननी पड़ेगी की रात में शराबियों की वजह से आम लोगों का जीना मुहाल है. एक दिलचस्प वाकया  परसों रात हुआ. मैं एअरपोर्ट से लौटकर प्रेस क्लब होते हुए घर लौट रहा था. पुलिस कंट्रोल रूम से थोड़ी दूर पर दो शराबी एक सज्जन की कार को रोक कर खड़े थे, कार मालिक को वो लोग लगातार गलियां भी बके जा रहे थे. आदतन मैं रुका. दोनों अपनी अपनी सफाई मुझे देने लगे. आपको जान कर आश्चर्य होगा की कार मालिक आखिर था कौन? शराबियों की गाली गलौच से कार मालिक और उनका परिवार कार के अन्दर डरा सहमा बैठा हुआ था. मैं कार मालिक को अच्छे से पहचान गया था. मुझे देखकर कार मालिक भी थोड़ा राहत महसूस कर रहा था.
कार मालिक और दोनों शराबी थाने जाने की जिद पर अड़े हुए थे. मैंने शराबियों को समझाया की जो हो गया सो हो गया. अब अपनी गाडी उठाओ और घर जाओ. शराबी लगातार फोन करके अपने कुछ साथियों को बुलाने की कोशिश कर रहे थे. मैंने कार मालिक से कहा की आप भाभी और बालक को घर छोड़ कर थाने आ जाइए. मैं इन शराबियों को लेकर थाने आ रहा हूँ. शराबी कार का नंबर नोट करने लगे तो मैंने भी. बाईक का नंबर नोट कर लिया. शराबियों की बाईक   का नंबर था- सी जी ०४ सी यु ४८४६ . कार का नंबर ३९९९ था. शराबियों की गाली गलौच सुनकर मुझे भी गुस्सा आने लगा था. कार के अन्दर भाभी और बच्चों की हालत देखकर लग रहा था की आखिर की क्या करूँ इन शराबियों के साथ . कार मालिक कार लेकर थाने की तरफ चले गये और मैं पैदल शराबियों के पीछे चलने लगा. अचानक कार मालिक एक सिपाही के साथ बाईक में आये और शराबियों से फिर बात की और पूछना चाहा की गलती  आखिर थी किसकी? अब तो शराबी आपे से बाहर हो रहे थे . मैंने बीच बचाव के उद्देश्य से शराबियों को फिर समझाया की मामला ख़त्म करो नहीं तो लम्बे से निपट जाओगे. मेरा इतना कहना था की एक शराबी मुझसे और दूसरा कार मालिक से भीड़ गया. अब हमारी बारी थी. दोनों ने ढिशुम ढिशुम जो शुरू किया तो शराबी होश में आने लगे. थोड़ी देर में कुछ रंगरूट भी अपनी बाईक से वहां पहुँच गये . इन रंगरूटों ने मुझे तो पहचान लिया पर कार मालिक को नहीं पहचान पाए. उन लोगों ने अपनी बाईक में शराबियों को बैठाया और मैंने कार मालिक को. शराबी जैसे थाने पहुंचे उनके तो होश फाख्ता हो गये. सब लोग कार चालक को सलाम ठोंकने लगे. फिर शराबियों को भी बताया गया की कार चालक आखिर हैं कौन? कार चालक अवकाश लेकर फिल्मों में काम कर रहे सी एस पी शशिमोहन थे. कभी शराबी और गुंडे उनके नाम से कांपते थे और आज फ़िल्मी मेकप के कारण कोई उन्हें पहचान नहीं पाया. मामला तो यहीं ख़त्म हो गया पर इससे दो बात तो साफ़ हो गयी, एक अब शशिमोहन को वापस अपनी नौकरी ज्वाइन कर लेना चाहिए और रायपुर पुलिस  को भी ये बात माँ  लेनी चाहिए की रात में शहर में परिवार लेकर घूमना खतरे से ख़ाली नहीं है.

25 November 2010

जिंदा हूँ मैं......

समय जो ना कराये कम है. मुझे आदेश मिला सबसे दूर रहने का और मैंने स्वीकार कर लिया. इस बीच कई तरह के चुतियापों और ज़िंदगी की सीख से रूबरू होने का मौका मिला मुझे. इस बीच कहाँ रहा और क्या क्या किया. इसकी झलक इन छायाचित्रों में देखें. इस छत्तीसगढ़ी फिल्म का नाम है " इही जिनगी हे.." बाकी बातें अब लगातार ब्लॉग पर होती ही रहेंगी, शंकरी नहीं रही पर मैं जिंदा हूँ और कोशिश करूँगा की आप लोगों का प्यार और स्नेह पहले की तरह मिलेगा. इसी आशा और विश्वास के साथ आपको अपनी यादो के कुछ छायाचित्रों के साथ छोड़े जा रहा हूँ.. पर याद  रखना ........