24 February 2010

मज़ाक न बन जाएँ छत्तीसगढ़ी फ़िल्में...

light, sound, action...cut.... अब तीसरे दौर में फिर ये आवाजें हमारे यहाँ गूंजने लगी हैं। दो दौर का अनुभव मिला जुला रहा है। अब तीसरा दौर क्रन्तिकारी होना चाहिए था पर फिल्मों का कंटेंट देखकर लग रहा है की पुराने अनुभवों से भी हमने कुछ नहीं सीखा। मैं शुरू से कहता रहा हूँ छत्तीसगढ़िया सीधा सादा होता है, चूतिया नहीं होता। आप फिल्म बनाते समय ये बात क्यों नहीं सोचते कि जितने पैसे में दर्शक ऐश्वर्या रॉय और केटरीना कैफ , अमिताभ बच्चन और शाहरुख़ को देखता है, आप भी उतने ही पैसे में परदे पर आते हो, तो फिर उतनी मेहनत क्यों नहीं करते। पटकथा से संवाद और फिर शूट से एडिट और रिलीज़ तक उतनी गंभीरता क्यों नहीं। दूसरे दौर में काम चुतियापे नहीं हुए थे। अब फिर वही नौबत आ गयी है, एक शहर में दो -दो छत्तीसगढ़ी फ़िल्में लगा दी गयी हैं। दोनों एक साथ निपटेंगी। आप धैर्य क्यों नहीं रखते। अब तो पूरा कारोबार सस्ता हो गया है। पहले जब रील का खर्चा होता था तब मुंबई के लोग हमसे कहते थे कि कम्प्लीट फिल्म एक जवान लड़की की तरह होती है, जितनी जल्दी हो सके उसे उसके वारिस को सौंप देना चाहिए। अब तो घर की बात है, पर बचकाने दिमागों को कौन समझाए। प्रतिस्पर्धा आप किससे कर रहें हैं ? अपने पड़ोसी से? क्या मज़ाक है।
आज पहली बार मैं आपको बता रहा हूँ की कितनी फ़िल्में बनी हैं हमारे यहाँ। कई का तो आपने नाम भी नहीं सुना होगा। इन फिल्मों के हीरो हीरोइन आज भी दुपहिया वाहनों में घुमते दिखते हैं । तो पैसा कौन कमा रहा है। कौन है शोषक? खैर छोडो। मैं आपको फिल्मों की लिस्ट बता दूँ। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के पहले बनी थीं कहि देबे सन्देश और घर द्वार । राज्य बनते ही सतीश जैन की फिल्म मोर छैयां भुइयां ने रिकॉर्ड तोड़ सफलता पाई। इसके बाद तो जिसको मौका मिला फ़िल्में बनानी शुरू कर दी, कुछ को सफलता मिली तो कुछ आज तक इस सदमें से उबर नहीं पाए है। छत्तीसगढ़ की पहली धार्मिक फिल्म बनी जय माँ बमलेश्वरी। इसके बाद ये फ़िल्में लगातार बड़े परदे पर पहुँचीं - मयारू भौजी, मोर सपना के राजा, भोला छत्तीसगढ़िया, मया दे दे मया ले ले , मोर संग चलव, संगवारी, मोर संग चल मितवा, बनिहार, पिरीत के जंग, अंगना, भुइयां के भगवान्, नैना, मोर गंवई गाँव, छत्तीसगढ़ महतारी, मोर धरती मैय्या, परदेसी के मया, जय माँ महामाया, तुलसी चौरा, कंगला होगिस मालामाल, अनाड़ी संगवारी, लेड़गा नंबर वन, मोंगरा, संगी, किसान मितान, जरत हे जिया मोर, मितवा। दुसरे दौर में कारी की पूरी मेहनत भी फिल्म का भाग्य नहीं बदल सकी। फ़िल्मी बाज़ार फिर बैठ गया। तीसरे दौर में सतीश जैन की मया ने फिर बॉक्स ऑफिस को गरम कर दिया। फिल्म तो चली विवाद भी चला। हम शुरू से कह रहे थे की ये फिल्म राजश्री फिल्म प्रोडक्शन की "स्वर्ग से सुन्दर " का रीमेक है, पर लोगों ने हमारी बात को गंभीरता से नहीं लिया और बाद में स्क्रिप्ट चोर सतीश जैन को राजश्री वालों ने कोर्ट में घसीट दिया, सतीश जैन मुंबई में रहे हैं , गोविंदा के लिए भी उन्होंने फिल्म लिखी है, फिर ये सब क्यों किया होगा उन्होंने? खूब पैसे कमाने के बाद करीब तीस लाख में राजश्री वालों ने डील फाइनल की। अब छत्तीसगढ़ी दर्शक किस पर भरोसा करें। प्रेम चंद्राकर को जब तक उडीसा के चीफ असिस्टेंट डायरेक्टर मिलते रहे चाँदी रही। दूसरे दौर में उनकी फिल्म ने भी बता दिया की वो कितने पानी में हैं। खैर आज सब व्यस्त हैं। पहले अनुज कहता था की छोटे कैमरे में काम नहीं करूँगा, अब कर रहा है। पूरी फ़िल्में छोटे कैमरे में ही तो बन रहीं हैं। बडबोला पन कहीं खो गया है। अब चुप चाप काम पर ध्यान देना होगा, बाहर से आने वाली हीरोइनों पर ध्यान देने से छत्तीसगढ़िया दर्शक फिर बिदक जायेगा। नवीन लोढ़ा ने पहले भी एक भोजपुरी फिल्म अनाड़ी संगवारी को छत्तीसगढ़ी में पेला था, दर्शकों ने बता दिया कि अनाड़ी वही था। अब वो फिर अनुज कि भोजपुरी फिल्म "मोर करम मोर धरम " को डबिंग करके बाज़ार में है। फिल्म में अनुज के भाग्य ने साथ दिया तो उसकी कई भोजपुरी फिल्मों में ये प्रयोग हो सकता है। फिलहाल बंधना, मोर करम मोर धरम , और वीडियो वर्ल्ड कि एक अजीब से नाम वाली फिल्म में टक्कर चल रही है। भंवर भी तैयार है। सतीश जैन और प्रेम चंद्राकर आने वाले महीने में फिर टकरायेंगे। प्रेम चंद्राकर ने रायपुर के चर्चित पुलिस अधिकारी शशिमोहन को अपनी फिल्म में अनुज का बाप बनाकर उतरा है। अगर फिर भी ये फिल्म नहीं चली तो कौन डरेगा शशिमोहन से? वैसे फिल्म बहुत अच्छी बन रही है। काफी लगन और मेहनत से काम हो रहा है। गोविंदा स्टाइल कि फिल्म रिक्शा वाला टूरा में भिड़े हैं सतीश जैन। भाग्य का खेल कहलाने वाला फ़िल्मी दौर सबका साथ दे। आमीन.......

