21 October 2009

बाबूजी की मौत.. और मज़ाक ...हद्द है...

....और बाबूजी नहीं रहे। एक ढाबा संचालक की हत्या से इस बार कोई सनसनी नहीं मची। इस हत्या ने लोगों को सोचने पर मजबूर कर दिया की कलयुग है । अब कुछ भी हो सकता है। बाबूजी यानी ढाबे के मालिक। टाटीबंध रोड का ये ढाबा कई मायनों में अनूठा था। यहाँ शुरू से शराब प्रतिबंधित थी। अपने परिवार को लेकर आप वहां बेफिक्र होकर आ जा सकते थे। जब छत्तीसगढ़ नहीं बना था तब से एम् पी ढाबा यहाँ चल रहा था। दुर्ग में अमर किरण से नौकरी करके लौटते वक्त हम लोगों ने कई बार यहाँ भोजन किया। राज्य बनने के बाद भी कई बार परिवार के साथ या कभी दोस्तों के साथ यहाँ खाने का मौका मिला। मैं जब भी वहां जाता उनके मालिक को हर बार इस बात के लिए साधुवाद देता की आपने ढाबा तो नाम रखा है लेकिन ढाबे की खासियत से इसे दूर रखा है। कई बार गुस्सा भी आता था जब कुछ दोस्तों की जिद पर उनके साथ शराब खरीदने भिलाई या दुर्ग तक जाना पड़ा। ऐसा लगता था की यही शराब मिल जाती तो उतने दूर क्यों जाना पड़ता।
......बाबूजी के एक बाजू में डंडा हमेशा तैयार रहता था। कारण पूछने पर वो हंस दिया करते। कल जब इस बाबूजी की असलियत पता चली तो अवाक रह गया । साला ऐसा था बाबूजी। वहीँ के एक नौकर ने बाबूजी की हत्या कर दी। बाबूजी शब्द भी उसी नौकर का दिया हुआ है। हमारा कोई सम्बन्ध नहीं था उनसे। नौकर की मानें तो बाबूजी उसके साथ अनाचार किया करते थे। रोज़ रोज़ की हरकतों से तंग आकर उसने निबटा दिया अपने बाबूजी को। अब बाबूजी हंसी का पात्र बन गए हैं । लोग अब इसी नाम से ताने भी मारने लगे हैं..कल के कल कुछ नयी गालियाँ भी बन गयी। दिन भर जहाँ भी गया सब बाबूजी की मौत पर अपने नए dialogue सुनाने लगे। इस हत्या ने एक बात की तो सीख दी की हर इंसान जैसा दिखता है ज़रूरी नहीं है की वह वैसा ही हो जैसा आप उसके बारे में सोचते हैं. कुछ बुजुर्ग जो बाबूजी को जानते थे वो इस बात पर अफ़सोस करते ज़रूर दिखे की अचानक बुड्ढा ठरक कैसे गया। मरने वाली जान की आत्माएं सम्माननीय हो जाती हैं पर बाबूजी के साथ ऐसा नहीं हुआ। खैर जो जैसा करेगा वैसा भरेगा । लेकिन बाबूजी की ऐसी मौत ने उनके पुराने एल्बम की सारी फोटो को झुठला दिया है।

1 comment:

  1. ek dum sahi kaha aapne is sansmaran mein....... ki jo jaisa dikhta hai....... waisa hota nahi hai........

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