जब से ब्लॉग लिख रहा हूँ मुझे विश्वास था की अख़बार से ज्यादा लोग अब ब्लॉग की दुनिया से सरोकार रखते हैं । कुछ दिन पहले मैंने हिन्दुस्तान न्यूज़ के बारे में लिखा था कि यहाँ पत्रकारों से रेजा कुली की तरह काम लिया जा रहा है। आज मजदूर दिवस पर पत्रकारों का ज़मीर जाग गया और चार लोगों ने हिन्दुस्तान से इस्तीफे की पेशकश कर दी। बाकी पत्रकार भी इन चारों के समर्थन में आ गये और वहां पेन डाउन स्ट्राइक हो गयी। इस बात की पुष्टि करनी हो , और दुर्भाग्य से आप देख पायें तो कल दिन भर देखिये रायपुर के जनसंपर्क की सरकारी ख़बरें और, कुछ ख़बरें रायगढ़ की। अब चंगु - मंगू को पालने वाले मालिक को समझ में आया की पत्रकार आखिर होते क्या हैं। चंगु- मंगू को क्या है, उनके पास पैसे कमाने के कई रास्ते हैं। एक मंगू तो आजकल मंत्रियों और विधायकों के पास स्वेच्छानुदान का आवेदन लेकर घूमते देखा जा रहा है। चंगु को पत्रकारिता और पत्रकारों से जुड़े मामलों से ज्यादा पुलिस के अफसरों के साथ शाम रंगीन करने में ज्यादा मज़ा आने लगा है। खैर ... ऊपर वाला सब देख रहा है,
अब मैं स्वयं इस मामले में गंभीर हूँ। एक सप्ताह का समय मुझे चाहिए। मैं ठीक कर दूंगा ऐसे शोषकों का खेल। शर्म सिर्फ इस बात को लेकर आएगी की कथित अध्यक्ष के खिलाफ भी लामबंद होंगे पत्रकार। पत्रकार बिरादरी को अब तो जागना ही होगा, या फिर सबको यही सोचना होगा की भाड़ में जाएँ सब , अपने को बता के थोड़े ज्वाइन किया था, जाओ भुगतो। चोर चमार और धोखा धडी करने वालों के कौन मुंह लगेगा। सब को सिर्फ ज़मीन चाहिए, कहीं अखबार के नाम से तो कहीं स्कूल या चैनल के नाम से और मोहरे बन रहे हैं पत्रकार। अब इन मोहरों को कौन समझाए की ज़मीन छोड़कर ज़मीन की आशा रखने वालों कितनी ज़मीन कहाँ मिलनी है ये ऊपर वाले ने पहले ही तय कर रखा है। श्रमजीवी पत्रकार संघ का एक धड़ मेरे साथ है। मैं भी ये लड़ाई अकेले नहीं लड़ना चाहता। सबसे लड़ लड़ कर क्या मिला मुझे ? पर अब ये सोचने का समय नहीं है, जंग छिड़ी है तो भागेंगे नहीं। अगर पत्रकारों से अब रेजा कुली की दर पर काम लिया गया तो मजदूर संगठनों को भी जोडूंगा। हिन्दुस्तान के पत्रकारों ने आज जो एकजुटता दिखाई है, उसके लिए सभी पत्रकारों को साधुवाद। एक बात उन साथियों को और कहना चाहूँगा की रोज़ी रोटी की चिंता ना करें, ऊपर वाला भूखा उठाता ज़रूर है, पर भूखा सुलाता नहीं है, ईश्वर के न्याय के प्रति आशान्वित रहिये। सब ठीक हो जायेगा। अगर नहीं हुआ तो अपन सब मिलकर इसे ठीक करेंगे। लड़ाई शुरू की है तो आगे बढ़ो। चींटियों की एक जुटता से हाथी को भी पछाड़ा जा सकता है, और ये सब तो सफ़ेद हाथी हैं। दस्तकों का अब किवाड़ों पर असर होगा ज़रूर, हर हथेली खून से तर और ज्यादा बेकरार.
चलो कहीं से शुरुवात तो हुई।
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा सोच जिसकी आज देश को जरूरत है / आपको कभी मेरी सहायता की जरूरत परे तो बेहिचक फोन कीजियेगा -09810752301
ReplyDeleteशंखनाद हो गया...
ReplyDeleteइस पोस्ट को पढ़िए
http://solidusin.blogspot.com/2009/12/notice-to-icici-bank.html
और यह ब्लॉग भी http://solidusin.blogspot.com/
ICICI Bank तो एक मामूली मोहरे की तरह फँस कर रह गया... अब असली युद्ध तो सिस्टम के खिलाफ होगा
हम लोग आप लोगों से दूर बैठे हैं लेकिन फिर भी आपको बधाई देते हैं। सबको एक्सपोज करिए। शोषण किसी का भी हो नहीं होना चाहिए।
ReplyDeletekya baat hai, hum bhi aap hee se sikh rahe hai sir.... meri jankari ke anusaar raipur men media ki shuruaat ka shrey apko diya jata hai aur ab main keh sakti hun ki chhattisgarh ki patrakarita ko ek nayaa aayam bhi aap se hee milega... head-off to you sir.
ReplyDeletekya baat hai, hum bhi aap hee se sikh rahe hai sir.... meri jankari ke anusaar raipur men media ki shuruaat ka shrey apko diya jata hai aur ab main keh sakti hun ki chhattisgarh ki patrakarita ko nayaa ek aayam bhi aap se hee milega... head-off to you sir.
ReplyDeleteअगर पत्रकारों से अब रेजा कुली की दर पर काम लिया गया तो मजदूर संगठनों को भी जोडूंगा।
ReplyDeleteयहीं तो मात खा गए भाई,क्या पत्रकार, वकील, डाक्टर मजदूर नहीं हैं। वे हैं लेकिन समझते नहीं हैं। ये हिन्दुस्तान के पूंजीपति एक दिन सिखा देंगे के वे मजदूर ही हैं।
बहुत अच्छी लगी यह पोस्ट....
ReplyDeleteएकता जिंन्दाबाद !!!
ReplyDeleteब्लाग पावर भी जिन्दाबाद !
रशीद भाई आपने उन हजारों पत्रकारों की पीड़ा बयान की है, जो वाकई घुट-घुट कर पत्रकारिता नहीं, नौकरी कर रहे हैं। आपके साहस को सलाम। कृपया एक निवेदन है कि ऐसे शब्दों-वाक्यों के प्रयोग से परहेज करें तो अच्छा रहेगा। ....चोर चमार और धोखा धडी करने वालों के कौन मुंह लगेगा। ...........
ReplyDeleteएकता जिंन्दाबाद !!!
ReplyDeleteब्लाग पावर भी जिन्दाबाद !
चोर चमार और धोखा धडी करने वालों के कौन मुंह लगेगा
ReplyDeleteये वाकय बहुत संवेदनशील नही, शायद आपराधिक भी है... इसे हटाने पर विचार करें।
आपको इस सफलता पर बधाईयां व आगे भी आपके प्रयास सफल हों इसके लिए शुभकामनायें। हां हमें ये बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि जब तक शोषित मजदूर अपने शोषण के विरूद्ध खुद आबाज नहीं उठायेंगे तब तक उन्हें कोई शोषण से मुक्ति नहीं दिलवा सकता।
ReplyDelete" चोर चमार और धोखा धडी करने वालों के कौन मुंह लगेगा। " आपके इस वाक्य में दूसरा शब्द किस अर्थ में लिखा गया है। शब्दों पर ध्यान दें।
ReplyDelete:)
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