16 June 2010

न टाइम , न टुडे , सब हैं बुझे बुझे
अभी कुछ दिन पहले ही मुझे टाइम टुडे के मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के सम्पादक ने आग्रह किया था की आप कुछ समय हमारे लिए भी निकालें, मैंने साफ़ कहा था की यार तुम्हारे चैनल में वज़न नहीं दिखता. सम्पादक रिजवान ने कहा था की नया चैनल है,  धीरे धीरे सब ठीक हो जायेगा. कुछ संयुक्त कोशिशें हमने की भी.  मैंने साफ़ कहा था की मैं आपके संबंधों के आधार पर ख़बरें ऍफ़ टी पी से भेज दिया करूँगा. क्योंकि मुझे पता था की आर्थिक तंगी से जूझ रहा है चैनल.  चार दिन बाद पता चला की पूरे स्टाफ ने हड़ताल कर दी और श्रम विभाग में शिकायत भी दर्ज करा दी. एक आदमी रायपुर में बच गया. उसे एक महीने की सेलरी देकर ब्यूरो चीफ बना दिया गया.  बिना कैमरा मेन के क्या करेगा ब्यूरो? ले दे के काम बढ़ने लगा. मुझसे पूछा गया की आप अब किस तरह की मदद करेंगे? मैंने कहा की जैसा रिजवान बोलें, क्योंकि आप लोगों को मैं जानता नहीं.  बाद में विवाद बढ़ा और चैनल ने यहाँ के कर्मचारियों के खिलाफ स्क्रोल चला दिया की इन लोगों को चैनल से निकाल दिया गया है. अब मेरा दिमाग ठनका, पर चूँकि मेरा कोई लेना देना था नहीं, इसीलिये चुप हो गया.
पर कितने दिन चुप बैठता ? टाइम टुडे की खुदाई की तो पता चला की ये चैनल भी अवैध है. इसका पंजीयन तो पवित्र टी वी के नाम से है. पवित्र टी वी अचानक टाइम टुडे कैसे हो गया? . इनके एंकर भी एक से एक नमूने हैं. बीच में मेरा फोन हुआ तो एक एंकर मुझसे पूछ बैठी की नक्सलवाद  से निपटने के पी एस गिल को क्या बुलाएगी छत्तीसगढ़ सरकार? मैं लाइव में तो शांत रहा पर बाद में अपने ऊपर खूब हंसी आयी. तीन साल पहले के पी एस गिल यहाँ से लौट चुके हैं और ये पूछ रही है की कब आयेंगे के पी एस गिल? गलती नयी लड़कियों की कतई नहीं है. उन्हें थोड़ा बहुत तो बता देते. कुछ तो सिखा समझा देते.  दरअसल मूर्खों की कमी नहीं है. एक एंकर तो अमीन सयानी की विडियो में कॉपी कर रहा है. बाकी दो भी सीखने की कोशिश कर रहे हैं. एक एंकर तो न्यूज़ पढ़ती है तो लगता है जैसे बच्चों का कोई नया चैनल शुरू हुआ है. एक तो इतना हंसती है की लगता है उसे रोज़ सेलरी मिल रही है. खैर.. सीखना सबको चाहिए., पर ये सारे प्रयोग चैनल शुरू होने के पहले हो जाने चाहिए. भोपाल का पहला satelite चैनल है. शुरू में गर्व हुआ, पर धीरे धीरे हवा निकलनी शुरू हो गयी,  आपसी खींचतान में ये चैनल भी बैठता दिखाई दे रहा है.
अब खबर आ रही है की चैनल की आई डी बेचीं जा रही है. ठीक तो है. कहीं से  तो पैसा आना  चाहिए.सब तो यही कर रहे हैं. दिल्ली और भोपाल में बैठे लोगों को शायद इस बात की जानकारी नहीं है की वे खुद भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रहे हैं.  आज की पत्रकारिता को ऐसे ही लोगों ने आर टी ओ की नौकरी जैसा बना दिया है, अब आदमी आई डी खरीदेगा तो पहले उसका खर्चा निकलेगा. पत्रकारिता कब करेगा वो. खैर..धीमे स्क्रोल वाली पट्टी और धीमी गति से शुरू हुआ ये चैनल पता नहीं स्पीड कब पकड़ेगा. आसार तो कहीं से भी नज़र नहीं आ रहे हैं. अभी तक लीज लाइन बिछ जानी चाहिए थी. मोबाईल पर कब तक टिके रहेगा चैनल? redymade chroma का background और जुगाड़ के एक दो background म्यूजिक से चैनल की असलियत साफ़ साफ़ दिखने लगती है. शकल  सूरत तो भगवान् की देंन होती हैं पर उसे और बिगाड़ कर या उसमें घटिया या खुद make -up कर उसे वीभत्स करने से तो रोका ही जा सकता है. जेब में तनख्वाह के पैसे नहीं होते तो एंकर और कैमरा मेन का काम पूरी चुगली अकेले ही करने के लिए पर्याप्त है. तनख्वाह की हालत सिर्फ छत्तीसगढ़ में ही  नहीं  सभी जगह से शिकायतें हैं. ऐसे लोग  पत्रकारिता को समझते क्या हैं.आपसी खुन्नस छोड़कर अगर सब इस चैनल को नहीं संभालेंगे तो ढाक के तीन पात वाली कहावत चरितार्थ होकर रहेगी. मैं मदद करने आगे आया था लेकिन आप स्टाफ को सेलरी नहीं दोगे तो हम तो लड़ने वालों का ही साथ देंगे ना?

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