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10 March 2012
नरेन्द्र...... तुम्हे सलाम....... दुनिया जैसी चल रही है वैसे ही चलो या मरने को तैयार रहो...
बात सिर्फ मध्यप्रदेश की नहीं पूरे देश की है. हर जगह भ्रष्ट लोग अपना कब्ज़ा जमाकर बैठ गए हैं . हर जगह भ्रष्टाचार. बात बात पर पैसा. जिसके पास पैसा ही उसे छूट है हर अपराध करने की. एक तो पैसे की गर्मी ऊपर से नेताओं का संरक्षण. मध्य प्रदेश के जांबाज़ अफसर नरेंद्र ने जो कुछ किया वह एक इतिहास तो बना गए पर उस बच्चे का क्या कसूर जो उनकी आई. ए. एस. पत्नी की कोख में पल रहा है. अभी तो वह इस दुनिया में आया ही नहीं है. इसी भ्रष्ट समाज में वह अपनी आँखें खोलेगा और जब वह दुनिया के बारे में जानना शुरू करेगा तो कौन बताएगा इस कड़वे सत्य के बारे में. कैसे जियेगा वह अपनी माँ के साथ. बड़ा होकर क्या करेगा.? सरकार कल इसे एक दुर्घटना साबित तो कर लेगी लेकिन क्या अंतरात्मा से यह बात कोई स्वीकार पायेगा की चूक कहीं न कहीं व्यवस्था में है. ऐसे ही मामलों से "वाद" सर उठाता है, जिसके आगे आज भी नतमस्तक है सरकार. फिर घुमते रहो यह बोलते हुए की मुख्यधारा से जुड़ जाओ. नरेंद्र कुमार तो मुख्य धारा से जुडा था, फिर कैसे जान गंवानी पडी उसे.? कुल मिलाकर दुनिया जैसी चल रही है वैसे ही चलो या मरने को तैयार रहो, या फिर एक नया "वाद" तैयार करो और इसके पहले की कोई आपको निपटाने की सोचे खुद निपटा दो उसे.
सवाल सिर्फ एक जान का नहीं है कौड़ी के मोल होती जा रही जान की कीमत का है. सरकार में बैठे लोग अमृत पीकर तो नहीं आये हैं न? किसी की जान का सौदा करने के पहले उन्हें अपने परिवार पर भी एक नज़र डाल लेनी चाहिए. नक्सली वारदातों में सैकड़ों पुलिस अधिकारी मारे गए. आज उनकी खैरियत पूछने वाला कोई नहीं है. केंद्र और राज्य सरकार के प्रतिनिधि आते हैं और मगरमच्छ के आंसूं बहाकर चले जाते हैं. पुलिस की नौकरी करना क्या अपराध है? वर्दी पहनाकर नंगा करना कहाँ का नियम है.? जितनी पढाई वह वर्दी पहनने के लिए करते हैं उतना कुछ राजनीति में आने के लिए नहीं करना पड़ता. सारी इंटेलीजेंसी घुस जाती है जब राजनीतिज्ञों के इशारों पर कुचल दिए जाते हैं पुलिस के जवान या अधिकारी. आज नरेंद्र चला गया कल कोई और सूली चढ़ जायेगा. सरकार का कुछ नहीं जाता . जाता है सिर्फ परिवार का.
मन सिहर जाता जाता है यह सोचकर की नरेन्द्र की धर्मपत्नी ने ही उन्हें मुखाग्नि दी. उनके पेट में पल रहे नन्हे मेहमान ने क्या अपनी माँ के पेट में लात नहीं चलाई चलाई होगी? क्या गुजर रही होगी उस महान औरत पर जो सारी बातें जानती थी, खुद हौसला अफजाई करती रही अपने आई पी एस पति की. अंजाम इतना गंदा होगा शायद इस दंपत्ति ने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा. अवैध खनन हर प्रदेश में हो रहा है, कारवाई न होना खुद साबित कर देता है की मामला मिली जुली सरकार का है. आज चिंतन की सख्त ज़रुरत है. अगर आज भी हम सचेत नहीं हुए तो देश में बढ़ रहा गुस्सा पता नहीं किस मुकाम पर जाकर ख़त्म होगा. नेताओं को सरे आम पीटने लगेगी जनता.. ..इनको बचाने जो आएगा वह भी शिकार होगा जनता के इस महा अभियान का. एक "वाद" से तो सरकार निपट नहीं पा रही है अगर कोई दूसरा वाद अस्तित्व में आ गया तो क्या होगा नेतागिरी की आड़ में भ्रष्ट होती जा रही व्यवस्था का. चिंतन मनन आवश्यक है. आइये सब मिलकर सोचें और हल निकालें एक सद चरित्र समाज का.
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