12 February 2010

हल्दी की कटोरी.....

मेरा बीस महीने का वनवास ख़त्म हो गया। इन महीनों ने अपने सारे राग रंग मुझे दिए। मैंने कई तरह के संत्रास झेले। आत्मविश्वास भी अर्थाभाव के कारण कई बार डोला। इन बुरे दिनों को अपनी पीढ़ी के लिए लिपिबद्ध कर रहा हूँ। इसी आत्मकथा की शीर्षक का नाम का नाम मैंने सोचा है ''हल्दी की कटोरी... " आप लोगों के मनोबल से मैं फिर कई नयी उर्जाओं के साथ लौट आया हूँ। एकदम आखिरी दौर में जब एक दुर्घटना ने मेरा पैर तोड़ने की कोशिश की तब हल्दी की कटोरी हमशा मेरे साथ रही। मेरे तमाम ब्लोगेर्स , ऑरकुट के दोस्तों का मैं आभारी हूँ कि वे उन दिनों भी मेरे साथ लगे रहे जब मुझे आईडी दिखाकर दस रुपये घंटे में नेट पर बैठना पड़ा। मैं पूरी ईमानदारी से आत्मकथा "हल्दी की कटोरी" लिख रहा हूँ । आशा करता हूँ आने वाली पीढ़ी के लिए ये एक प्रेरणादायक सड़क साबित होगी। अब तो लगातार लिखूंगा। मौत का कोई भरोसा नहीं है इसीलिये मैं "हल्दी की कटोरी" को किश्तों में ब्लॉग पर ही लिखकर उसका प्रिंट आउट निकालता रहूँगा। मुझे पढ़ते रहने वालों का एक बार पुनः आभार.......... और हाँ धन्यवाद भी.

4 comments:

  1. ahfaz sirji aapka vanwas khatam hua..jankar khushi hui. aapka swagat hai bebak tippaniyo ki kami si lag rahi thi..aaiye blog ke kore panne aapka intzar kar rahe hai...have a nice day...

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