6 comments:

  1. "अहफ़ाज साहब बाहर हॉलीवुड तक में कई साल लग जाते हैं केवल स्क्रीन प्ले लिखने के लिये तब जा कर अच्छी फिल्म बनती है । अच्छी चीज़े बनने के लिये समय लगता है और यहाँ पर लगता है किसी के पास समय ही नहीं है.....अच्छा लगा आपसे मिलकर, मुझे तब और अच्छा लगेगा जब आप "भगोरिया" से संबंधित भी कुछ लिखेंगे............"
    प्रणव सक्सैना amitraghat.blogspot.com

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  2. Yeh baat ek dum thiq kahi bhai aap ne ki hum kisse lad rahe hain apne aap se appne logo se. aaj jo haal bollywood ka ho gaya hai wahi haal humare yahan bhi ho jayega ek din ager yehi saab chalta raha aab yahan quality pey nahin quantity pey jyada zoor diya jaa raha hai jo ek dum galat hai

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  3. ahfazji pichhale dino maine maya de de mayaru r mahu tor diwana tahu mor diwani film ki shooting coverage ki thi.filmkaro ka utsah dekhte ban raha tha.agar ve aapka blog pad le to shayad dimag khul sakata hai....bebak kalam ke liye badhai....

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  4. आप सभी को ईद-मिलादुन-नबी और होली की ढेरों शुभ-कामनाएं!!
    इस मौके पर होरी खेलूं कहकर बिस्मिल्लाह ज़रूर पढ़ें.

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  5. मयारू मौसा , मोर सपना के रानी , ठलहा छत्तीसगढ़िया, मोला दे दे मोर ले ले , मोर संग झन्न करव रंगदारी , मोर संग चल भक्वा , मनिहार , विपरीत के जंग, अंगना माँ अंग लगा ले सजना , भुइयां के हैवान , नैना औउ मैना , मोर गंवई शहर , छत्तीसगढ़ी मेहतर , मोर गैय्या मैय्या, परदेसी के धोखा , जय माँ शीतला , तुलसी औउ भौरा , मालामाल होगिस कंगला , खिलाडी संगवारी, लेड़गा नंबर टू , गेंदा , रंडी , किसान पहलवान , हसत हे जिया मोर, भक्वा , लाचारी , हया , खिलाड़ी संगवारी "तोर करम तोर धरम , बंधवाना, भंवरा ....................अब ऐसी फिल्म भी बनेंगी....ही.. ही.. ही..
    खुद बनाओ खुद देखो ...

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