06 February 2011

नपुंसक हैं रायपुर के पत्रकार?

सांठगांठ से चल रही छत्तीसगढ़ सरकार ने रायपुर के पत्रकारों को क्या इतना उपकृत कर दिया है कि वे दो पत्रकारों की हत्या के मामले में चुप्प  बैठ गये हैं. मौत इतनी सस्ती हो गयी है कि कोई आपको घूरकर देखे तो उसकी " सुपारी" देकर आप उसे मौत के घाट उतार सकते हैं.सरकार कुछ नहीं करेगी. उपकृत पत्रकार शायद ये समझ बैठे हैं कि सरकार की जी हुजूरी उनके लिए "अमृत" का काम कर देगी. छोटे-छोटे गाँव के पत्रकारों  ने अपने स्तर पर अपने इलाकों में "बंद" भी किया और धरना प्रदर्शन भी , लेकिन वाह रे  रायपुर के पत्रकार..मुख्यमंत्री बुरा ना मान जाएँ इसीलिये "रायपुर-बंद" से कतराते रहे पत्रकार नेता. और तो और अब इन पत्रकारों से अखबार मालिक पल्ला झाड़ते भी दिख रहे हैं. रायपुर और बिलासपुर को राजधानी और न्यायधानी का दर्जा है, लेकिन यहीं के पत्रकार पांच सालों से अपने चुनाव नहीं करवा पा रहे है? अपनी दुकानदारी चलाने वाले प्रेस क्लब से हटना ही नहीं चाहते और नपुंसकता की  चादर ओढ़े बैठे रायपुर के पत्रकार कुछ कर नहीं पा रहे हैं. ऐसे में क्या ये सवाल जायज़ नहीं है कि नपुंसक हो गये हैं रायपुर के पत्रकार?
बिलासपुर के पत्रकार सुशील पाठक की हत्या पत्रकारिता के कारण नहीं हुई, लेकिन छूरा का पत्रकार उमेश राजपूत तो आखिरी समय में भी हाथ में कलम लिए हुए था. खबर लिखते -लिखते ही मारा गया उमेश. खून से सनी उसकी पेन आज भी छूरा थाने में ज़ब्त है. जो हाल रायपुर का है वही हाल बिलासपुर का भी है . रायपुर प्रेस क्लब  में अनिल पुसदकर कुण्डली जमाकर बैठ गये हैं तो बिलासपुर में शशि कोन्हेर का कब्ज़ा है. शराब और ज़मीन माफियाओं के संरक्षण में  ये लोग अपनी औकात भूल गये हैं. बिलासपुर में सुशील पाठक की हत्या का उतना विरोध नहीं  हुआ जितना रायपुर के आसपास उमेश की हत्या का. स्वर्गीय सुशील भी ज़मीन से जुड़ गये थे, वो प्रेस क्लब बिलासपुर  के  उपाध्यक्ष भी थे, लेकिन बदनामी के डर से प्रेस क्लब ने उपाध्यक्ष वाली बात शुरू से ही दबाये रखी. बिलासपुर में तो आग लग जानी चाहिए थी लेकिन पत्रकार खुद खुन्नस में थे, सुशील पाठक दरअसल शशि कोन्हेर के लिए काम करता था, सामने सुशील था और पीछे का पूरा खेल शशि कोन्हेर खेल रहे थे. बिलासपुर के पुलिस अधीक्षक जयंत थोराट  को मेरे सामने कुछ पत्रकारों ने ये बात बतायी थी. पत्रकरिता की आड़ में ज़मीन का काम करना गुनाह नहीं है. रायपुर के कई पत्रकार तो एक मंत्री के निर्देशन में सोसायटी बनाकर ये काम कर रहे हैं. एक पत्रकार तो इसी कारण अपना पद नहीं छोड़ रहा है, पद का दुरूपयोग हो रहा है और मौन हैं रायपुर के पत्रकार.
जिस दिन उमेश की हत्या हुई उस दिन छुरा बंद रहा. बाद में छत्तीसगढ़ वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन ने देवभोग , मैनपुर , गरियाबंद , पांडुका  और फिंगेश्वर में बंद और धरना प्रदर्शन का आयोजन करवाया . आज राजिम और नवापारा भी बंद रहेगा. पुलिस पर इसका दबाव तो बना, आखिरकार चार टीम बनानी पड़ी पुलिस को. रायपुर के कई क्राइम  एक्सपर्ट्स ने भी छूरा थाने जाकर संदेहियों से पूछताछ की और दिशा निर्देश दिए. बिलासपुर में ऐसा कुछ नहीं हुआ. तभी तो बिलासपुर के प्रेस क्लब के अध्यक्ष शशि कोन्हेर आठ-दस पत्रकारों को लेकर रायपुर आ गये और धरना प्रदर्शन रायपुर में ही किया गया. ये प्रदर्शन बिलासपुर में होता तो बेहतर होता , लेकिन शशि कोन्हेर को पता था कि बिलासपुर में उनकी बखत क्या है?
