शहीद जवानों के शव और बचे जवानों का खून से लथपथ शरीर देखकर न कुछ लिखने का मन् कर रहा था न कुछ सोचने का, अब थोड़ा शांत हुआ है दिमाग। अब सवाल ये उठता है कि पुलिस नक्सलियों के शहरी नेटवर्क पर ध्यान क्यों नहीं दे रही है। सारा गणित तो शहर से होकर नक्सालियों तक जाता है। देश की सबसे बड़ी नक्सली वारदात ने हिलाकर रख दिया सबको। चैनलों में होड़ मची रही, लेकिन सहारा समय ने तो हद्द कर दी। बची खुची कसर साधना न्यूज़ ने निकाल दी। सहारा समय के संवाददाता उस दिन रायपुर में थे और फ़ोनों में पट्टी चल रही थी कि वो दंतेवाडा से बात कर रहे हैं। अगर संवाददाता यहाँ थे तो किस मजबूरी से चैनल ने ऐसा किया। अगर संवाददाता दंतेवाडा में थे तो फ़ोनों के तत्काल बाद वो अचानक रायपुर में कैसे दिखने लगे? कोई हेलीकाप्टर रेंट में लिया था क्या सहारा ने उस दिन के लिए ? , सबसे पहले ओबी वैन भी सहारा के पहुँचने की खबर थी, थोड़ा जांच पड़ताल किया तो पता चला कि आज तक इनकी ओबी वैन वहां नहीं पहुंची है। राष्ट्रीय - अन्तराष्ट्रीय चैनल के लोग दनादन रायपुर आकर जगदलपुर और दंतेवाडा रवाना होने लगे और सहारा की ओबी वैन गायब? ऐसा कैसे हो गया? अगर टिकर गलती से चल रहा था तो संशोधन भी तो किया जा सकता था।
सब बदला निकाल रहे हैं क्या? नक्सलियों ने जवानों से बदला निकाला, विपक्ष ने सरकार से और पत्रकारों ने पत्रकारों से। गुरुकुल आश्रम का विवाद अभी सुलझा ही नहीं था और सहारा के पत्रकार एक नए विवाद में घिर गये। कितना टी आर पी बढाओगे? विवाद भी तो बढ़ रहा है? कौन समेटेगा इसे? ऊपर से कोई नहीं आएगा। स्पर्धा की दौड़ में साधना के संवाददाता ने एक नक्सली नेता का फ़ोनों करवा डाला। वेरी गुड। नक्सलियों की स्वीकारोक्ति वाली विज्ञप्ति भी सिर्फ सहारा के पास ही पहुंची। बाकी अखबार और चैनल विज्ञप्ति का रास्ता ही देखते रह गये। क्या चल रहा है पत्रकारिता की आड़ में। अब तो पुलिस की ज़िम्मेदारी और बढ़ी है, किसका डर है पुलिस को? क्यों पूछताछ नहीं करती पुलिस? नक्सलियों का कोरिअर पहुँचाने वाले पियूष गुहा को किसने रुकवाया था रायपुर में , ऐसे कई सवाल हैं जो अब शहीद जवानों के रक्त रंजित शव पूछ रहे हैं। कौन देगा जवाब?
केंद्रीय गृह मंत्री पी चिदंबरम ने आखिर इस्तीफे की पेशकश तो की। लेकिन छत्तीसगढ़ के मंत्रियों के कान में जूँ तक नहीं रेंगी। भारतीय जानता पार्टी की स्थापना बैठक में आतंरिक रूप से ही इस्तीफ़ा मांग लेते, फिर स्वीकार नहीं करते। एक सन्देश तो जाता। अपने घर में कोई मरता है तो सालों साल उनकी कसक साथ रहती है, देश के जवान शहीद हुए तो कोई ग़म नहीं ..... मर गयी है आत्मा सबकी। विपक्ष भी कम नहीं है। बंद करा देने से सुलझ जायेगा मामला? मुझे तो व्यक्तिगत रूप से लगता है की छत्तीसगढ़ में मिली जुली सरकार चल रही है? जिसके मन् में जो आ रहा है कर रहा है, राम राज्य देखना है तो आ जाओ छत्तीसगढ़। ऐसी सिधाई किस काम की जो सरकार को नपुंसक बना दे।
अब पूरे मामले की जांच हो रही है, दोनों सरकारें पहले दिन से कह रही हैं की गलती सी आर पी ऍफ़ के जवानों की है, बिलकुल ठीक कहा दोनों ने। वाकई में अपना घर बार छोड़कर जंगल में नौकरी करना गलती है जवानों की। क्यों करते हो सर्चिंग करने की गलती? जब पता है सरकार ढुलमुल है, तो क्यों गये होशियारी दिखाने? सब ख़त्म हो गया ना? एक दिन पहले तक तो तो रायपुर से दिल्ली तक यही गूँज थी की नक्सलियों का सफाया कर देंगे २ साल में, ऐसे उटपटांग बयान देने की ज़रुरत क्या है। मेरी तो पैदाइश यहीं की है, जब से पत्रकारिता से जुड़ा हूँ रोज़ सुन रहा हूँ हेलीकाप्टर आएगा तो सर्चिंग तेज़ होगी। हज़ारों लोग तो शहीद हो गये, कब आएगा हेलीकाप्टर, नक्सली भी भटके से लगते हैं। उनका टार्गेट कौन है, क्या है । वो जवान जो अपने घर से हजारों किलोमीटर अपनी बीवी बच्चों को छोड़कर देश सेवा कर रहे हैं। वातानुकूलित चम्बर में बैठकर रणनीति बनाने वालों को अब पता चल गया होगा की जंगल में किसी की नहीं चलती, अपनी सुझबुझ ही काम आती है। आख़िरकार छत्तीसगढ़ के डी जी पी को कैंप करना पड़ा जंगले में। घूमे मोटर साइकल में । पता चल गया होगा जंगल में कितनी गर्मी होती है, ऐसे में जब दिल सुलग रहे हों तो गर्मी और भी तंग करती है , कान के पीछे से पसीना जब शुरू होता है तो रुकने का नाम नहीं लेता. बातें बहुत हुई अब काम की बात पर सबको ध्यान देना होगा, नक्सलियों के शहरी नेटवर्क पर पुलिस को ध्यान केन्द्रित करना ही होगा, तभी बड़ी सफलता संभव है। अब शहीदों के शव ढोते कंधे दुखने लगे हैं. सबको मिलजुलकर पहल करनी होगी. बयान बाजी बंद करनी होगी. कुछ सवाल मैंने ओन वीडिओ पूछा है, अपने मुख्यमंत्री से। utube में जाकर ahfazrashid टाइप करके या मेरे पोर्टल media-house.org पर भी आप ये संक्षिप्त बातचीत देख सकते हैं। जय हिंद , जय भारत , जय छत्तीसगढ़..
wait karte hain jee, likha to bedhadak hai aapne
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