अब सवाल ये उठता है कि पत्रकारों की इस आपसी राजनीति का शिकार आम पत्रकार क्यों हो? दरअसल धरना - प्रदर्शन करने का काम प्रेस क्लब का है नहीं. आपको यकीन ना हो तो प्रेस - क्लब का संविधान  पढ़ लीजिये . ये काम श्रमजीवी पत्रकार संघ का है. रायपुर के कुछ अखबार मालिकों ने अपने दलालों  को वहां सक्रिय किया और यही कारण है कि श्रमजीवी पत्रकार संघ के ना चुनाव हो रहे ना अखबार मालिकों के खिलाफ कोई आवाज़ उठा रहा है. जब पत्रकारों के खिलाफ शोषण बढ़ा तो रायपुर के कुछ पत्रकारों ने अलग अलग संघ बनाए लेकिन काम कुछ नहीं किया.  बस चन्दा - वसूली होती रही और अखबार मालिक खुश होते रहे. एक संघ के प्रदेश अध्यक्ष को तो खबर लिखना भी नहीं आता . शायद यही कारण था कि नारायण शर्मा और उनकी टीम को लोगों ने हाथों हाथ लिया. रायपुर  प्रेस क्लब और भाजपा में कोई ख़ास अंतर नहीं है. दरअसल प्रेस क्लब की जगह, ज़मीन और सुविधाएँ  श्रमजीवी पत्रकार संघ के नाम से अलोटेड है. नगर निगम के दस्तावेज़ इसके गवाह हैं. श्रमजीवी पत्रकार संघ तो आर. एस. एस. की  तरह काम करता है. प्रेस क्लब इसकी इकाई मात्र है. प्रेस क्लब सिर्फ पत्रकारों के मनोरंजन और पत्रकार वार्ताओं के लिए अधिकृत है. चार साल से ना तो पत्रकारों के लिए ना तो कोई खेल कूद का आयोजन हुआ. ना कोई और गतिविधि, हाँ १५ अगस्त और २६ जनवरी को पिकनिक का पूरा ध्यान रखा, मौके का फायदा उठाकर  अखबार मालिकों ने ऐसी चकरी चलाई कि संघ का अस्तित्व ही ख़त्म हो गया. अब कौन आवाज़ उठाएगा उन अखबार मालिकों के खिलाफ जिन्होंने सस्ते दामों पर ज़मीन तो अखबार चलाने के नाम पर ली लेकिन वहां कुछ और धंधे स्थापित हैं.  एक पत्रकार ने तो प्रेस कोंम्प्लेक्स में  संघ की ज़मीन पर ही अपना भवन तान दिया है. कौन बोलेगा उसके खिलाफ ? कौन ज्ञापन देगा मुख्यमंत्री को?
दो पत्रकारों की हत्या के विरोध का सिलसिला सब जगह चला पर जब रायपुर बंद करने की  बात सामने आयी तब सब खिसकने लगे. सब के दिमाग में यही था कि मुख्यमंत्री बुरा मान जायेंगे तो उनकी दुकानदारी प्रभावित हो सकती है. आखिर में कुछ लोग सामने आ ही गये रायपुर बंद कराने के लिए. विरोध करना प्रजातंत्र का एक हिस्सा है , और चौथे  स्तम्भ की ऐसी दुर्दशा... ईश्वर जाने क्या होगा आने वाली पीढ़ी का? हम क्या नज़रें मिला पाएंगे उनसे? क्या शिक्षा देंगे उनको? यही? कि अपना घर देखो. बस . कोई मरे या जिए . अपनी सेटिंग नहीं बिगडनी चाहिए..
बहरहाल हत्या एक ग्रामीण पत्रकार की  हुई है इसीलिये राजधानी के पत्रकारों ने ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाई. पर वे भूल गये की दमन की शुरुआत हो चुकी है. ग्रामीण पत्रकारों की  मजबूरी कौन समझेगा? वो जो अपना रक्षाधन जमा कराते है उसी का ब्याज उन्हें तनख्वाह के रूप में वापस किया जाता है. आज भी ग्रामीण पत्रकारों को सात सौ से ज्यादा तनख्वाह नहीं मिलती. (ये बड़े घरानेदार अख़बारों  की  बात है. छोटे और मंझोले अखबारों की  बात तो छोड़ ही दें) अपनी दूकान, ठेकेदारी या विज्ञापन के कमीशन से वो अपना घर चलाने को मजबूर हैं. पर राजधानी के पत्रकारों के साथ तो ऐसा नहीं है. नए नए अखबार तो अच्छे पॅकेज दे रहे हैं. फिर क्यों डर लगता है उन्हें. क्यों वरिष्ठ पत्रकारों ने प्रेस क्लब आना  जाना छोड़ दिया. धरने में भी सिर्फ दो वरिष्ठ दिखे. अब हालत बिगड़ेंगे. नयी पीढ़ी के पत्रकार अब बर्दाश्त नहीं करेंगे. कभी भी कोई बड़ी घटना प्रेस क्लब में हो जायेगी तब इन्हें संरक्षण देने वालों को समझ में आएगा कि नपुंसक नहीं थे  रायपुर के पत्रकार.



5 comments:

  1. shabash,ham aapake sath hain, lagata hai ab kundali bajon ko hatane hi kuchh karana hoga

    ReplyDelete
  2. कडवी बात, पर बात में दम है अहफाज भाई।
    कभी घूमते-घूमते हमारे ब्‍लाग में भी आईए।

    ReplyDelete
  3. khari-khari. badhai, is lekhan k liye.

    ReplyDelete
  4. bhai pliz giv me ur email address at swachchhsandesh@gmail.com

    ReplyDelete